2025 में निवेश का नया मंत्र: मल्टी-एसेट और हाइब्रिड फंड से पाएं कम जोखिम में बेहतर रिटर्न!
अगर आप 2025 में अपने निवेश को ज़्यादा संतुलित और सुरक्षित बनाना चाहते हैं, तो मल्टी-एसेट और हाइब्रिड फंड्स आपके पोर्टफोलियो के लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकते हैं. ये फंड्स अलग-अलग एसेट क्लास में निवेश कर जोखिम को कम करते हैं और हर तरह के बाजार हालात में स्थिर रिटर्न पाने का मौका देते हैं.
 
 
            जिरल मेहता | निवेशकों के लिए 2025 में अपने पोर्टफोलियो को सुरक्षित और विविध बनाने का सबसे समझदारी भरा तरीका मल्टी-एसेट और हाइब्रिड फंड्स बन सकते हैं. हाइब्रिड फंड्स और मल्टी-एसेट फंड्स बाजार की स्थिति के अनुसार इक्विटी, डेट और अन्य एसेट्स में निवेश करके जोखिम और रिटर्न के बीच बेहतरीन संतुलन बनाते हैं. अगर आप एक ही निवेश में विविधता और स्थिरता चाहते हैं, तो ये फंड्स आपके लिए बेहतर विकल्प साबित हो सकते हैं. रिपोर्ट में जानें कैसे काम करते हैं ये फंड्स.
हाइब्रिड फंड कैसे करता है काम?
डायनेमिक एसेट एलोकेशन फंड (DAAFs) या बैलेंस्ड एडवांटेज फंड (BAFs) जैसे हाइब्रिड फंड्स बाजार के बदलते हालातों के अनुसार इक्विटी और डेट में निवेश करके जोखिम और मिलने वाले रिटर्न के बीच संतुलन बनाते हैं. ट्रेडिशनल हाइब्रिड फंड्स में इक्विटी और डेट का एक निश्चित अनुपात बरकरार रखा जाता है, लेकिन ये फंड उनसे अलग हैं. ये फंड बाजार के मूल्य, कीमतों में बदलाव की रफ्तार, सरकारी सिक्योरिटीज से मिलने वाले रिटर्न के मुकाबले इनकम और अन्य बड़े आर्थिक संकेतों के आधार पर अपने निवेश को बदलने के लिए संख्यात्मक और गुणात्मक मॉडल (Quantitative and qualitative model) इस्तेमाल करते हैं.
ऐसे फंड्स का सबसे बड़ा फायदा यह है कि वे जरूरत के हिसाब से निवेश को बदल सकते हैं. इक्विटी बाजार के महंगे होने पर फंड मैनेजर व्यवस्थित तरीके से इक्विटी में निवेश को कम कर देते हैं और डेट या आर्बिट्रेज पोजीशन में निवेश बढ़ा देते हैं. इसके विपरीत, जब बाजार का वैल्यूएशन कम होता है, तो ये फंड इक्विटी में निवेश बढ़ा देते हैं. इस तरीके से बाजार के उतार-चढ़ाव का निवेशकों पर असर नहीं होता है और वे उसका फायदा उठा पाते हैं.
संक्षेप में कहा जाए, तो इन फंड्स में निवेश को अलग-अलग बांटने का काम अपने आप ही हो जाता है. इक्विटी बाजार में निवेश करने वाले नए निवेशकों के लिए ये फंड्स एक अच्छी शुरुआत साबित होते हैं, क्योंकि इनमें जोखिम को संभालने की क्षमता पहले से ही मौजूद होती है और वे इक्विटी बाजारों में निवेश का अवसर मुहैया करते हैं. ये फंड्स भावनात्मक आधार पर फैसले लेने और बाजार में सही समय पर पैसे लगाने में होने वाली गलतियों के असर को कम करने में भी मदद करते हैं.
निवेशक जैसे-जैसे समय के साथ अधिक अनुभवी होते हैं और अपने जोखिम उठाने की क्षमता तथा अपने आर्थिक लक्ष्यों को अच्छी तरह से समझ जाते हैं, तब वे धीरे-धीरे अपनी जरूरत के हिसाब से तैयार एसेट एलोकेशन योजनाओं की ओर बढ़ सकते हैं.
