व्हाट्सएप की तरह तुरंत मिलनी चाहिए मेडिकल सुविधा, पर्सनलाइज्ड हेल्थकेयर सिस्टम की है जरूरत
टीवी9 नेटवर्क वेलनेस एंड हेल्थटेक समिट में वर्कप्लेस वेलनेस, हेल्थटेक और पर्सनलाइज्ड हेल्थकेयर सिस्टम पर गहन हुई. समिट में इंडस्ट्री लीडर्स ने बताया कि कैसे एआई ड्रिवन एचआर सिस्टम, हाइब्रिड वर्क मॉडल और टेक्नोलॉजी आधारित हेल्थ प्लेटफॉर्म कर्मचारियों की सेहत को नया आकार दे रहे हैं. एक्सपर्ट ने कहा कि आज मेडिकल सुविधाएं व्हाट्सएप की तरह तुरंत, आसान और भरोसेमंद होनी चाहिए.
TV9 Network Wellness & HealthTech Summit: टीवी9 नेटवर्क के वेलनेस एंड हेल्थटेक समिट में वर्कप्लेस वेलनेस और टैलेंट रिटेंशन को लेकर मंथन हुआ. इस कार्यक्रम में ट्रांसफॉर्मिंग वर्कप्लेसेस थ्रू हेल्थटेक एंड वेलनेस विषय पर चर्चा की गई, जिसमें कई चर्चित चेहरे शामिल हुए. इस सेशन में इस बात पर फोकस रहा कि आज जिस तेजी से टेक्नोलॉजी बदल रही है, उसमें एआई ड्रिवन एचआर सिस्टम और हाइब्रिड वर्क मॉडल काफी पॉपुलर हो रहे हैं. ऐसे में इंडस्ट्री लीडर्स इन बदलावों से कैसे डील कर रहे हैं. इस चर्चा में एस एंड पी ग्लोबल की वाइस प्रेसिडेंट (पीपुल) भावना बत्रा, टोटल रिवॉर्ड लीडर्स की सीपिका सिंघल, टोटल रिवॉर्ड एंड वेलबीइंग स्पेशलिस्ट के अनिल पुलापका और एनएचपीसी लिमिटेड के डायरेक्टर (पर्सनल) उत्तम अग्रवाल शामिल हुए.
टेक्नोलॉजी एडवांसमेंट में हो रहा एआई का इस्तेमाल
आज जिस तरह चीजों को एआई ड्राइव किया जा रहा है, उससे लोगों के मन में यह डर भी है कि कहीं उनकी नौकरी न चली जाए. इसी सवाल का जवाब देते हुए उत्तम लाल, डायरेक्टर (पर्सनल) एनएचपीसी ने कई उदाहरण साझा किए. उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामलों में एआई का इस्तेमाल टेक्नोलॉजी एडवांसमेंट के लिए किया जा रहा है, न कि नौकरियां खत्म करने के लिए. उन्होंने मुश्किल टेरेन वाले इलाकों में टेली मेडिसिन के इस्तेमाल पर भी जानकारी दी. टेली मेडिसिन का मतलब होता है बिना अस्पताल गए डॉक्टर से इलाज या सलाह लेना, जो दूरदराज के क्षेत्रों में बेहद उपयोगी साबित हो रहा है.
व्हाट्सएप की तरह मेडिकल सुविधा भी तुरंत मिलनी चाहिए
आज वर्कप्लेस तेजी से बदल रहा है और इसमें कोविड एक बड़ा फैक्टर रहा है. कोविड से पहले की दुनिया अलग थी और कोविड के बाद की दुनिया अलग. ऐसे में हेल्थटेक की दुनिया भी तेजी से बदल रही है. इस पर बात करते हुए भावना बत्रा, वाइस प्रेसिडेंट पीपल एंड एस एंड पी ग्लोबल ने कहा कि आज के समय में टेक्नोलॉजी एक बड़ा सहारा बन चुकी है. जैसे व्हाट्सएप का इस्तेमाल आसान है, वैसे ही मेडिकल सुविधाएं भी आसान और तुरंत मिलनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि अब सेहत सिर्फ बीमारी या इंश्योरेंस तक सीमित नहीं है. इसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक और वित्तीय भलाई सभी शामिल हैं. कंपनियों की जिम्मेदारी है कि वे कर्मचारियों को हर तरह का सपोर्ट दें, सिर्फ इंश्योरेंस तक सीमित न रहें. उन्होंने यह भी बताया कि कंपनी ने एक टेक्नोलॉजी आधारित प्लेटफॉर्म तैयार किया है, जहां कर्मचारी किसी भी डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं, जांच करा सकते हैं और कैशलेस ओपीडी सुविधा का लाभ उठा सकते हैं. यह अब बुनियादी जरूरत बन चुकी है.
