चीन को टक्कर देने उतरे अंबानी! तगड़ा है ये प्लान, जल्द शुरू होगी इसके लिए बड़ी फैक्ट्री

भारत की नवीकरणीय ऊर्जा योजनाओं के बीच एक बड़ी इंडस्ट्री ने अपनी अगली पहल की घोषणा की है. आने वाले समय में यह कदम देश की सोलर क्षमता को नई दिशा दे सकता है. इससे जुड़े कुछ अहम विवरण हाल ही में एक वरिष्ठ अधिकारी ने साझा किए हैं.

रिलायंस इंडस्ट्रीज Image Credit: FreePik

देश में गैर-जीवाश्म ऊर्जा (Non-fossil energy) की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने की कोशिशों के बीच, रिलायंस इंडस्ट्रीज इस साल अपनी सोलर फोटावोल्टिक (Photovoltaic) मॉड्यूल फैक्ट्री शुरू करने जा रही है. कंपनी ने साफ संकेत दिए हैं कि वह आने वाले वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में अपनी भूमिका को और मजबूत करना चाहती है.

20 गीगावॉट की वार्षिक क्षमता का लक्ष्य

रॉयटर्स ने रिलायंस के प्रेसिडेंट (स्ट्रैटेजी एंड इनिशिएटिव्स) पार्थ पी. मैत्रा हवाले से कहा है कि कंपनी तीन बड़ी फैक्ट्रियों पर काम कर रही है, जिनमें एक सोलर मॉड्यूल फैक्ट्री भी शामिल है. कंपनी का लक्ष्य आने वाले वर्षों में सोलर मॉड्यूल उत्पादन क्षमता को 20 गीगावॉट प्रतिवर्ष तक ले जाना है.

मैत्रा ने बातचीत में कहा कि अगर यह योजना सफल होती है, तो रिलायंस दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सोलर PV निर्माता बन सकती है. कंपनी का अनुमान है कि वह चीन के बाहर बनने वाले कुल सोलर PV मॉड्यूल का 14% उत्पादन करेगी.

बैटरी और इलेक्ट्रॉनिक्स फैक्ट्री भी लाइन में

इसके साथ ही रिलायंस की बैटरी और माइक्रो पावर इलेक्ट्रॉनिक्स फैक्ट्री अगले साल से चालू होने की उम्मीद है. ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को 2030 तक 500 गीगावॉट नॉन-फॉसिल पावर क्षमता हासिल करनी है, जिसके लिए अगले 5 साल में मौजूदा निवेशों से दुगना निवेश और क्षमता विस्तार जरूरी होगा. ऐसे में रिलायंस इंडस्ट्रीज का ये प्रोजेक्ट अगर पूरी तरह सफल होता है और वो अपना टारगेट हासिल कर लेते हैं तो ये भारत के लिए राहत की बात होगी.

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क्या होती है सोलर फोटावोल्टिक मॉड्यूल फैक्ट्री?

सोलर फोटावोल्टिक मॉड्यूल फैक्ट्री वह जगह होती है जहां सूरज की रोशनी को बिजली में बदलने वाले सोलर पैनल बनाए जाते हैं. इन पैनलों को “फोटावोल्टिक मॉड्यूल” कहा जाता है क्योंकि ये सूरज की रोशनी को सीधे बिजली में बदलने की तकनीक पर काम करते हैं. फैक्ट्री में सिलिकॉन जैसे खास मटेरियल से बने सोलर सेल तैयार किए जाते हैं, फिर कई सेल मिलाकर एक बड़ा पैनल (मॉड्यूल) बनाया जाता है. इन्हीं पैनलों का इस्तेमाल घरों, दफ्तरों और बड़े सोलर प्लांट्स में किया जाता है ताकि बिना कोयला या गैस जलाए बिजली बनाई जा सके.