रुपया फिर रिकॉर्ड निचले स्तर पर 88.36 के स्तर पर; क्या होगा मजबूत या आगे भी आएगी गिरावट
भारतीय रुपये की कीमत अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 5 सितंबर को अपने सबसे निचले स्तर 88.36 पर पहुंच गई.सुबह के कारोबार में रुपये की शुरुआत पिछले दिन के बंद भाव 88.15 की तुलना में 5 पैसे बेहतर यानी 88.10 पर हुई थी. लेकिन दिन चढ़ने के साथ रुपये की कीमत में गिरावट आई और यह 88.36 तक पहुंच गया. विदेशी निवेशक भारतीय शेयरों से पैसा निकाल रहे हैं, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ा है.

Rupee slips to record low: भारतीय रुपये की कीमत अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 5 सितंबर को अपने सबसे निचले स्तर 88.36 पर पहुंच गई. यह गिरावट मुख्य रूप से विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से पैसे निकालने और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत के निर्यात पर लगाए गए टैरिफ के दबाव के कारण हुई. हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपये की और गिरावट को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया, जिससे नुकसान को कुछ हद तक कंट्रोल किया गया.
सुबह के कारोबार में रुपये की शुरुआत पिछले दिन के बंद भाव 88.15 की तुलना में 5 पैसे बेहतर यानी 88.10 पर हुई थी. लेकिन दिन चढ़ने के साथ रुपये की कीमत में गिरावट आई और यह 88.36 तक पहुंच गया. विदेशी निवेशक भारतीय शेयरों से पैसा निकाल रहे हैं, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ा है. इसके अलावा, ट्रंप के टैरिफ ने भी भारतीय निर्यात को प्रभावित किया है, जिससे रुपये की कीमत और कमजोर हुई.
एक्सपर्ट ने क्या कहा?
HDFC सिक्योरिटीज के रिसर्च विश्लेषक दिलीप परमार ने बताया कि अमेरिका के टैरिफ के डर से रुपये में गिरावट आई, लेकिन RBI ने संभवत सरकारी बैंकों के जरिए 88.30 के स्तर पर डॉलर बेचकर रुपये को और गिरने से बचाया. उन्होंने आगे कहा कि भारतीय रुपये की कीमत अभी भी कमजोर है क्योंकि डॉलर की मांग और आपूर्ति में असंतुलन बना हुआ है. आज के कारोबार में MSCI रिबैलेंसिंग से कुछ विदेशी पैसे आने के कारण रुपये को थोड़ा सहारा मिला. लेकिन मौजूदा बाजार की स्थिति को देखते हुए रुपये का और नीचे जाना तय लग रहा है. हालांकि, रुपये का 86.50 के स्तर तक पहुंचना अभी दूर की बात है. अल्पकालिक व्यापारी अब व्यापार टैरिफ और GST दरों में बदलाव की घोषणा पर नजर रखेंगे.
एशियाई करेंसी की तुलना में भी कमजोर रहा रुपया
इस साल 2025 में अब तक रुपये का प्रदर्शन अन्य एशियाई करेंसी की तुलना में कमजोर रहा है, जहां कोरियाई वोन 5.74% और चीनी युआन की कीमत में 2.30% की बढ़ोतरी हुई, वहीं रुपये में 2.85% की गिरावट आई. यह दिखाता है कि रुपये पर वैश्विक व्यापार की समस्याओं और टैरिफ का असर ज्यादा रहा है. 4 सितंबर को ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय निर्यातक आरबीआई से मांग कर रहे हैं कि वे अपने अमेरिकी कारोबार से होने वाली कमाई को अस्थायी रूप से मौजूदा दर से 15% कम कीमत पर, यानी लगभग 103 रुपये प्रति डॉलर के हिसाब से बदल सकें. यह मांग ट्रंप के टैरिफ से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए है.
25 फीसदी तक कम किया जा सकता है टैरिफ
MUFG ने अनुमान लगाया कि अगर टैरिफ की स्थिति बनी रही तो साल 2026 की पहली तिमाही तक रुपये की कीमत 89 तक गिर सकती है. हालांकि, उनका मानना है कि अगले साल टैरिफ को 25 फीसदी तक कम किया जा सकता है. इसके अलावा, विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकाल रहे हैं. सितंबर में अब तक 1.4 बिलियन डॉलर निकाले गए हैं. इस साल कुल मिलाकर 16 बिलियन डॉलर से ज्यादा की निकासी हो चुकी है. इस स्थिति में RBI का हस्तक्षेप रुपये को स्थिर रखने में मदद कर रहा है, लेकिन टैरिफ और विदेशी निवेशकों की बिकवाली के कारण रुपये पर दबाव बना हुआ है.
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