भारतीय छात्रों ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ खोला मोर्चा, F1 वीजा को लेकर कोर्ट में दायर की याचिका
अमेरिका में पढ़ाई कर रहे भारतीय और चीनी छात्रों ने ट्रंप प्रशासन के उस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें कोविड-19 के दौरान ऑनलाइन क्लास करने पर F-1 वीजा रद्द कर दिया गया था. छात्रों का आरोप है कि यह पॉलिसी गलत थी और इससे उनके करियर और पढ़ाई पर असर पड़ा है. अब यह मामला अमेरिकी न्याय व्यवस्था के हाथ में है.

Indian Students against Trump Policy: Covid-19 महामारी के दौरान अमेरिकी प्रशासन की ओर से लिए गए एक विवादित फैसले के खिलाफ अब भारतीय और चीनी छात्रों ने अदालत का रुख कर लिया है. मामला उन अंतरराष्ट्रीय छात्रों का है जिनके F-1 वीजा को उस समय रद्द कर दिया गया था जब उनकी यूनिवर्सिटी ने क्लासेज को ऑनलाइन मोड में तब्दील कर दिया था. छात्रों का कहना है कि यह फैसला काफी अचानक लिया गया था साथ ही इसमें भेदभाव भी किया गया था.
विदेशी छात्रों की भविष्य से खिलवाड़
छात्रों की ओर से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि सरकार ने बिना किसी पूर्व वार्निंग के यह निर्णय लिया जिससे हजारों विद्यार्थियों को अमेरिका छोड़ना पड़ा. इसके साथ ही उनकी पढ़ाई, करियर और मानसिक स्थिति पर भी गहरा असर पड़ा. उनका यह भी कहना है कि यह पॉलिसी खासतौर पर विदेशी, यानी गैर-अमेरिकी छात्रों को टारगेट कर रही थी. उनका कहना है कि इसके तहत अमेरिकी छात्रों पर कोई बाध्यता नहीं रखी गई.
संविधान और इमिग्रेशन कानूनों का उल्लंघन
मामले में छात्रों का पक्ष रखने वाले वकीलों ने अदालत को बताया कि यह नीति अमेरिकी संविधान के तहत दिए गए न्याय प्रक्रिया के अधिकार (Due Process) और मौजूदा इमिग्रेशन कानूनों का उल्लंघन करती है. छात्रों का तर्क है कि शिक्षा प्रणाली में समानता और निष्पक्षता होनी चाहिए. इनका होना तब और जरूरी है जब पूरी दुनिया महामारी जैसी आपदा से जूझ रही है.़
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यूनिवर्सिटी और ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन की प्रक्रिया
इस मुद्दे पर कई अमेरिकी यूनिवर्सिटी और ह्यूमन राइट ऑर्गेनाइजेशन ने भी चिंता जाहिर की है. उन्होंने इस पॉलिसी को शिक्षा से बढ़कर एक बड़े सामाजिक और नैतिक सवाल के रूप में देखा है. उनका मानना है कि इस तरह के फैसले न केवल अंतरराष्ट्रीय छात्रों के अधिकारों का हनन करते हैं, बल्कि अमेरिका की ग्लोबल एजुकेशन पोजीशन को भी नुकसान पहुंचाते हैं.
इसको लेकर छात्रों ने कोर्ट में कहा कि महामारी के दौरान जहां उम्मीद थी कि सरकार संवेदनशील फैसले लेगी, उस बीच इस तरह के निर्णय काफी कठोर साबित हुए. अमेरिका को हमेशा से एक ऐसा देश माना गया है जहां दुनिया भर के छात्र हायर एजुकेशन के लिए आते हैं, लेकिन इस फैसले ने उस भरोसे को कमजोर किया है.
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