मार्केट में बदलाव की तैयारी! SEBI लाएगा क्लोजिंग ऑक्शन सेशन, शेयरों की कीमत तय करने का नया तरीका
भारतीय बाजार नियामक SEBI ने इक्विटी कैश मार्केट में शेयरों की क्लोजिंग प्राइस तय करने के लिए नई व्यवस्था का प्रस्ताव रखा है. मौजूदा वॉल्यूम वेटेड एवरेज प्राइस (VWAP) आधारित पद्धति के बजाय अब क्लोजिंग ऑक्शन सेशन (CAS) लागू करने की तैयारी है.

SEBI Closing Auction Session: सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया यानी SEBI ने इक्विटी कैश मार्केट में शेयरों की क्लोजिंग प्राइस तय करने की प्रक्रिया को बदलने का बड़ा प्रस्ताव रखा है. नियामक ने सुझाव दिया है कि अब दिन के अंत में शेयरों की कीमत तय करने के लिए क्लोजिंग ऑक्शन सेशन यानी CAS आयोजित किया जाए. यह व्यवस्था सबसे पहले अधिक तरलता वाले डेरिवेटिव शेयरों पर लागू की जाएगी और उसके बाद इसे धीरे-धीरे सभी शेयरों तक बढ़ाया जाएगा.
कैसे काम करेगा सेशन?
SEBI ने अपनी कंसल्टेशन पेपर में कहा है कि नया सेशन रोजाना 20 मिनट का होगा और दोपहर 3:15 बजे से 3:35 बजे तक चलेगा. पहले यह योजना थी कि यह प्रक्रिया मार्केट बंद होने के बाद 3:30 से 3:45 बजे तक हो, लेकिन बाद में समय को नियमित ट्रेडिंग के दौरान रखा गया है ताकि ट्रांसपेरेंसी बनी रहे. इस दौरान शेयरों की अंतिम कीमत एक नीलामी जैसी प्रणाली से तय होगी. रेफरेंस प्राइस 3:00 से 3:15 बजे के बीच हुए लेनदेन के वॉल्यूम वेटेड एवरेज प्राइस (VWAP) के आधार पर निकाला जाएगा और कीमत 3 फीसदी ऊपर या नीचे की सीमा में ही तय होगी.
नए सिस्टम में मार्केट ऑर्डर्स को लिमिट ऑर्डर्स पर प्राथमिकता दी जाएगी. वहीं कंटीन्यूअस ट्रेडिंग से बचे हुए लिमिट ऑर्डर्स अपने आप क्लोजिंग ऑक्शन सेशन में चले जाएंगे, हालांकि उन्हें बदला नहीं जा सकेगा, सिर्फ रद्द किया जा सकेगा. ट्रांसपेरेंसी बढ़ाने के लिए सेशन के दौरान वास्तविक समय में आंकड़े सार्वजनिक किए जाएंगे, जैसे इंडिकेटिव प्राइस, कुल खरीद और बिक्री की संख्या तथा डिमांड-सप्लाई का अंतर.
क्यों जरूरी है यह बदलाव?
SEBI का मानना है कि वर्तमान VWAP आधारित क्लोजिंग प्राइस प्रणाली कई बार अस्थिरता बढ़ा देती है, खासकर उन दिनों जब इंडेक्स रीबैलेंसिंग होता है. ऐसे समय बड़े पैमाने पर अंतिम मिनट में हुए सौदे कीमतों को बिगाड़ सकते हैं. इसके विपरीत, क्लोजिंग ऑक्शन सेशन सभी ऑर्डर्स को एक साथ समेटकर अधिक स्थिर और निष्पक्ष अंतिम कीमत सुनिश्चित करता है. यह व्यवस्था विशेष रूप से बड़े और संस्थागत निवेशकों के लिए फायदेमंद होगी, जिन्हें अक्सर बड़े ऑर्डर्स को निष्पादित करने में कठिनाई होती है.
म्यूचुअल फंड्स को चुनौतियों का करना पड़ सकता है सामना
हालांकि, नियामक ने यह भी माना कि पैसिव म्यूचुअल फंड्स को इस प्रणाली से चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. इंडेक्स रीबैलेंसिंग के दिनों में उनके पास अक्सर कैश बैलेंस नहीं होता और क्लोजिंग ऑक्शन में हुए सौदों के बाद उनका कैश नेगेटिव हो सकता है. इस समस्या से निपटने के लिए SEBI ने सुझाव दिया है कि ऐसे फंड्स को ओवरनाइट उधार लेने की अनुमति दी जाए, जिससे वे शॉर्ट-टर्म जरूरतें पूरी कर सकें. SEBI ने कहा है कि डेटा से साफ होता है कि क्लोजिंग ऑक्शन सेशन मौजूदा प्रणाली की तुलना में अधिक स्थिर और कम अस्थिर क्लोजिंग प्राइस देता है. इस पर बाजार सहभागियों और आम जनता से सुझाव और टिप्पणियां 12 सितंबर तक मांगी गई हैं.
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