भारत–चीन रिश्तों में लौटी मिठास, सीमा वार्ता, फ्लाइट्स, व्यापार और तीर्थयात्रा पर सहमति, ये हुए बड़े फैसले

चीनी विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा ने दोनों देशों रिश्तों में लंबे समय से जारी तल्खी को खत्म कर दिया है. उनकी इस इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सीमा विवाद समाधान, लोगों के बीच संपर्क, तीर्थयात्रा, व्यापार और बहुपक्षीय सहयोग जैसे मुद्दों पर सहमति बनी है. इसका असर आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा.

भारत-चीन Image Credit: Bloomberg Creative/Getty Images

भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंधों में एक बार फिर से पटरी पर लौटते दिख रहे हैं. चीन के विदेश मंत्री और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CPC) की पोलितब्यूरो के सदस्य वांग यी ने 18-19 अगस्त 2025 को भारत का दौरा किया. इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ भारत-चीन सीमा वार्ता के 24वें दौर की सह-अध्यक्षता की. इसके अलावा विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी शिष्टाचार भेंट की.

सीमा विवाद पर बनी सहमती

19 अगस्त को अजीत डोभाल और वांग यी के बीच हुई 24वीं विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता में सीमा विवाद पर चर्चा हुई. दोनों देशों ने यह स्वीकार किया कि पिछली वार्ता के बाद से सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनी हुई है. इसके साथ ही पांच अहम मामलों पर सहमती बनी है.
राजनीतिक समाधान: 2005 में हुए ‘राजनीतिक मापदंडों और मार्गदर्शक सिद्धांतों’ के अनुरूप सीमा विवाद का निष्पक्ष और परस्पर स्वीकार्य समाधान निकालने पर जोर.
“अर्ली हार्वेस्ट” पहल: सीमा रेखा निर्धारण के लिए कार्यसमूह के अंतर्गत एक विशेषज्ञ समूह का गठन.
बॉर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स: सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए प्रभावी रणनीतियों पर कार्य करने के लिए.
जनरल-लेवल सिस्टम: पूर्वी और मध्य क्षेत्रों में भी जनरल-लेवल सिस्टम की बैठकें शुरू करने पर सहमति.
डिप्लोमेटिक व मिलिट्री डायलॉग: डी-एस्केलेशन को आगे बढ़ाने के लिए दोनों स्तरों पर संवाद बनाए रखने पर सहमति.

द्विपक्षीय संबंधों का पुनर्निर्माण

18 अगस्त को वांग यी और डॉ. जयशंकर के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता में कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की सहमति बनी. खासतौर पर दोनों नेताओं ने शीर्ष स्तर पर संपर्क की भूमिका को अहम मानते हुए, दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर, सहयोगी और भविष्य उन्मुख बनाने की प्रतिबद्धता जताई. दोनों विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान कई अहम घोषणाएं भी हुईं. मसलन, SCO सम्मेलन में पीएम मोदी की भागीदारी की पुष्टि की गई.

इसके अलावा भारत ने चीन की SCO अध्यक्षता का समर्थन किया है. इसके साथ ही BRICS शिखर सम्मेलनों में आपसी सहयोग पर सहमति बनी. भारत 2026 और चीन 2027 शिखर सम्मेलनों की मेजबानी करेगा. इसके साथ ही जनता से जनता के संवाद को बढ़ाने के लिए 2026 में होने वाली उच्च-स्तरीय भारत-चीन पीपल-टू-पीपल एक्सचेंज मीटिंग का ऐलान किया गया. इसके साथ ही दोनों देश अपने कूटनीतिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ का जश्न मनाने पर सहमत हुए हैं.

व्यापार, यात्रा और तीर्थयात्रा के लिए बड़े फैसले

सीधी उड़ानों की बहाली: भारत और चीनी के बीच जल्द ही डायरेक्ट फ्लाइट्स बहाल होंगी. नया एयर सर्विसेज एग्रीमेंट जल्द फाइनल होगा.
वीजा में रियायतें: पर्यटकों, व्यापारियों, मीडिया और अन्य आगंतुकों के लिए वीज़ा प्रक्रियाओं को आसान बनाने पर सहमति.
कैलाश मानसरोवर यात्रा: 2026 से भारत की तीर्थयात्रा को बढ़ाने पर सहमति बनी है. यह यात्रा धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है.
सीमा व्यापार बहाली: लिपुलेख, शिपकी ला और नाथू ला के जरिये पारंपरिक व्यापार फिर से शुरू होगा.
निवेश और व्यापार प्रवाह: व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने पर सहमति.

विवादास्पद मुद्दों पर भी हुई चर्चा

वांग यी और जयशंकर के बीच हुई बातचीत के दौरान दोनों देशों विवाद के तमाम मुद्दों पर भी विस्तार से बाात की. भारत ने जहां चीन के सामने आतंकवाद और ब्रह्मपुत्र पर चीन के डैम को लेकर चिंता जताई. वहीं, चीन ने भारत और ताइवान के बढ़ते रिश्तों को लेकर चिंता जताई. इसके अलावा भारत ने चीन के सामने आतंकवाद, विशेषकर सीमा पार आतंकवाद को लेकर चीन के रवैये पर कड़ी आपत्ति जताई. साथ ही याद दिलाया कि SCO की स्थापना का एक प्रमुख उद्देश्य आतंकवाद से लड़ना था.वहीं, चीन ने ताइवान मुद्दा उठाते हुए कहा कि भारत के ताइवान के साथ गहरे होते संबंधों से चीन चिंतित है.

पीएम मोदी से मुलाकात: स्थिर संबंधों पर जोर

वांग यी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर राष्ट्रपति शी जिनपिंग का निजी संदेश और SCO सम्मेलन का निमंत्रण सौंपा. प्रधानमंत्री मोदी ने सीमा पर शांति और स्थिरता के महत्व को दोहराया और सीमा विवाद के निष्पक्ष समाधान के लिए भारत की प्रतिबद्धता जताई. उन्होंने कहा कि “स्थिर, विश्वसनीय और रचनात्मक भारत-चीन संबंध” एशिया के साथ-साथ वैश्विक शांति और समृद्धि के लिए आवश्यक हैं.