चीनी की न्यूनतम कीमत और एथेनॉल के प्राइस बढ़ाने पर विचार कर रही सरकार, शुगर मिल्स को होंगे ये फायदे
भारत सरकार शुगर मिलों को राहत देने के लिए चीनी के फ्लोर प्राइस और एथेनॉल रेट बढ़ाने पर विचार कर रही है. बढ़ती गन्ना लागत, सरप्लस स्टॉक और मिलों के भुगतान संकट को देखते हुए प्रस्ताव तैयार हैं. इससे मिलों को घाटा कम करने और किसानों को समय पर भुगतान में मदद मिलेगी.
भारत सरकार घरेलू बाजार में चीनी की न्यूनतम बिक्री कीमत यानी फ्लोर प्राइस को बढ़ाने पर विचार कर रही है. ET की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी और इंडस्ट्री सूत्रों ने बताया कि यह कदम उन शुगर मिलों को राहत देने के लिए तैयार किया जा रहा है जो बढ़ी हुई गन्ना लागत और सरप्लस स्टॉक के दबाव का सामना कर रही हैं. वहीं, सरकार शुगर मिलों से तेल कंपनियों द्वारा खरीदे जाने वाले एथेनॉल के दाम बढ़ाने पर भी विचार कर रही है. यह कदम गन्ना किसानों को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने और शुगर इंडस्ट्री को स्थिर रखने के लिए अहम माना जा रहा है.
क्यों बढ़ाया जाएगा प्राइस
ET ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार शुगर मिलों से तेल कंपनियों द्वारा खरीदे जाने वाले एथेनॉल के दाम बढ़ाने पर भी विचार कर रही है. एथेनॉल को पेट्रोल में ब्लेंडिंग के लिए खरीदा जाता है और इसके दाम बढ़ाने से शुगर मिलों का घाटा कम होगा. इससे मिल्स गन्ना किसानों को बकाया समय पर चुका सकेंगी. ET के मुताबिक, एक सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया है कि एथनॉल और शुगर प्राइस हाइक के प्रस्ताव संबंधित सभी मंत्रालयों की राय लेने के बाद अंतिम निर्णय के लिए तैयार हैं.
लंबे समय मांग कर रही हैं शुगर कंपनियां
शुगर कंपनियां सरकार से लंबे समय से न्यूनतम चीनी कीमत- जो 2019 से ₹31 प्रति किलो निर्धारित है- को बढ़ाने की मांग कर रही हैं जबकि इस अवधि में गन्ने के दाम लगभग 29% बढ़ चुके हैं.
ये भी कर रहे हैं मांग
महाराष्ट्र और कर्नाटक समेत प्रमुख शुगर उत्पादक राज्यों ने भी केंद्र सरकार से फ्लोर प्राइस बढ़ाने की मांग की है ताकि मिलों को किसानों को समय पर भुगतान करने में दिक्कत न हो. नेशनल फेडरेशन ऑफ़ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रकाश नाइकनवरे ने कहा कि यदि चीनी के दाम नीचे रहे तो मिलों के लिए राज्य द्वारा निर्धारित गन्ना मूल्य का भुगतान करना मुश्किल हो जाएगा. उन्होंने कहा कि चीनी और एथेनॉल दोनों की कीमतें बढ़नी चाहिए ताकि मिलों को नुकसान से बचाया जा सके.
एथेनॉल क्षमता से जूझ रहीं मिल्स
इस समय शुगर मिलें अतिरिक्त एथेनॉल क्षमता से भी जूझ रही हैं. मिलों को उम्मीद थी कि इस वर्ष वे 45–50 लाख टन चीनी एथेनॉल निर्माण की ओर डायवर्ट कर सकेंगी लेकिन बायोफ्यूल के कुल आवंटन में से केवल 28% ही शुगर-आधारित एथनॉल उत्पादन में गया है जबकि बाकी चावल और मक्का से चलने वाले ग्रेन-बेस्ड प्लांट्स को मिला है.
पिछले सप्ताह भारत ने नए सीजन के लिए 15 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है. उद्योग से जुड़े अधिकारियों ने कहा कि खाद्य कीमतों में गिरावट के कारण फिलहाल मुद्रास्फीति चिंता का विषय नहीं है जिससे सरकार को चीनी के दाम बढ़ाने की गुंजाइश मिलती है.
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