पर्सनलाइज्ड हेल्थकेयर सिस्टम की है जरूरत
क्या हेल्थटेक का इस्तेमाल जिस तरह से होना चाहिए, आज उसी तरह हो रहा है? इस सवाल का जवाब देते हुए सीपिका सिंघल, वाइस प्रेसिडेंट इंडिया टोटल रिवॉर्ड लीडर ने कहा कि पहले का समय अलग था. काम ज्यादा स्पष्ट और तय ढांचे में होता था. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पहले घर में एक ही टीवी होता था और पूरा परिवार वही चैनल देखता था. यह “वन साइज फिट्स ऑल” वाला दौर था. उसी तरह पहले हेल्थकेयर भी सभी के लिए एक जैसा होता था.
लेकिन आज समय बदल चुका है. लोग नेटफ्लिक्स, ओटीटी और अपनी पसंद के कंटेंट के आदी हो चुके हैं. एक ही घर में हर व्यक्ति की पसंद अलग है और यही लोग आज और आने वाले समय के कर्मचारी हैं. इसलिए अब हेल्थकेयर में भी बदलाव जरूरी है. उन्होंने कहा कि, अब जरूरत है पर्सनलाइज्ड हेल्थकेयर की, यानी हर कर्मचारी के लिए अलग-अलग विकल्प. कंपनी यह तय नहीं कर सकती कि किसी एक व्यक्ति के लिए क्या सही है. जब इलाज और सुविधाएं व्यक्ति के हिसाब से होती हैं, तभी उन पर भरोसा बनता है. इसमें टेक्नोलॉजी की भूमिका बेहद अहम है.
हेल्थकेयर और वेलनेस का सही तरीके से इस्तेमाल है चुनौती
अनिल पुलकप्पा, टोटल रिवॉर्ड एंड वेलबीइंग स्पेशलिस्ट ने कहा कि भारत जैसे देश में, जहां आबादी करीब 1.5 अरब है, वहां हेल्थकेयर की मांग और आपूर्ति दोनों बहुत बड़ी हैं. इसके बीच इंश्योरेंस, वेलनेस, कंपनियां और आम लोग सभी जुड़े हुए हैं. उन्होंने बताया कि भारत में मेडिकल केयर का बाजार करीब 648 अरब का है और अगले 3 से 4 साल में यह लगभग दोगुना होकर 1.2 ट्रिलियन तक पहुंच सकता है. कोविड के बाद कर्मचारियों और उपभोक्ताओं, दोनों के व्यवहार में बड़ा बदलाव आया है.
पहले सिर्फ अस्पताल में भर्ती यानी आईपीडी पर फोकस था, लेकिन अब ओपीडी भी उतनी ही जरूरी हो गई है. पहले मेडिकल इंश्योरेंस कवर आमतौर पर 3 से 5 लाख का होता था, जो अब बढ़कर 5 से 8 लाख तक पहुंच गया है. उन्होंने कहा कि पहले करीब 20 फीसद लोगों के पास ही इंश्योरेंस था. अब यह स्थिति थोड़ी सुधरी है, लेकिन आज भी करीब 40 फीसद लोग ही इंश्योरेंस का इस्तेमाल कर रहे हैं.
एक बड़ी आबादी ऐसी है जो कम बीमा कवर में है. उन्होंने जोर देकर कहा कि अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि लोग हेल्थकेयर और वेलनेस का सही तरीके से इस्तेमाल कैसे करें. इसके लिए डिजाइन से लेकर इम्प्लीमेंटेशन तक और फिर अनुभव से सीखकर दोबारा सुधार करने का पूरा चक्र जरूरी है.
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