मल्टी-एसेट फंड्स कैसे करता है काम?
मल्टी-एसेट फंड्स कम-से-कम तीन अलग-अलग एसेट कैटेगरी में निवेश करके डायवर्सिफिकेशन को एक पायदान और आगे ले जाते हैं, जिनमें हर कैटेगरी में कम-से-कम 10 फीसदी आवंटन किया जाता है. एसेट की स्पेशल कैटेगरी में इक्विटी, डेट, सोना और कभी-कभी अंतर्राष्ट्रीय इक्विटी, रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (REITs), या कमोडिटीज शामिल होते हैं. इसका लक्ष्य एक ऐसा संतुलित पोर्टफोलियो तैयार करना है जो बाजार के हर तरह के माहौल में अच्छा प्रदर्शन करे, क्योंकि एसेट की अलग-अलग कैटेगरी अलग-अलग समय पर बेहतर प्रदर्शन करती हैं.
फंड मैनेजर्स अलग-अलग एसेट्स को मिलाते हैं, जो योजना की निवेश रणनीति, बाजार के रुझान और आर्थिक संभावनाओं पर आधारित होते हैं. इसके अलावा, वे निश्चित आवंटन को बरकरार रखने के साथ-साथ जोखिम-रिटर्न प्रोफाइल को निवेशक के टारगेट के अनुरूप बनाए रखने के लिए समय-समय पर पोर्टफोलियो को नए सिरे से संतुलित भी करते हैं.
पोर्टफोलियो में नए सिरे से संतुलन बनाने से किसी एक एसेट कैटेगरी में अत्यधिक निवेश को रोकने में मदद मिलती है और समय के साथ पोर्टफोलियो भी व्यवस्थित तरीके से चलता रहता है.
जो निवेशक एक ही जगह पर विविधता भरा पोर्टफोलियो चाहते हैं, उनके लिए मल्टी-एसेट फंड सबसे अच्छा समाधान हैं. ये फंड कई सारे फंड्स पर नजर रखने या खुद ही एसेट आवंटन से जुड़े फैसले लेने की जरूरत को खत्म करते हैं, जिससे ये उन लोगों के लिए सुविधाजनक हो जाते हैं जो बेहद आसान तरीके से निवेश करना पसंद करते हैं.
हालांकि, जिन निवेशकों के पास पहले से ही अलग-अलग फंडों या एसेट कैटेगरी में अच्छी तरह से व्यवस्थित पोर्टफोलियो मौजूद है, उन्हें सावधान रहना चाहिए. मल्टी-एसेट फंड को शामिल करने से अनजाने में निवेश का दोहराव हो सकता है, उदाहरण के लिए, इक्विटी या सोने में बहुत अधिक आवंटन हो जाए, जो आपके मनचाहे पोर्टफोलियो का संतुलन बिगाड़ सकता है. इसके अलावा, मल्टी-एसेट फंड्स का प्रबंधन बस एक ही फंड हाउस द्वारा किया जाता है, इसलिए हो सकता है कि निवेशकों को AMC पर अधिक निर्भरता के जोखिम का सामना करना पड़े.
संक्षेप में कह सकते हैं कि, मल्टी-एसेट फंड ऐसे निवेशकों के लिए सबसे सही हैं जो अपने आप विविधता और सरलता चाहते हैं, और जो इन्हें अकेले ही पोर्टफोलियो समाधान के रूप में सबसे बेहतर मानते हैं. पहले से निवेश कर चुके अनुभवी निवेशकों को, इन फंड्स को अपने मुख्य निवेश की तरह बनाने के बजाय इसका इस्तेमाल अपने निवेश से और ज्यादा लाभ कमाने के लिए करना चाहिए.
(लेखिका FundsIndia की सीनियर मैनेजर (रिसर्च) हैं. इस लेख में व्यक्त विचार उनके व्यक्तिगत हैं. )
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