SEBI Proposal: बड़ी कंपनियों के लिए IPO लाना होगा आसान, पब्लिक शेयरहोल्डिंग नियमों में राहत संभव

SEBI ने बड़ी कंपनियों के IPO नियमों में अहम बदलाव का प्रस्ताव रखा है. इस प्रस्ताव के तहत न्यूनतम हिस्सेदारी डाइल्यूशन घटाने और Minimum Public Shareholding (MPS) की शर्तें पूरी करने के लिए ज्यादा समय देने की बात कही गई है. इन नियमों के तहत अब 50,000 करोड़ से ऊपर मार्केट कैप वाली कंपनियों को IPO में कम हिस्सेदारी बेचनी होगी और 25% पब्लिक शेयरहोल्डिंग हासिल करने के लिए अब 5 से 10 साल का समय मिल सकता है.

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भारतीय शेयर बाजार के नियामक SEBI का बड़ी कंपनियों के लिए IPO नियमों को और आसान बनाने का प्रस्ताव रखा है. इसमें कम हिस्सेदारी डाइल्यूशन और पब्लिक शेयरहोल्डिंग की शर्तें पूरी करने के लिए ज्यादा समय देने का सुझाव शामिल हैं. सेबी के इस कदम को Ease of Doing Business और घरेलू एक्सचेंज पर बड़ी कंपनियों की लिस्टिंग को बढ़ावा देने की दिशा में अहम पहल माना जा रहा है.

क्या है सेबी का प्रस्ताव?

सेबी ने सोमवार को जारी कंसल्टेशन पेपर में कहा कि जिन कंपनियों का पोस्ट-इश्यू मार्केट कैप 50,000 करोड़ से ज्यादा और 1,00,000 करोड़ तक होगा, उन्हें न्यूनतम 1,000 करोड़ और कम से कम 8% हिस्सेदारी डाइल्यूट करनी होगी. जबकि, मौजूदा नियमों के तहत यह सीमा 10% रखी गई है. इसके साथ ही इन कंपनियों को लिस्टिंग के बाद 25% Minimum Public Shareholding (MPS) की स्थिति हासिल करने के लिए अब 3 की जगह 5 साल का समय दिया जाएगा.

1 लाख से 5 लाख करोड़ मार्केट कैप वाली कंपनियां

सेबी के प्रस्ताव में कहा गया है कि जिन कंपनियेां का मार्केट कैप 1 से 5 लाख करोड़ के बीचे में है. उन कंपनियों को भारतीय बाजार में लिस्टिंग के लिए अब 6,250 करोड़ यानी और 2.75% हिस्सेदारी डाइल्यूट करनी होगी. इसके अलावा यदि लिस्टिंग के समय पब्लिक शेयरहोल्डिंग 15% से कम है, तो 5 साल में इसे 15% और 10 साल में 25% तक पहुंचाना होगा. अगर लिस्टिंग पर पब्लिक शेयरहोल्डिंग 15% से ज्यादा है, तो 25% MPS की स्थिति 5 साल में हासिल करनी होगी. मौजूदा नियमों के तहत 10% एमपीएस 2 साल में और 25% MPS 5 साल में हासिल करनी होती है.

5 लाख करोड़ से बड़े मार्केट कैप वाले आईपीओ

सेबी के प्रस्ताव के मुताबिक बड़ी कंपनियों के लिए अब न्यूनतम 15,000 करोड़ और कम से कम 1% हिस्सेदारी डाइल्यूशन हो, लेकिन यह 2.5% से कम न हो। इनके लिए भी MPS हासिल करने की समयसीमा 5–10 साल तक बढ़ाने का सुझाव दिया गया है.

क्यों जरूरी है यह बदलाव?

सेबी का कहना है कि जैसे-जैसे IPO का आकार बढ़ रहा है, बड़ी कंपनियों के लिए मौजूदा नियमों के तहत न्यूनतम डाइल्यूशन और तय समय में पब्लिक शेयरहोल्डिंग हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में 1957 के सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट्स (रेगुलेशन) रूल्स (SCRR) में संशोधन की जरूरत महसूस की गई है. इसके लिए सेबी ने वित्त मंत्रालय को संशोधन की सिफारिश करने का सुझाव दिया है.