वेदांता ग्रुप की Sterlite Electric के IPO पर सेबी ने लगाई रोक, नहीं बताई कोई वजह : रिपोर्ट
बाजार नियामक SEBI ने वेदांता समूह की Sterlite Electric के IPO को होल्ड पर डाल दिया है. पिछले महीने ही कंपनी ने DRHP दाखिल किया था, जिसके तहत 78 लाख शेयर नए जारी करने वाली थी और इतने ही शेयर OFS के जरिए बेचकर फंड जुटाने की योजना बना रही थी.
एक तरफ जहां भारतीय शेयर बाजार में IPO की बहार आई हुई है. वहीं, इस दौरान बाजार नियामक सेबी ने वेदांता ग्रुप की Sterlite Electric के पब्लिक इश्यू पर रोक लगाकर बाजार को चौंका दिया है. सेबी की वेबसाइट पर सोमवार को जारी अपडेट के मुताबिक, इस आईपीओ को “kept in abeyance” की कैटेगरी में डाल दिया गया है. हालांकि नियामक ने रोक की वजह का खुलासा नहीं किया है. Sterlite Electric ने सितंबर के आखिरी सप्ताह में ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) दाखिल किया था. कंपनी इश्यू के तहत 78 लाख नए और इतने ही शेयर Offer for Sale (OFS) के तहत बेचकर फंड जुटाने का प्लान बना रही थी.
IPO पर रोक कब और क्यों?
SEBI के पास यह अधिकार है कि वह किसी भी ड्राफ्ट पेशकश को अतिरिक्त जांच के लिए रोक सकता है. आमतौर पर ऐसा तीन मामलों में होता है. पहला, जब जानकारी अधूरी या अस्पष्ट होती है. दूसरा, जब किसी कानूनी या वित्तीय विवाद की जांच लंबित चल रही होती है और तीसरा, जब कंपनी पर नियामकीय निगरानी बढ़ाने की जरूरत महसूस होती है. बहरहाल, वेदांता समूह ने इस संबंध में कोई बयान जारी नहीं किया गया है.
चमकता IPO बाजार
भारत का IPO बाजार इस समय ऐतिहासिक फेज में है. जनवरी से सितंबर 2025 के बीच 240 से ज्यादा कंपनियों ने भारतीय बाजार से करीब 10.5 अरब डॉलर का फंड जुटाया है. इस तरह भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा IPO बाजार बन चुका है. वहीं, अक्टूबर–दिसंबर 2025 की तिमाही में 8 अरब डॉलर तक जुटने का अनुमान है. यानी Sterlite Electric वही समय चुनकर बाजार में उतर रही थी, जब लिस्टिंग गेन, ओवरसब्सक्रिप्शन और भारी रिटेल भागीदारी अपने पीक पर है. ऐसे माहौल में SEBI की यह रोक चौंकाने वाली है.
क्या करती है कंपनी?
Sterlite Electric पावर और इंफ्रास्ट्रक्चर इलेक्ट्रिफिकेशन सॉल्यूशंस में काम करती है और इसे वेदांता ग्रुप के एंट्री-टू-लिस्टेड-डोमेन के नए अध्याय के रूप में देखा जा रहा था. कंपनी के फंड का बड़ा हिस्सा नए प्रोजेक्ट, वर्किंग कैपिटल और डेब्ट रिपेमेंट में इस्तेमाल होना था, जबकि OFS के जरिए प्रमोटर्स अपनी हिस्सेदारी घटाने की तैयारी में थे.