मासूमों की जिंदगी छीनने वाली जहरीली कफ सिरप कई राज्यों में बैन, केंद्र की कानूनी जांच शुरू; दवाओं में था घातक केमिकल

देश में एक खांसी की दवा को लेकर बड़ा बवाल खड़ा हो गया है. बच्चों की मौतों के बाद सरकारें सतर्क हो गई हैं और जांच एजेंसियां भी हरकत में आ गई हैं. हालांकि सवाल अब भी यह है कि आखिर एक सामान्य सी दवा कैसे इतनी खतरनाक साबित हो गई और इसके पीछे कौन जिम्मेदार है.

बच्चों की मौत के बाद खांसी की सिरप पर जांच तेज हो गई है.

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में 14 मासूम बच्चों की संदिग्ध मौतों ने पूरे देश को झकझोर दिया है. बताया जा रहा है कि ये मौतें ‘कोल्डरिफ’ नामक खांसी की दवा पीने के बाद हुईं, जिसे अब राज्य सरकार ने पूरी तरह से बैन कर दिया है. शुरुआती जांच में दवा में जहरीला केमिकल मिलने की पुष्टि हुई है, जिसके बाद तुरंत कार्रवाई की गई.

दवा में मिला जहरीला केमिकल

तमिलनाडु ड्रग कंट्रोल अथॉरिटी ने इस दवा के बैच नंबर SR-13 की जांच की. रिपोर्ट में साफ हुआ कि सिरप में डाइएथिलीन ग्लाइकोल की मात्रा 48.6% पाई गई. यह एक जहरीला रसायन है, जो किडनी फेलियर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है. इसी वजह से छिंदवाड़ा में 7 सितंबर से अब तक 14 बच्चों की जान चली गई, जबकि 6 बच्चे अब भी अस्पतालों में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं. इनमें से तीन की हालत बेहद नाजुक बताई जा रही है.

कई राज्य में बैन

घटना के बाद मध्यप्रदेश, केरल समेत कई राज्यों में खाद्य और औषधि प्रशासन ने तत्काल कदम उठाते हुए पूरे प्रदेश में इस दवा की बिक्री और वितरण पर रोक लगा दी है. सभी मेडिकल स्टोर्स और डिस्ट्रीब्यूटर्स को निर्देश दिया गया है कि स्टॉक तुरंत जब्त कर लिया जाए. साथ ही, निर्माता कंपनी स्रेसन फार्मास्युटिकल्स की अन्य दवाओं को भी जांच के आदेश दिए गए हैं. एमपी में मृत बच्चों के परिजनों को 4-4 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा भी की गई है.

तमिलनाडु सरकार ने भी इस दवा पर रोक लगा दी है. राजस्थान से भी तीन बच्चों की मौत की खबरें सामने आई हैं, जिन्हें लेकर जांच जारी है. इस घटना ने एक बार फिर दवा निर्माण की गुणवत्ता और निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

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देशभर में जांच शुरू

मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने भी कमर कस ली है. उसने देश के छह राज्यों में खांसी की दवाओं और एंटीबायोटिक्स बनाने वाली 19 कंपनियों के यूनिट्स पर ‘रिस्क बेस्ड इंस्पेक्शन’ शुरू कर दिया है. इसके अलावा, पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और नागपुर स्थित एम्स की टीम समेत कई वैज्ञानिक संस्थान बच्चों के सैंपल और दवा की जांच कर रहे हैं ताकि मौतों की असली वजह स्पष्ट हो सके.