UP ने दिया तुर्किए और अजरबैजान को 2000 करोड़ का झटका, 18000 टूर पैकेज कैंसिल

भारत-पाक युद्ध के बाद पाकिस्तान का समर्थन करने वाले तुर्की और अजरबैजान को भारतीयों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. पूरे देश में Boycott Turkey और Boycott Azerbaijan मुहिम तेजी से फैल रही है. उत्तर प्रदेश, विशेष रूप से पूर्वांचल में हजारों टूर पैकेज रद्द हुए हैं और किन्नौर जैसे भारतीय टूर डेस्टिनेशन को बढ़ावा मिल रहा है.

UP ने दिया टर्की और अजरबैजान को 2000 करोड़ का झटका Image Credit: social media

India’s Trade With Azerbaijan And Turkey: भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया युद्ध और उसके बाद हुए सीजफायर के बाद भले ही सीमाओं पर शांति लौट आई हो, लेकिन पाकिस्तान का साथ देने वाले देशों के प्रति भारत में गुस्सा कम नहीं हो रहा है. सबसे अधिक निशाने पर तुर्किए और अजरबैजान हैं, जिन्होंने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था. अब देशभर में ‘Boycott Turkey’ और ‘Boycott Azerbaijan’ की मुहिम तेजी से फैल रही है, खासकर व्यापार और पर्यटन जगत में इसका प्रभाव साफ देखा जा रहा है.

इस बहिष्कार अभियान से तुर्किए और अजरबैजान को कुल मिलाकर लगभग 32000 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है. इनमें से सबसे ज्यादा प्रभाव अजरबैजान पर पड़ने की आशंका है. यह नुकसान मुख्य रूप से पर्यटन, फलों और सूखे मेवों के आयात, मसालों, चाय और सिरेमिक उत्पादों पर लगाए गए अनौपचारिक प्रतिबंधों के चलते हो रहा है.

यूपी ने दिया 2000 करोड़ का झटका

अकेले उत्तर प्रदेश से इन दोनों देशों को करीब 2000 करोड़ रुपये का झटका लगा है. यूपी से हर साल तुर्की और अजरबैजान के लिए लगभग 30,000 टूर पैकेज बुक होते हैं. अब तक इनमें से 18,000 से अधिक पैकेज निरस्त हो चुके हैं और अगस्त तक यह आंकड़ा 25,000 तक पहुंचने की संभावना है.

पूर्वांचल में असर सबसे ज्यादा

यूपी के पूर्वांचल क्षेत्र से इन देशों में सबसे अधिक पर्यटक जाते हैं. अकेले पूर्वांचल से अब तक 15,000 से अधिक टूर पैकेज रद्द हो चुके हैं. पूर्वांचल के टूर एंड ट्रैवल व्यवसायी अब तुर्की और अजरबैजान के स्थान पर भारत के स्थानीय पर्यटन स्थलों को बढ़ावा दे रहे हैं. ऑल इंडिया टूरिस्ट फेडरेशन के नेशनल कोऑर्डिनेटर अजय सिंह ने टीवी 9 को बताया कि नेशन फर्स्ट मुहिम की शुरुआत पूर्वांचल के पर्यटन क्षेत्र ने की है, जिसमें किन्नौर जैसे डेस्टिनेशन को प्रमोट किया जा रहा है. उनका कहना है कि किन्नौर की खूबसूरती बाकू से कम नहीं है और अब तक इस अभियान को अच्छा रिस्पॉन्स मिला है.

वाराणसी, गोरखपुर, आजमगढ़, मऊ, श्रावस्ती और बहराइच से तुर्की और अजरबैजान जाने वाले पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है. दूसरी ओर, तुर्की और अजरबैजान से हर साल लगभग 10,000 पर्यटक वाराणसी आते हैं. वाराणसी टूरिज्म गिल्ड के सदस्य राशिद खान का कहना है कि जल्द ही किन्नौर में “नो एंट्री” बोर्ड देखने को मिल सकता है क्योंकि तुर्की और अज़रबैजान जाने वाले लोग अब किन्नौर के पैकेज ले रहे हैं और ये हाथों-हाथ बिक रहे हैं. पिछले एक हफ्ते में लगभग 15,000 लोगों ने तुर्की और अज़रबैजान का पैकेज रद्द किया है और सिर्फ दो दिन में ही 2,000 से ज्यादा लोगों ने किन्नौर का टूर बुक किया है.

इकोनॉमी पर पड़ रहा बुरा असर

अजरबैजान की राजधानी बाकू, जो भारतीय सैलानियों के बीच खासा लोकप्रिय है, उसकी जगह किन्नौर को विकल्प के रूप में पेश किया जा रहा है. बाकू और किन्नौर दोनों का जलवायु और भौगोलिक परिस्थिति लगभग समान है. जहां बाकू की यात्रा प्रति व्यक्ति करीब 80,000 रुपये खर्च कराती है, वहीं किन्नौर की यात्रा 30,000 रुपये प्रति व्यक्ति में हो जाती है. अजरबैजान की जीडीपी में पर्यटन क्षेत्र का योगदान करीब 15 फीसदी है, जिसमें 70 फीसदी पर्यटक भारत से ही जाते हैं. ऐसे में वहां की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ना तय माना जा रहा है.

मसाला व्यापारियों ने किया 150 करोड़ रुपये का ऑर्डर कैंसिल

व्यापार क्षेत्र की बात करें तो यूपी के कानपुर की नवीन फल मंडी के व्यापारियों ने तुर्किए और चीन से आयातित फलों, विशेष रूप से सेब का बहिष्कार शुरू कर दिया है. व्यापारियों ने साफ कहा है कि भारत विरोधी देशों से व्यापार करना देशहित के खिलाफ है. सिर्फ फल ही नहीं, मसालों के व्यापारियों ने भी तुर्की और अजरबैजान के उत्पादों का विरोध किया है. बीते एक हफ्ते में करीब 150 करोड़ रुपये के ऑर्डर रद्द किए जा चुके हैं.

इन सामानों पर दिख रहा ज्यादा असर

यूपी में तुर्किए के सेब, सूखे मेवे, कालीन, सिल्क, लिनेन और विशेष मसालों का करीब 1000 करोड़ रुपये का बाजार है. वहीं, अजरबैजान की चाय, कॉफी और सिरेमिक उत्पादों का बाजार भी यूपी में फैला है. इन सभी क्षेत्रों में इस बहिष्कार अभियान से बड़ा असर देखने को मिल रहा है. भारत में नेशन फर्स्ट भावना के तहत शुरू हुआ यह आंदोलन न केवल व्यापारिक और पर्यटन क्षेत्र में बदलाव ला रहा है, बल्कि यह भी स्पष्ट संदेश दे रहा है कि भारत अपने विरोधियों को आर्थिक मोर्चे पर भी जवाब देना जानता है.

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