8th pay commission: IAS हो या चपरासी, एक जैसी बढ़ेगी सैलरी, फिटमेंट फैक्टर में 68 साल का सबसे बड़ा बदलाव!
फरवरी में 8वें वेतन आयोग के गठन को मिली मंजूरी के बाद जल्द ही इसे लागू किया जा सकता है, लेकिन इस बीच फिटमेंट फैक्टर में बड़ा बदलाव होने की उम्मीद है. यूनियन की ओर से एक समान फिटमेंट फैक्टर लागू किए जाने की मांग की जा रही है, अगर ये बदलाव लागू होता है तो क्या होगा असर जानिए सारी डिटेल.

8th pay commission fitment factor: 8वां वेतन आयोग जल्द ही गठन हो सकता है. जिसके बाद वह लाखों कर्मचारियों और पेंशनर्स की सैलरी में इजाफा का फॉर्मूला तैयार करेगा. मगर इसी बीच सैलरी स्ट्रक्चर को तय करने में अहम भूमिका निभाने वाले फिटमेंट फैक्टर में अब तक का सबसे बड़ा बदलाव होने की संभावना बन रही है. इसमें IAS अधिकारी से लेकर चपरासी लेवल तक के सभी कर्मचारियों की सैलरी एक समान रूप से बढ़ सकती है. इससे न्यूनतम और अधिकतम सैलरी वालों के बीच की खाई कम करने पर जोर है.
एक समान फिटमेंट फैक्टर होगा लागू !
असल में कर्मचारी यूनियनों ने सभी वेतन बैंड के लिए फिटमेंट फैक्टर को एकसमान किए जाने की मांग की है. नेशनल काउंसिल-जॉइंट कंसल्टेटिव मशीनरी (NC-JCM) के स्टाफ साइड के सचिव शिव गोपाल मिश्रा ने एनडीटीवी से हाल ही में बताया कि 8वें वेतन आयोग में सभी वेतन बैंड के लिए एकसमान फिटमेंट फैक्टर लागू किया जाना चाहिए, चाहे वह पे बैंड 1 हो या पे बैंड 4. इससे न्यूनतम और अधिकतम वेतन के बीच की खाई को कम करने में मदद मिलेगी. अगर यूनियन की बात मानी जाती है तो 68 साल में ये ऐसा पहला मौका होगा, जब फिटमेंट फैक्टर में अब तक का सबसे बड़ा बदलाव होगा.
NC-JCM ने फरवरी में डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग के साथ हुई बैठक में गैर-व्यवहारिक वेतन स्तरों को खत्म करने की मांग भी उठाई थी. यूनियन ने मांग की है कि वेतन स्तर 1 को स्तर 2 के साथ, स्तर 3 को स्तर 4 के साथ, और स्तर 5 को स्तर 6 के साथ मिला दिया जाए. इससे वेतन ठहराव (पे स्टैगनेशन) की समस्या से बचा जा सकेगा, जो कर्मचारियों की करियर प्रोग्रेशन स्कीम को प्रभावित करता है.
क्यों बढ़ रही थी खाई?
फिटमेंट फैक्टर का इस्तेमाल वेतन और पेंशन में संशोधन के लिए किया जाता है. 7वें वेतन आयोग में इस फैक्टर को वेतन बैंड के आधार पर अलग-अलग लागू किया गया था. पे बैंड 1 के लिए फिटमेंट फैक्टर 2.57 था, जबकि उच्च वेतन बैंड के लिए यह 2.62, 2.67 और 2.72 तक बढ़ गया था. यह अंतर ‘रेशनलाइजेशन इंडेक्स’ के आधार पर तय किया गया था, क्योंकि उच्च वेतन बैंड में काम करने वाले कर्मचारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही को अधिक माना जाता है. ऐसे में उनके लिए ये स्केल ज्यादा था. मगर इसमें हर आयोग में होने वाली बढ़ोतरी से न्यूनतम और अधिकतम वेतन पाने वालों के बीच की खाई बढ़ती जा रही थी, इसे ही खत्म करने की 8वें वेतन आयोग में मांग हो रही है.
कैसे तय होता है फिटमेंट फैक्टर?
फिटमेंट फैक्टर का इस्तेमाल सैलरी स्ट्रक्चर तय करने में किया जाता है. इसे मौजूदा सैलरी के बेसिक वेतन से गुणा करके नए वेतन आयोग के तहत रिवाइज किया जाता है. इसमें महंगाई भत्ता, मूल वेतन और कुछ अतिरिक्त भत्ते शामिल होते है. फिटमेंट फैक्टर 1957 में 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन (ILC) के निर्धारित मानदंडों के आधार पर तय किया गया था. इसी के आधार पर 7वें वेतन आयोग की सिफारिशें जनवरी 2016 से लागू की गईं थी, इसमें 2.57 का फिटमेंट फैक्टर लागू किया गया था. इसी दौरान कर्मचारियों और पेंशनर्स की सैलरी में सबसे बड़ा इजाफा हुआ था.
ग्रेड के हिसाब से देखें बेसिक सैलरी स्ट्रक्चर
सभी कर्मचारियों की सैलरी ग्रेड के हिसाब से अलग-अलग होती है, ऐसे में चार्ट से समझते हैं कि 7वें वेतन आयोग के तहत अभी अलग-अलग पे मैट्रिक्स लेवल के हिसाब से बेसिक सैलरी कितनी है.

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