NPCIL से लेकर अमेरिका-जर्मनी तक पहुंच! इस न्यूक्लियर-लिंक्ड कंपनी के शेयरों ने दिया 2896% रिटर्न; सरकारी फैसले के बाद रखें रडार में
सरकार के न्यूक्लियर सेक्टर में प्राइवेट एंट्री के फैसले से कुछ चुनिंदा इंजीनियरिंग कंपनियों के लिए नए मौके बनते दिख रहे हैं. NPCIL के साथ काम का अनुभव, ग्लोबल मौजूदगी और मजबूत ऑर्डर प्रोफाइल वाली एक कंपनी पर निवेशकों की नजर टिक सकती है.
भारत में न्यूक्लियर सेक्टर लंबे समय तक सरकार और सार्वजनिक कंपनियों तक सीमित रहा, लेकिन अब तस्वीर बदलने की राह पर है. केंद्र सरकार ने न्यूक्लियर एनर्जी सेक्टर में प्राइवेट प्लेयर्स के लिए रास्ते खोल दिए हैं. इसका मकसद न सिर्फ बिजली उत्पादन बढ़ाना है, बल्कि टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैन्युफैक्चरिंग में निजी निवेश को भी बढ़ावा देना है. इस बदलते माहौल में कुछ चुनिंदा भारतीय कंपनियां ऐसी हैं, जिनके लिए नए मौके तेजी से बनते दिख रहे हैं. इन्हीं में एक नाम है Kilburn Engineering Ltd.
न्यूक्लियर सेक्टर में किलबर्न की भूमिका
किलबर्न इंजीनियरिंग पहले से ही न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) के साथ काम कर रही है. कंपनी न्यूक्लियर प्लांट्स में इस्तेमाल होने वाले खास तरह के ड्राइंग सिस्टम, हीट एक्सचेंजर्स और प्रोसेस इक्विपमेंट डिजाइन और सप्लाई करती है. न्यूक्लियर सेक्टर में ये सिस्टम बेहद अहम होते हैं क्योंकि यहां हाई सेफ्टी स्टैंडर्ड, सटीक इंजीनियरिंग और लंबे समय तक भरोसेमंद परफॉर्मेंस की जरूरत होती है. किलबर्न की मजबूती यही है कि वह कस्टमाइज्ड और क्रिटिकल एप्लिकेशन के लिए इक्विपमेंट बनाती है, जो न्यूक्लियर जैसे संवेदनशील सेक्टर में जरूरी होता है.
सरकार के फैसले के बाद जब निजी कंपनियां न्यूक्लियर प्रोजेक्ट्स में आएंगी, तो उन्हें अनुभवी इंजीनियरिंग पार्टनर्स की जरूरत होगी. किलबर्न पहले से NPCIL के साथ काम कर चुकी है, इसलिए उसका ट्रैक रिकॉर्ड मजबूत है. इससे कंपनी को नए न्यूक्लियर प्रोजेक्ट्स, इक्विपमेंट सप्लाई और मेंटेनेंस कॉन्ट्रैक्ट्स मिलने की संभावना बढ़ जाती है.
रिलायंस कनेक्शन और वित्तीय ढांचा
रिलायंस इंडस्ट्रीज लंबे समय से न्यूक्लियर एनर्जी में एंट्री की संभावनाएं तलाश रही है. किलबर्न पहले से रिलायंस की क्लाइंट कंपनी है. अगर रिलायंस भविष्य में न्यूक्लियर प्रोजेक्ट्स में कदम रखती है, तो किलबर्न को एक भरोसेमंद सप्लायर और टेक्निकल पार्टनर के तौर पर फायदा मिल सकता है.
वित्तीय तौर पर किलबर्न इंजीनियरिंग का ढांचा मजबूत नजर आता है. वित्त वर्ष 2024-25 में कंपनी की कुल आय करीब 33,800 करोड़ रुपये रही, जबकि प्रॉफिट बिफोर टैक्स लगभग 7,350 करोड़ रुपये रहा. तिमाही और छमाही नतीजों में भी रेवेन्यू और मुनाफे में लगातार बढ़त दिखती है, जो ऑर्डर बुक और ऑपरेशनल मजबूती की ओर इशारा करती है.
ग्लोबल मौजूदगी और शेयरों का हाल
किलबर्न इंजीनियरिंग 20 से ज्यादा देशों में अपनी सेवाएं दे रही है. अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, चीन, ब्राजील, साउथ अफ्रीका और साउथ-ईस्ट एशिया जैसे बाजारों में इसके 3,000 से ज्यादा इंस्टॉलेशन हो चुके हैं. यही वैश्विक अनुभव न्यूक्लियर सेक्टर में इसके लिए एक बड़ा प्लस बन सकता है.
बीते शुक्रवार, यानी 12 दिसंबर को कंपनी के शेयर 569 रुपये पर बंद हुए. बीते पांच वर्षों में कंपनी के शेयरों ने निवेशकों को 2896 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न दे रखा है. कंपनी का 52 वीक हाई और लो क्रमश: 618 और 326 रुपये हैं. कंपनी का मार्केट कैप 2,928 करोड़ रुपये है.
डिस्क्लेमर: Money9live किसी स्टॉक, म्यूचुअल फंड, आईपीओ में निवेश की सलाह नहीं देता है. यहां पर केवल स्टॉक्स की जानकारी दी गई है. निवेश से पहले अपने वित्तीय सलाहकार की राय जरूर लें.
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