नो डिलीवरी, नो कॉन्ट्रैक्ट, सेना की जरूरतों के लिए रक्षा मंत्रालय का नया रूल; एक साल में डिलीवर करना अनिवार्य
रक्षा मंत्रालय ने इमरजेंसी डिफेंस खरीद पर नया नियम लागू किया है. अब इस रूट से खरीदे गए हथियार और उपकरण कॉन्ट्रैक्ट साइन होने के एक साल के भीतर डिलीवर करना जरूरी होगा, अन्यथा कॉन्ट्रैक्ट रद्द हो जाएगा. मंत्रालय का यह कदम लद्दाख गतिरोध के दौरान हुई देरी से सबक लेकर उठाया गया है.
Emergency Procurement: भारतीय सेना की इमरजेंसी जरूरतों को तेजी से पूरा करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने नया नियम लागू किया है. अब इमरजेंसी रूट से होने वाली हर खरीद को कॉन्ट्रैक्ट साइन होने के एक साल के भीतर डिलीवर करना अनिवार्य होगा. ऐसा न होने पर कॉन्ट्रैक्ट खुद ही रद्द कर दिया जाएगा. यह कदम पहले से गलतियों से सीख लेते हुए उठाया गया है. 2020 में चीन के साथ लद्दाख में हुए झड़प के दौरान सेना के कई हथियारों की डिलीवरी समय पर नहीं हो पाई थी.
इमरजेंसी खरीद का नया नियम
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नए नियम के अनुसार केवल वही हथियार और गोला बारूद खरीदे जाएंगे, जो बाजार में तुरंत उपलब्ध हों. इन्हें एक साल के भीतर मिलिट्री तक पहुंचाना होगा. रक्षा मंत्रालय का मानना है कि देर से हुई डिलीवरी इमरजेंसी खरीद का उद्देश्य ही खत्म कर देती है.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद मिली इमरजेंसी पावर्स
ऑपरेशन सिंदूर के बाद सरकार ने तीनों सेनाओं को उनकी कैपिटल बजट का 15 फीसदी तक इस्तेमाल कर इमरजेंसी खरीद की छूट दी थी. इसके जरिए हथियार ड्रोन एयर डिफेंस सिस्टम और राडार जैसे सिस्टम खरीदे गए. जून में ही मंत्रालय ने 13 कॉन्ट्रैक्ट्स पर साइन किए जिनकी कीमत लगभग 1982 करोड़ रुपये रही.
गलवान और बालाकोट के बाद भी मिली थी छूट
गलवान घाटी संघर्ष 2020 के बाद सेनाओं को पहली बार 300 करोड़ रुपये तक की कैपिटल खरीद की अनुमति दी गई थी. इससे पहले 2019 के बालाकोट एयर स्ट्राइक और 2016 की उरी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी राजस्व खरीद के लिए इमरजेंसी पावर्स दिए गए थे. इनसे गोला बारूद और जरूरी स्पेयर्स खरीदे गए थे.
सामान्य खरीद में भी लगेगा कम समय
रक्षा सचिव के मुताबिक अब सामान्य डिफेंस प्रोक्योरमेंट प्रक्रिया को पांच छह साल की जगह दो साल में पूरा करने पर जोर है. इसके लिए हर चरण की समय सीमा घटाई जा रही है. फील्ड ट्रायल को एक साल में पूरा करने की कोशिश होगी और यदि कोई सिस्टम किसी दोस्ताना देश की सेना में पहले से इस्तेमाल हो रहा है तो ट्रायल को छोड़ा भी जा सकता है.
डिफेंस एक्विजिशन प्रोसीजर में बदलाव
सरकार डिफेंस एक्विजिशन प्रोसीजर 2020 को भी सरल बनाने पर काम कर रही है. इसके लिए डीजी एक्विजिशन की अध्यक्षता में पैनल बनाया गया है. इसमें कैटेगरी ट्रायल फास्ट ट्रैक प्रोसीजर नई टेक्नोलॉजी जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल और पोस्ट कॉन्ट्रैक्ट मैनेजमेंट को आसान बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है.
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पहले ही घट चुका है टाइमलाइन
मंत्रालय के अनुसार कई स्टेप्स की समय सीमा पहले ही कम कर दी गई है जिससे लगभग 69 हफ्तों की बचत हुई है. कॉन्ट्रैक्ट साइन होने से पहले जानकारी मांगने आवश्यकता तय करने प्रस्ताव जारी करने टेक्निकल वैल्युवेशन और नेगोशिएशन जैसे चरण शामिल होते हैं जिन्हें अब तेजी से पूरा किया जाएगा.