Women’s Health: महिला स्वास्थ्य के लिए इलाज नहीं, रोकथाम है ज्यादा जरूरी

महिलाएं अक्सर पारिवारिक जिम्मेदारियों में इतनी रमी रहती हैं कि वे अपना स्वास्थ्य नजरअंदाज कर देती हैं, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. नियमित जांच और स्वास्थ्य बीमा को प्राथमिकता देने से महिलाएं अपनी सेहत का ध्यान रख सकती हैं और गंभीर बीमारियों को रोक सकती हैं.

महिलाओं के सेहत की बात Image Credit: Money9live/Canva

अनुराधा श्रीराम: महिलाएं अक्सर अपने प्रियजनों की देखभाल में ऐसी रमी हुई रहती हैं कि वे जाने-अनजाने पारिवारिक जिम्मेदारियों के बोझ तले दब जाती हैं. बच्चों के वैक्सिनेशन की समय-सारणी बनाने से लेकर अपने पति को सालाना डॉक्टर के पास जाने की याद दिलाने और परिवार के बुज़ुर्ग सदस्यों की देखभाल करने तक, उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है. लेकिन इन सभी जिम्मेदारियों को संभालने के दौरान, उनका अपना स्वास्थ्य अक्सर पीछे छूट जाता है.

नियमित जांच की अनदेखी से बढ़ता जोखिम

स्वास्थ्य पर बढ़ते ध्यान के बावजूद नियमित स्वास्थ्य जांच हमेशा महिलाओं द्वारा प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है. मैमोग्राम जैसी जरूरी जांचों को नजरअंदाज करना, अनियमित मासिक धर्म चक्रों का समाधान न करना या लगातार थकान को नजरअंदाज करना गंभीर और लंबे समय तक चलने वाली स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है. गंभीर बीमारियों के बारे में सामान्य जानकारी की कमी एक और बड़ी चिंता है. उदाहरण के लिए मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग पांच में से एक भारतीय महिला पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम पीसीओएस से पीड़ित है, लेकिन कई मामलों में जब तक परेशानी बढ़ न जाए तब तक इसका पता नहीं चलता. इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर, हड्डियों के कमजोर होने और मांसपेशियों के कमजोर पड़ने जैसी समस्याएं, जिन्हें अक्सर मामूली मान लिया जाता है, अगर समय रहते न देखी जाएं तो इनके असर लंबे समय तक रह सकते हैं.

महिलाओं में हृदय रोग और कैंसर की अनदेखी

दिल की बीमारी जिसे पहले आम तौर पर पुरुषों की बीमारी माना जाता था, अब महिलाओं में मौत की एक प्रमुख वजह बन चुकी है. फिर भी बहुत सी महिलाएं अब भी नियमित दिल की जांच नहीं करवाती हैं. एक और गंभीर खतरा है सर्वाइकल कैंसर जिसे समय रहते पहचाना जाए तो रोका जा सकता है. लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण एक सख्त हकीकत दिखाता है. 30 से 49 साल की उम्र की सिर्फ 1.9 प्रतिशत महिलाओं ने ही इसकी जांच करवाई है. जागरूकता और कार्रवाई के बीच का फासला दिखाता है कि महिलाओं की सेहत और उसकी देखभाल के तरीके में तुरंत बदलाव की जरूरत है.

बीमा: एक सक्रिय स्वास्थ्य रक्षा उपकरण

स्वास्थ्य बीमा अब केवल आपात स्थिति में मदद का जरिया नहीं रह गया है. यह अब एक ऐसा साधन बन रहा है जो महिलाओं को अपना ध्यान रखने के लिए प्रेरित करता है. बीमाकर्ता इस सोच को बदल रहे हैं और यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए किसी बड़ी समस्या का इंतजार न करें. आज की पॉलिसियों में सालाना चेकअप शामिल हैं, जिनमें स्तन और सर्वाइकल कैंसर, दिल की सेहत और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की जांच शामिल है.
इसके अलावा बीमा कंपनियां महिलाओं को खास स्वास्थ्य सेवाएं दे रही हैं, जैसे स्त्री रोग विशेषज्ञ से सलाह, हार्मोन से जुड़ा इलाज, पोषण से जुड़ी सलाह और मानसिक स्वास्थ्य की मदद. इस बदलाव से बेहतर देखभाल आसान हो रही है, जिससे महिलाएं बीमारी आने से पहले ही सतर्क हो पा रही हैं.

स्वस्थ जीवनशैली के लिए बीमा में प्रोत्साहन

अब ऐसी बीमा योजनाएं आ गई हैं जो उन महिलाओं को छूट देती हैं जो अपने स्वास्थ्य का नियमित ख्याल रखती हैं. ये योजनाएं फिटनेस की आदतें, तनाव का स्तर और जांच की नियमितता को ट्रैक करती हैं, जिससे महिलाएं सजग रहती हैं. मानसिक और पुरानी बीमारियों को कवर करते हुए यह सोच एक बेहतर बदलाव की ओर इशारा करती है. बीमा कंपनियां अब सिर्फ खर्च भरपाई नहीं कर रहीं, बल्कि बेहतर जीवनशैली को बढ़ावा दे रही हैं.

