हेल्थ इंश्योरेंस फ्रॉड में हर साल ₹10,000 करोड़ हो रहे स्वाहा! Medi Assist–BCG की रिपोर्ट ने खोले राज

भारत के हेल्थ इंश्योरेंस सेक्टर में हर साल 8,000–10,000 करोड़ रुपये की भारी भरकम राशि फ्रॉड, फिजूल खर्च और सिस्टम के दुरुपयोग के कारण बर्बाद हो रही है. Medi Assist और BCG की रिपोर्ट बताती है कि रिटेल पॉलिसियां, रीइम्बर्समेंट क्लेम और मिड-टिकट मेडिकल बिल सबसे बड़े फ्रॉड हॉटस्पॉट बन चुके हैं.

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Health Insurance Fraud Claim: भारत के हेल्थ इंश्योरेंस सेक्टर में हर साल लगभग 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये की भारी रकम धोखाधड़ी, फिजूल खर्च और सिस्टम के दुरुपयोग (FWA) के कारण बर्बाद हो रही है. यह खुलासा Medi Assist और Boston Consulting Group की संयुक्त रिपोर्ट में किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार ये वित्तीय लीकेज कुल क्लेम पेआउट का लगभग 8–10 फीसदी हिस्सा खत्म कर देते हैं, जिससे प्रीमियम महंगे हो रहे हैं, बीमा कंपनियों का मार्जिन घट रहा है और सार्वजनिक संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है.

कहां सबसे ज्यादा हो रही है धोखाधड़ी?

मनीकंट्रोल ने रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि हेल्थ इंश्योरेंस में सबसे ज्यादा धोखाधड़ी रिटेल पॉलिसियों, रीइंबर्समेंट क्लेम और मिड-टिकट बिलों (50,000–2.5 लाख रुपये के क्लेम) में देखने को मिलती है.

  • रिटेल पॉलिसियों में रिस्क 20 गुना ज्यादा पाया गया है. इसका मुख्य कारण, पहले से मौजूद बीमारियों को छिपाना और कमजोर वेरिफिकेशन सिस्टम है.
  • रीइंबर्समेंट क्लेम्स में फ्रॉड की संभावना कहीं ज्यादा है, क्योंकि इसमें सदस्य पहले पैसा खर्च करते हैं और बाद में दस्तावेज देकर पैसा वापस मांगते हैं. ऐसे मामलों में दस्तावेजों में हेराफेरी करना आसान होता है और जांच भी काफी कम होती है.
  • मिड-टिकट क्लेम अक्सर फ्रॉड का हॉटस्पॉट होते हैं क्योंकि ये रकम इतनी बड़ी होती है कि छेड़छाड़ का लालच पैदा हो जाए तथा इतनी छोटी कि गहरी जांच की जरूरत न पड़े.

संक्रामक बीमारियों से जुड़े क्लेम सबसे ज्यादा रिस्क वाले

रिपोर्ट के अनुसार, इंफेक्शन या संक्रामक रोगों से जुड़े क्लेम्स में फ्रॉड का रिस्क सबसे ज्यादा है- लगभग छह गुना अधिक. इसका कारण है इनके लक्षणों का अस्पष्ट होना और जांचों पर अधिक निर्भरता, जिससे फर्जी बिलिंग का मौका बढ़ जाता है.

कैसे किया जा रहा है फ्रॉड?

रिपोर्ट में कई तरह की धोखाधड़ी के तरीके सामने आए हैं:

  • फैंटम बिलिंग- ऐसी प्रक्रियाओं के बिल बनाना जो असल में हुई ही नहीं.
  • रूम कैटेगरी का गलत अपकोडिंग- सामान्य कमरे को महंगे कमरे के रूप में दिखाना.
  • वीकेंड पर रोगी को अनावश्यक रूप से रोकना ताकि बिल बढ़ाया जा सके.
  • आइडेंटिटी स्वैप- कोई व्यक्ति दूसरे की पहचान लेकर इलाज करवाता है.

ऐसी धोखाधड़ी पकड़ना मुश्किल इसलिए हो जाता है क्योंकि बीमा कंपनियों और अस्पतालों का डेटा बिखरा हुआ है, जिससे रियल टाइम में संदिग्ध गतिविधियों का पता नहीं चल पाता. अभी ज्यादातर जांच बाद में होती है और मैनुअल होती है, जिससे कई मामलों का शुरुआती स्तर पर पता ही नहीं चलता.

कमजोर कानून और गलत इंसेंटिव

रिपोर्ट का कहना है कि स्वास्थ्य व्यवस्था में इंसेंटिव इस तरह बने हैं कि ज्यादा इलाज और ज्यादा खर्च को बढ़ावा मिलता है न कि बेहतर परिणामों को. यही वजह है कि ओवरबिलिंग “सामान्य प्रैक्टिस” बनती जा रही है. इसके अलावा, भारत में इंश्योरेंस फ्रॉड के लिए कोई अलग कानूनी प्रावधान नहीं है. ज्यादातर मामलों में कार्रवाई नहीं होती, बस क्लेम रिजेक्ट कर दिया जाता है.

क्या है सॉल्यूशन?

फ्रॉड को रोकने के लिए Medi Assist ने MAven Guard नाम का AI-बेस्ड प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है, जो रियल-टाइम में संदिग्ध क्लेम का पता लगा सकता है. इसके साथ ही MAgnum नाम का एक समाधान भी पेश किया गया है, जो अस्पतालों में कैशलेस क्लेम प्रोसेस को डिजिटल और तेज बनाने में मदद करेगा. रिपोर्ट के अनुसार, धोखाधड़ी को रोकने के लिए तीन पीलर्स वाली रणनीति जरूरी है:

  • रोकथाम- कनेक्टेड डेटा और प्रेडिक्टिव मॉनिटरिंग से
  • पहचान- AI और एनॉमली स्कोरिंग से
  • डर पैदा करना- मजबूत कानून और अस्पतालों/ग्राहकों के लिए ट्रस्ट स्कोर बनाकर

रिपोर्ट का अनुमान है कि अगर FWA को 50 फीसदी तक घटा दिया जाए तो सेक्टर का ROE (रिटर्न ऑन इक्विटी) लगभग 35 फीसदी बढ़ सकता है. इससे प्रीमियम कम होंगे और ज्यादा लोगों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस सुलभ हो सकेगा. अगर इस पर तुरंत कार्रवाई नहीं हुई, तो पूरे सेक्टर में प्रीमियम बढ़ने, पॉलिसी लेने वालों की संख्या घटने और स्वास्थ्य सेवाओं के और बिगड़ने का खतरा है. Medi Assist के CEO सतीश गिदुगु का कहना है, “आने वाला दशक कनेक्टेड डेटा और स्मार्ट ऑटोमेशन का होगा. AI अब विकल्प नहीं, भरोसे की रीढ़ बन चुका है.”

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