लंबे समय तक सस्ती रह सकती हैं ब्याज दरें, RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने दिया संकेत
देश की अर्थव्यवस्था को लेकर सेंट्रल बैंक ने ताजा संकेत दिए हैं. ग्रोथ, वैश्विक हालात और नीतिगत फैसलों के बीच आने वाला समय बेहद अहम माना जा रहा है. अमेरिका की ओर से लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ, बढ़ता ट्रेड डेफिसिट और कमजोर होता रुपया चिंता का विषय बने हुए हैं. निवेशकों और आम लोगों, दोनों के लिए यह संकेत खास मायने रखते हैं.
भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय जिस रफ्तार से आगे बढ़ रही है, उसे देखते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा को लगता है कि ब्याज दरों का मौजूदा दौर लंबे समय तक बना रह सकता है. उनका कहना है कि ग्रोथ मजबूत है और अमेरिका व यूरोप के साथ संभावित ट्रेड डील से अर्थव्यवस्था को और सहारा मिल सकता है. इसी भरोसे के साथ RBI ने हाल के महीनों में लगातार दरों में कटौती की है और आगे भी बहुत बड़े बदलाव की संभावना फिलहाल कम नजर आती है.
लंबे समय तक ‘लो इंटरेस्ट रेट रेजीम’
ब्रिटिश अखबार फाइनेंशियल टाइम्स से बातचीत में संजय मल्होत्रा ने कहा कि RBI के अनुमान बताते हैं कि ब्याज दरें “लंबे समय तक कम रहनी चाहिए.” दिसंबर 10 को गवर्नर का पद संभालने के बाद से अब तक वह कुल 125 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर चुके हैं. इसी महीने RBI की अगुवाई वाली मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी ने सर्वसम्मति से रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर इसे 5.25 फीसदी कर दिया. इसका मकसद ऐसी अर्थव्यवस्था को सपोर्ट करना है, जहां न बहुत ज्यादा गर्मी हो और न मंदी का खतरा.
हालांकि गवर्नर ने यह भी साफ किया कि RBI के मौजूदा आर्थिक अनुमान अमेरिका और यूरोप के साथ संभावित ट्रेड समझौतों के असर को शामिल नहीं करते. उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ लंबित ट्रेड डील का असर ग्रोथ पर करीब आधा फीसदी तक हो सकता है. जुलाई से अमेरिका के साथ बातचीत चल रही है, जबकि यूरोपीय यूनियन के साथ समझौता लगभग पूरा होने की स्थिति में है.
सितंबर तिमाही में GDP ग्रोथ 8.2 फीसदी रही, जिसने खुद RBI को भी चौंका दिया. गवर्नर ने माना कि केंद्रीय बैंक ने उस तिमाही के लिए 7 फीसदी ग्रोथ का अनुमान लगाया था और अब “हमें अपनी फोरकास्टिंग बेहतर करनी होगी.” पहली छमाही में अर्थव्यवस्था ने करीब 8 फीसदी की मजबूत रफ्तार दिखाई, जिसके बाद पूरे वित्त वर्ष के लिए ग्रोथ अनुमान बढ़ाकर 7.5 फीसदी किया गया.
रुपये और ट्रेड घाटे पर दबाव
दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद देश पर कुछ दबाव भी हैं. अमेरिका की ओर से लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ, बढ़ता ट्रेड डेफिसिट और कमजोर होता रुपया चिंता का विषय बने हुए हैं. रुपया मंगलवार को डॉलर के मुकाबले 91.14 के रिकॉर्ड निचले स्तर तक फिसल गया और साल की शुरुआत से अब तक 6.2 फीसदी से ज्यादा टूट चुका है.
IMF की टिप्पणी और RBI का रुख
आधिकारिक आंकड़ों की गुणवत्ता पर उठ रहे सवालों के बीच, IMF ने हाल ही में देश के फॉरेक्स रेजीम को “क्रॉल-लाइक अरेंजमेंट” की कैटेगरी में रखा है. इसका मतलब है कि रुपया अब पहले के मुकाबले ज्यादा लचीलापन दिखा रहा है और धीरे-धीरे कंसॉलीडेट करता है. गवर्नर ने कहा कि आंकड़ों में कुछ मार्जिन ऑफ एरर हमेशा रहता है, क्योंकि बाद में संशोधन होते हैं, लेकिन कुल मिलाकर आंकड़े मजबूत हैं.
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RBI का जोर किसी तय स्तर पर रुपया रोकने के बजाय “अत्यधिक उतार-चढ़ाव” को संभालने पर है. हाल ही में हस्तक्षेप कर RBI ने रुपये को एक दिन में 1.03 फीसदी मजबूत किया, जो सात महीनों में सबसे बड़ी तेजी रही. IMF के मुताबिक, नए नेतृत्व में रुपये की वोलैटिलिटी बढ़ी है, जो बदलती नीति का संकेत है.
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