नियमित देखभाल को आदत बनाने के लिए मिलकर काम करना होगा. ऑफिसों में महिलाओं के लिए सालाना जांच, जिम की रियायती सदस्यता और तनाव कम करने के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. ये उपाय न केवल उत्पादकता बढ़ाते हैं, बल्कि एक ऐसी सोच को बढ़ावा देते हैं जिसमें पहले से सतर्क रहना सामान्य बात है.

कॉर्पोरेट दुनिया से बाहर सरकार और सामाजिक संस्थाएं भी महिलाओं तक पहुंच बना रही हैं, खासकर ग्रामीण और कम आय वाले इलाकों में. प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान जैसी योजनाएं जो मुफ्त जांच देती हैं और किशोरियों के लिए राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसी पहलें महिलाओं की सेहत बेहतर करने में अहम भूमिका निभा रही हैं. इन योजनाओं का विस्तार और उन्हें लंबे समय तक चलाना जरूरी है ताकि ज्यादा महिलाओं तक जरूरी सेवाएं पहुंच सकें.

जल्दी शुरू की गई देखभाल, जीवनभर की सुरक्षा

महिलाओं को चाहिए कि वे निवारक स्वास्थ्य सेवा को अपनी भलाई की दिशा में एक कदम मानें. यह उन्हें एक स्वस्थ और पूरा जीवन जीने में मदद करता है. नियमित जांच का मतलब सिर्फ बीमारियों को जल्द पकड़ना नहीं है, बल्कि समग्र स्वास्थ्य बनाए रखना और गंभीर बीमारियों को पनपने से रोकना भी है.

ये जांच समय रहते इलाज में मदद करती हैं. मैमोग्राम, सर्वाइकल जांच और हड्डियों की जांच जैसी प्रक्रिया संभावित परेशानी को शुरुआत में ही पहचानने में सहायक होती हैं. डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी स्थितियों की निगरानी समय रहते इलाज को संभव बनाती है. पीसीओएस जैसी समस्या की जल्द पहचान और जीवनशैली में बदलाव, बांझपन, चयापचय संबंधी परेशानी और दिल की बीमारी जैसे जोखिमों को घटा सकते हैं.

सामाजिक और मानसिक बाधाएं

कई महिलाएं सामाजिक अपेक्षाओं, पैसों की चिंता और मानसिक अवरोधों की वजह से जांच में देर करती हैं. वे अपने स्वास्थ्य को परिवार की जरूरतों से कमतर समझती हैं और अक्सर शरीर की परेशानियों को नजरअंदाज करती हैं. सेहत को एक खर्च मानने की मानसिकता बन जाती है, जिससे रोकथाम के बजाय इलाज को प्राथमिकता दी जाती है.
लेकिन समय रहते कदम उठाने से जीवनभर की सुरक्षा मिल सकती है. निवारक स्वास्थ्य सेवा महिलाओं को बीमारियों के आने के बाद इलाज कराने की बजाय उन्हें पहले ही टालने में मदद करती है. नियमित जांच, सक्रिय जीवनशैली और डॉक्टर की सलाह दीर्घकालिक सेहत बनाए रखने के जरूरी उपाय हैं.

मूक बीमारियों को नजरअंदाज न करें

ऑस्टियोपोरोसिस, हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसे मूक खतरे अक्सर कोई साफ संकेत नहीं देते, जिससे यह भ्रम हो सकता है कि सब ठीक है. लेकिन रोकथाम को प्राथमिकता देकर महिलाएं अपनी सेहत पर नियंत्रण रख सकती हैं और यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि वे खुद की भी देखभाल करें.

सोच में बदलाव जरूरी

महिलाएं लंबे समय से खुद की सेहत को नजरअंदाज करती आई हैं. पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों के कारण वे पीछे रह जाती हैं. लेकिन अब बदलाव हो रहा है. महिलाओं की सेहत अब केवल इलाज तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि अब इसमें शरीर, मन और भावनाओं का संतुलित ख्याल शामिल है.

सच्चे मायने में सेहत का मतलब है रोकथाम को आदत बनाना, नियमित व्यायाम, अच्छा खानपान और मानसिक स्वास्थ्य की मदद लेना. इसमें परिवार का साथ अहम होता है, वहीं ऑफिस और बीमा कंपनियां भी लचीले लाभ और प्रोत्साहन के जरिए महिलाओं को खुद की देखभाल के लिए प्रेरित कर रही हैं.

जैसे जैसे शारीरिक सेहत पर ध्यान बढ़ रहा है, वैसे ही मानसिक सेहत को लेकर जागरूकता भी बढ़ रही है. निवारक जांच की पहुंच आसान हो रही है. तनाव कम करने के उपाय और महिलाओं के लिए खास नीतियां अब ज्यादा समावेशी और सक्रिय स्वास्थ्य व्यवस्था की ओर इशारा कर रही हैं. ये बदलाव दिखाते हैं कि अब अपनी देखभाल करना अकेले की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज की साझा जिम्मेदारी है. अगर यही दिशा बनी रही तो हम उस भविष्य के करीब होंगे जहां महिलाओं की सेहत को नजरअंदाज नहीं, बल्कि सबसे जरूरी माना जाएगा. और इसका फायदा पूरे परिवार, कामकाजी जगहों और समाज को मिलेगा.

लेखक आदित्य बिड़ला स्वास्थ्य बीमा की मुख्य एक्चुअरी अधिकारी हैं, यहां प्रकाशित विचार उनके निजी हैं.