Mutual Fund Expense Ratio में बड़ा बदलाव, SEBI के नए नियमों से Equity, Debt और ETF पर कितना आएगा खर्च?
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने म्यूचुअल फंड के Expense Ratio को लेकर बड़ा बदलाव किया है, जिससे अब निवेशकों को यह साफ-साफ समझ आएगा कि वे फंड मैनेजमेंट के लिए कितना पेमेंट कर रहे हैं और कितना पैसा टैक्स व दूसरे सरकारी शुल्कों में जा रहा है.
म्यूचुअल फंड में निवेश करने वालों के लिए एक बड़ी और राहत भरी खबर है. बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने म्यूचुअल फंड एक्सपेंस रेशियो से जुड़े नियमों में बड़ा बदलाव किया है. इसका सीधा फायदा निवेशकों को मिलने वाला है, क्योंकि अब उन्हें यह साफ-साफ पता चलेगा कि वे फंड मैनेजमेंट के लिए कितना पेमेंट कर रहे हैं और कितना पैसा टैक्स व दूसरी सरकारी चार्ज में जा रहा है.
यह फैसला 17 दिसंबर 2025 को SEBI की बोर्ड मीटिंग में लिया गया. इसी के साथ अब SEBI (Mutual Funds) Regulations, 1996 की जगह SEBI (Mutual Funds) Regulations, 2026 लागू किए जाएंगे.
अब तक क्या दिक्कत थी?
अब तक म्यूचुअल फंड का Expense Ratio सिर्फ फंड मैनेजमेंट फीस तक सीमित नहीं था. इसमें कई तरह के टैक्स और लेवी भी शामिल रहते थे, जैसे STT, GST, स्टांप ड्यूटी और एक्सचेंज फीस. इस वजह से निवेशकों के लिए यह समझना मुश्किल हो जाता था कि वे असल में फंड हाउस को कितनी फीस दे रहे हैं और कितना पैसा सरकारी चार्ज में कट रहा है. ऐसे में SEBI का नया नियम इसी भ्रम को खत्म करने के लिए लाया गया है.
क्या है SEBI का नया सिस्टम ?
SEBI ने अब Base Expense Ratio (BER) की नई व्यवस्था शुरू की है. खास बात ये है कि BER में सिर्फ म्यूचुअल फंड चलाने की मूल लागत शामिल होगी, जैसे – फंड मैनेजमेंट फीस, एडमिनिस्ट्रेशन और ऑपरेशनल खर्च.
BER में क्या शामिल नहीं होगा?
अब कुछ चार्ज अलग से लगाए जाएंगे और BER का हिस्सा नहीं होंगे, इनमें Securities Transaction Tax (STT), Commodity Transaction Tax (CTT) GST, Stamp Duty, SEBI Fees और Exchange Fees.इसका मतलब यह हुआ कि अब Total Expense Ratio (TER)में BER प्लस ब्रोकरेज लागत प्लस वैधानिक टैक्स व लेवी होगा.
कैटेगरी के हिसाब से नए एक्सपेंस लिमिट
SEBI ने अलग-अलग म्यूचुअल फंड कैटेगरी के लिए नई BER सीमा तय की है. इसके तहत:
| कैटेगरी | पहले अधिकतम सीमा | नई BER सीमा |
|---|---|---|
| Index Funds / ETFs | 1.00% | 0.90% |
फंड ऑफ फंड्स (FoFs) के लिए
| FoF कैटेगरी | पहले सीमा | नई BER सीमा |
|---|---|---|
| Liquid / Index / ETF में निवेश | 1.00% | 0.90% |
| 65% से अधिक Equity में निवेश | 2.25% | 2.10% |
| अन्य FoFs | 2.00% | 1.85% |
ओपन-एंडेड इक्विटी ओरिएंटेड स्कीमें के लिए
| AUM स्लैब (₹ करोड़) | पहले TER सीमा | नई BER सीमा |
|---|---|---|
| Up to 500 | 2.25% | 2.10% |
| 750 – 2,000 | 1.75% | 1.60% |
| 2,000 – 5,000 | 1.60% | 1.50% |
| 10,000 – 15,000 | 1.45% | 1.35% |
| Above 50,000 | 1.05% | 0.95% |
ओपन-एंडेड नॉन-इक्विटी स्कीमें (Debt / Hybrid / Others) के लिए
| AUM स्लैब (₹ करोड़) | पहले TER सीमा | नई BER सीमा |
|---|---|---|
| Up to 500 | 2.00% | 1.85% |
| 750 – 2,000 | 1.50% | 1.40% |
| 2,000 – 5,000 | 1.35% | 1.25% |
| 10,000 – 15,000 | 1.20% | 1.10% |
| Above 50,000 | 0.80% | 0.70% |
क्लोज-एंडेड स्कीमें
| स्कीम टाइप | पहले सीमा | नई BER सीमा |
|---|---|---|
| Equity-oriented | 1.25% | 1.00% |
| Non-equity | 1.00% | 0.80% |
ब्रोकरेज चार्ज लिमिट
| ट्रांजैक्शन टाइप | पहले सीमा | नई सीमा |
|---|---|---|
| Cash Market | ~8.59 basis points | 6 basis points |
| Derivatives | ~3.9 basis points | 2 basis points |
ब्रोकरेज चार्ज पर भी सख्ती
SEBI ने ट्रेडिंग लागत कम करने के लिए ब्रोकरेज की सीमा भी घटा दी है. कैश मार्केट में ब्रोकरेज अब 6 बेसिस पॉइंट तक सीमित होगा. वहीं डेरिवेटिव ट्रेड में ब्रोकरेज सीमा 2 बेसिस पॉइंट कर दी गई है. पहले एग्जिट लोड वाली स्कीम्स को 5 बेसिस पॉइंट अतिरिक्त खर्च की अनुमति थी. अब SEBI ने इस अतिरिक्त छूट को पूरी तरह हटा दिया है.
निवेशकों के लिए इसका मतलब क्या है?
SEBI का यह फैसला निवेशकों के हित में एक बड़ा कदम माना जा रहा है. अब निवेशक आसानी से समझ पाएंगे कि उनका पैसा कहां जा रहा है. फंड्स की तुलना ज्यादा पारदर्शी होगी. लॉन्ग टर्म में निवेश की लागत कम होने की उम्मीद है. हालांकि टैक्स और वैधानिक चार्ज पहले की तरह लागू रहेंगे, लेकिन अब वे फंड मैनेजमेंट फीस से अलग दिखेंगे. इससे निवेशकों को म्यूचुअल फंड की असली कीमत समझने में काफी आसानी होगी.
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