कौन हैं सावजीभाई, जो दिवाली पर कर्मचारियों को देते हैं घर और लग्जरी कार

गुजरात के एक छोटे गांव में जन्मे सावजीभाई ढोलकिया की कहानी किसी सपने जैसी लगती है. आज वे अपने विश्वास के सहारे फर्श से अर्श पर पहुंचे और हजारों कर्मचारियों की जिंदगी को बेहतर बना रहे हैं....

कौन हैं सावजीभाई, जो दिवाली पर कर्मचारियों को देते हैं घर और लग्जरी कार Image Credit: PTI/Savajibhai FB

दिवाली पर अपने कंपनी के कर्मचारियों को कभी घर तो कभी गाड़ी जैसे मंहगे गिफ्ट देने वाले गुजरात के बिजनेसमैन सावजीभाई ढोलकिया का नाम अक्सर सुर्खियों में रहता है. डायमंड नगरी सूरत के डायमंड कारोबारी सावजी भाई ढोलकिया ने अबतक बतौर दिवाली बोनस अपने कामगरों को कार, फ्लैट्स, ज्वैलरी सेट, एफडी और इंश्योरेंस पॉलिसी दे चुके हैं.

उन्होंने अपने कुछ वफादार कर्मचारियों को मर्सिडीज जैसी महंगी कारें भी दी हैं, जिसकी कीमत एक करोड़ रुपये तक होती है.सावजीभाई का मानना है कि एक कर्मचारी के लिए पहले कार का तोहफा उसकी जिंदगी में एक बड़ी उपलब्धि होती है. यह उसे और भी बेहतर काम करने के लिए प्रेरित करता है. इस दिवाली भी सावजीभाई कोई बड़ा सरप्राइज देने का प्लान कर रहे हैं. ‘बॉस हो तो ऐसा’ का टैग वाले सावजीभाई की कहानी प्रेरणा से भरी हुई है.

सूरत के ‘डायमंड किंग’ की कहानी

गुजरात के एक छोटे से गांव दुधाला में जन्मे सावजीभाई ढोलकिया की कहानी किसी सपने जैसी लगती है. गरीब किसान परिवार में जन्मे सावजीभाई के पास न तो खास पढ़ाई थी और न ही किसी बड़े शहर का अनुभव. पर उनके भीतर एक जुनून था, कुछ बड़ा करने का, अपनी पहचान बनाने का. ये वही जुनून था जिसने उन्हें एक साधारण मजदूर से ‘डायमंड किंग’ बना दिया और अब उनकी मेहनत का यह साम्राज्य 12,000 करोड़ रुपये के करीब पहुंच चुका है.

12 रुपये लेकर सपनों की उड़ान भरने सूरत आएं

सन 1977 में, सावजीभाई ढोलकिया ने 12 रुपये लेकर अपने गांव दुधाला से सूरत का रुख किया. उनके पास ज्यादा पढ़ाई का सहारा नहीं था सिर्फ चौथी कक्षा तक की पढ़ाई कर पाए थे. सूरत में मामाजी के यहां रहते हुए उन्होंने हीरे की चमक में अपना भविष्य देखा और इसे अपनी जिंदगी बनाने की ठानी. मामाजी ने उन्हें एक डायमंड फैक्ट्री में काम दिलवाया जहां उनकी पहली सैलरी थी सिर्फ 179 रुपये. जिंदगी चलाने के लिए 140 रुपये खर्च कर, सावजीभाई 39 रुपये बचाते थे.

यह रकम छोटी थी पर इसके पीछे उनका सपना बड़ा था. धीरे-धीरे उन्होंने डायमंड पॉलिशिंग के गुण सीखे और एक दोस्त से कारीगरी में माहिर हुए. लगभग 10 साल तक कड़ी मेहनत करते हुए उन्होंने अपने काम में महारत हासिल की.

कर्मचारी से मालिक तक का दिलचस्प सफर

सन 1984, उनके जीवन में बड़ा मोड़ लेकर आया. अपने भाइयों हिम्मत और तुलसी के साथ मिलकर उन्होंने ‘हारी कृष्णा एक्सपोर्ट्स’ नाम की एक कंपनी की शुरुआत की. जिस फैक्ट्री में कभी सावजीभाई काम करते थे, अब वो उनका खुद का कारोबार बन चुका था. आज उनकी कंपनी न सिर्फ डायमंड बल्कि टेक्सटाइल के क्षेत्र में भी नाम कमा रही है. 6,000 से ज्यादा कर्मचारी उनकी कंपनी का हिस्सा हैं.

बेटे और पोते को मजदूरी के लिए दूर भेजा

सावजीभाई कि नेट वर्थ भले ही करोड़ों में हो लेकिन इन्होंने विदेश से पढ़कर लौटे पोते और बेटे को गुमनामी और आम जिंदगी जिने के लिए अपने शहर से दूर मजदूरी के लिए भेज दिया.साल 2017 में उन्होंने अपने बेटे हितार्थ को महज 500 के मामुली रकम के साथ हैदराबाद भेज दिया. यह कहानी यहीं नहीं रुकती. उन्होंने अपने पोते रुबिन को भी कठिनाइयों का सामना करने का सबक सिखाने के लिए 6000 रुपए की मामूली रकम के साथ चेन्नई भेजा.

चैन्नई के किसी दुकान में काम करते रुबिन

दोनों लोगों को अपनी पहचान छुपाने का आदेश था. सावजीभाई का मानना है कि जीवन के असली सबक स्कूल या कॉलेज नहीं, बल्कि जिंदगी के अनुभव से मिलते हैं.