रतन टाटा के साथ दिखने वाला लड़का कौन है? आखिर उसे अपने बेटे की तरह क्यों मानते थे टाटा?
रतन टाटा से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जिसको लेकर पब्लिक डिस्कोर्स में खास जानकारी उपलब्ध नहीं है. उन्हीं में से एक रतन टाटा के साथ अक्सर दिखने वाले एक लड़के को लेकर भी है. आखिर कौन है वो लड़का जो रतन टाटा के साथ अक्सर नजर आता था?

टाटा सन्स के पूर्व चेयरमैन और दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा का निधन हो गया है. मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में 86 वर्षीय रतन टाटा ने अपनी आखरी सांस ली. उन्हें 8 अक्टूबर की देर रात को ब्लड प्रेशर से संबंधी परेशानी हुई थी जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. रतन टाटा कोई सामान्य उद्योगपति नहीं बल्कि देश के लिए वाकई किसी ‘रतन’ से कम नहीं थे. उन्हें साल 2000 में पद्म भूषण, 2008 में भारत का दूसरा सबसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है.
रतन टाटा से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जिसको लेकर पब्लिक डिस्कोर्स में खास जानकारी उपलब्ध नहीं है. उन्हीं में से एक रतन टाटा के साथ अक्सर दिखने वाले एक लड़के को लेकर भी है. आखिर कौन है वो लड़का जो रतन टाटा के साथ अक्सर नजर आता था?
कौन है रतन टाटा के साथ दिखने वाला लड़का?
क्या आपको मालूम है रतन टाटा के साथ अक्सर दिखाई देने वाले लड़के का उनसे क्या संबंध है? दरअसल उस लड़के का नाम शांतनु नायडू है. शांतनु, रतन टाटा के पर्सनल असिस्टेंट थे. कहा जाता है कि टाटा का शांतनु के साथ काफी लगाव था. टाटा उसे अपने बेटे की तरह मानते थे. शांतनु रतन टाटा के कारोबार के साथ ही उनका निवेश को भी देखता था. वह टाटा कंपनी का जनरल मैनेजर है.
शांतनु ने अमेरिका में की है पढ़ाई
31 वर्षीय शांतनु नायडु एक बिजनेसमैन, इंजीनियर, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, लेखक और एंटरप्रेन्योर हैं. शांतनु ने अपनी एमबीए की पढ़ाई अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय से की है. महाराष्ट्र में जन्मे शांतनु, टाटा ग्रुप में काम करने वाले अपने परिवार की 5वीं पीढ़ी हैं. साल 2018 में पढ़ाई के बाद शांतनु वापस भारत लौटकर टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन ऑफिस में बतौर डिप्टी जनरल मैनेजर काम करने लगे थे.
शांतनु भी हैं कई स्टार्टअप के मालिक
शांतनु की अपनी कंपनी भी है जिसका नाम गु़डफेलो है. यह कंपनी बुजुर्गों को उनके अंतिम वक्त में बेहतर सुविधा देने का काम करती है. इसके अलावा शांतनु की एक एनजीओ भी है जिसका नाम मोटोपॉज है. मोटोपॉज, कुत्तों के लिए रिफ्लेक्टर कॉलर बनाती है जो अंधेरे में चमकते हैं. रिफ्लेक्टर से कुत्तों को सड़क पर होने वाले हादसों से बचाया जाता है. इस एनजीओ को शुरू करने के लिए शांतनु के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे. पिता के कहने पर शांतनु ने रतन टाटा को खुद से पत्र लिखा जिसके बाद टाटा ने मिलने के लिए शांतनु को न्योता भेजा था.
रतन टाटा से कैसे मिले शांतनु
टाटा के साथ अपने मिलने के अनुभव को लेकर शांतनु ने अपनी किताब ‘I came upon a Lighthouse’ में विस्तार से बताया है. शांतनु को कुत्तों से काफी लगाव है. मुंबई के सड़कों पर अक्सर लावारिस कुत्ते सड़क हादसे का शिकार हो जाते थे. इस परेशानी को ठीक करने के लिए शांतनु ने कुत्तों के गले में रिफ्लेक्टर वाले पट्टे डालने का अभियान चलाया था. वहीं दूसरी ओर रतन टाटा को भी कुत्ते काफी पसंद थे. शांतनु के इस अभियान से टाटा काफी प्रभावित हुए थे जिसके बाद उन्होंने खुद फोन करके शांतनु को अपना असिस्टेंट बनने का जॉब पेश किया था.
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