ऑस्कर तक तो पहुंच गई होमबाउंड, लेकिन क्या खर्च कर पाएगी 100 करोड़, जानें अवार्ड जीतने के पीछे का जोड़-तोड़

Homebound इंटरनेशनल सराहना पाकर ऑस्कर तक पहुंच गई है, लेकिन नॉमिनेशन तक टिके रहने के लिए भारी खर्च करना पड़ता है. बार-बार स्क्रीनिंग, वोटर्स तक स्क्रीनर भेजना, हॉलीवुड मैगजीनों में विज्ञापन, इंटरव्यू, पीआर कैंपेन और निजी स्क्रीनिंग–डिनर जैसे प्रमोशन मिलाकर करीब 100 करोड़ रुपये का बजट लगता है. ऐसे में सवाल है कि क्या Homebound इतनी बड़ी राशि खर्च कर पाएगी.

होमबाउंड

नीरज घेवान की फिल्म Homebound भले ही अपनी गहराई, भावनाओं और सादगी की वजह से इंटरनेशनल लेवल पर तारीफें बटोरते हुए ऑस्कर के गलियारों तक पहुंच गई हो, लेकिन नॉमिनेशन तक पहुंचने और वहां टिके रहने की दौड़ बेहद महंगी होती है. लॉस एंजेलिस में बार-बार स्क्रीनिंग करवाना, वोटर्स को स्क्रीनर भेजना, हॉलीवुड की बड़ी मैगजीनों में विज्ञापन देना, इंटरव्यू कराना, पीआर चलाना और वोटर्स के साथ निजी स्क्रीनिंग व डिनर आयोजित करना इन सब पर करीब 100 करोड़ रुपये तक का खर्च आ जाता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या Homebound इतनी बड़ी रकम खर्च कर पाएगी.

कैंपेनिंग की वास्तविक कीमत

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि उन्होंने कई ऐसे हॉलीवुड निर्देशक से बातचीत की है जिनकी फिल्में पहले ऑस्कर में नॉमिनेट हो चुकी हैं. इन निर्देशकों के अनुसार, ऑस्कर कैंपेनिंग की शुरुआत ही लगभग 15 से 20 करोड़ रुपये से होती है, जबकि बड़ी और हाई-प्रोफाइल फिल्मों का खर्च 80 से 100 करोड़ रुपये तक पहुंच जाता है. हर साल दुनिया भर की फिल्मों का कुल कैंपेन खर्च मिलाकर लगभग 10 करोड़ डॉलर से 50 करोड़ डॉलर तक हो जाता है. ऐसे में यह साफ नजर आता है कि Homebound जैसी फिल्म, जिसने भारत में मुश्किल से तीन करोड़ रुपये कमाए हैं, इतनी भारी-भरकम कैंपेनिंग राशि कैसे जुटा पाएगी.

क्या ऑस्कर तक पहुंचाने के लिए सरकार भी कोई मदद करती है

भारत सरकार की ओर से Film Promotion Fund के तहत कुछ मदद दी जाती है, लेकिन वह सिर्फ एक करोड़ रुपये तक सीमित होती है. इतने बड़े स्तर की दौड़ के लिए यह सहायता लगभग प्रतीकात्मक ही मानी जाती है, क्योंकि वास्तविक जरूरत पंद्रह करोड़ से लेकर सौ करोड़ रुपये तक की होती है. इस वजह से सिर्फ सरकारी मदद पर निर्भर रहना बिल्कुल संभव नहीं होता.

International Feature वाली कैटेगरी की चुनौती

Homebound जिस कैटेगरी में भेजी गई है, वह ऑस्कर की सबसे कठिन कैटेगरी मानी जाती है. इसमें वोटर्स को दुनिया भर की हर फिल्म देखनी होती है और वोट देने वाले एक ही जॉनर या एक ही उम्र के लोग नहीं होते. अधिकांश वोटर्स 65 साल से ऊपर के हैं और सांस्कृतिक रूप से उनकी पसंद अलग तरह की होती है, इसलिए हर फिल्म को खुद को समझाने का अतिरिक्त संघर्ष करना पड़ता है.

Homebound के पास क्या ताकतें हैं

इस फिल्म को कान, टोरंटो और मेलबर्न जैसे बड़े फेस्टिवलों में पहले से पहचान मिली है. नीरज घेवन की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और मार्टिन स्कॉर्सेसे का समर्थन भी Homebound की ताकत है. ये चीजें फिल्म को ऑस्कर वोटर्स की नजर में जल्दी लाती हैं और प्रतियोगिता में उसे एक गंभीर दावेदार बनाती हैं.

मुकाबला किन फिल्मों से है

इस बार Homebound की टक्कर नॉर्वे की Sentimental Value, ब्राजील की The Secret Agent और दक्षिण कोरिया की No Other Choice जैसी मजबूत फिल्मों से है. लॉस एंजेलिस में हर स्टूडियो और हर देश अपने सबसे आक्रामक प्रमोशन मोड में है और लगभग सभी स्क्रीनिंग रूम भरे रहते हैं, जिससे प्रतियोगिता और भी तीखी हो जाती है.

फिल्म की कमाई का ऑस्कर से कोई संबंध नहीं

हालांकि ऑस्कर वोटर्स को यह पता नहीं होता कि किसी फिल्म ने अपने देश में कितना कमाया. उनके लिए सिर्फ इतना महत्वपूर्ण है कि फिल्म उन्हें दिखाई जाए और उन्हें वह पसंद आए. इसलिए Homebound का भारत में कम कमाना उसके नॉमिनेशन की राह में बाधा नहीं बनता, लेकिन समस्या सिर्फ यही है कि फिल्म को वोटर्स तक पहुंचाने के लिए जिस बड़े कैंपेन की जरूरत है, उसके लिए भारी बजट चाहिए.

सेंसरशिप विवाद और कट्स का असर

एक बात और है कि CBFC ने फिल्म का कट-डाउन वर्जन पास किया था, लेकिन रिपोर्ट्स के अनुसार भारत वाले वर्जन और अंतरराष्ट्रीय वर्जन में कोई बड़ा अंतर नहीं है. इसलिए कहानी या प्रभाव पर सेंसरशिप का कोई खास असर नहीं पड़ता. Homebound कहानी, निर्देशन, भावनाओं और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के मामले में बेहद मजबूत फिल्म है.

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