बांग्लादेश: कर्ज चुकाने के पैसे नहीं, वहां 200 रुपये भी कमाना मुश्किल, चीन के भरोसे भारत से कब तक लड़ेगा

बांग्लादेश की आर्थिक हालात इन दिनों चर्चा में हैं. अंतरराष्ट्रीय मंचों से मदद मांगने से लेकर कूटनीतिक समीकरणों तक, बांग्लादेश की रणनीतियां बदली-बदली सी नजर आ रही हैं. भारत और चीन के बीच उसकी भूमिका अब सिर्फ पड़ोसी देश की नहीं, बल्कि एक बड़े भू-राजनीतिक खेल का हिस्सा बनती दिख रही है.

बांग्लादेश की माली हालत खस्ता Image Credit: FreePik

India Pakistan Tension: जब कोई देश आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा हो, अंतरराष्ट्रीय मदद मांग रहा हो और उसके नागरिकों की आजीविका संकट में हो. ऐसे समय में वह पड़ोसी देशों से रिश्तों को लेकर आमतौर पर सतर्कता बरतता है. लेकिन ये बात पाकिस्तान और बांग्लादेश के पल्ले नहीं पड़ती, क्योंकि ये दोनों देश चीन के कंधे पर चढकर भारत से टकराव की राह पकड़ रहे हैं. हालांकि इस रिपोर्ट में हम केवल बांग्लादेश का जिक्र करेंगे जो न केवल अपनी बयानबाजी से बल्कि अपने फैसलों से चीन के करीब हो रहा है और भारत के साथ व्यापारिक व राजनीतिक रिश्तों में कटुता बढ़ाता जा रहा है.

इस रिपोर्ट में हम जानेंगे कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था फिलहाल किन हालात में है, वह IMF से मदद क्यों मांग रहा है, भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों में क्या दरार आई है और चीन के साथ उसकी बढ़ती नजदीकियां इस पूरे परिदृश्य को कैसे प्रभावित कर रही हैं.

अर्थव्यवस्था पर भारी संकट, बढ़ती गरीबी और IMF की चौखट पर बांग्लादेश

विश्व बैंक (World Bank) की हालिया रिपोर्ट में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को लेकर जो अनुमान जारी किए गए हैं, वे चिंताजनक हैं. जनवरी 2025 में जहां 4.1 फीसदी की ग्रोथ की उम्मीद जताई गई थी लेकिन IMF ने हालिया आंकड़ें में बताया कि ये ग्रोथ घटकर 3.3 फीसदी पर आ गई है. इसका सीधा असर आम जनता पर पड़ रहा है.

World Bank की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश की चरमराई अर्थव्यवस्था से कम आय वाले परिवार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. करीब 4 फीसदी लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं और मजदूरी में भी गिरावट दर्ज की गई है. सिर्फ यही नहीं, अत्यधिक गरीबी (Extreme Poverty) की दर जो पहले 7.7 फीसदी थी, वह 2025 तक 9.3 फीसदी तक पहुंचने की आशंका है. यानी देश में अत्यंत गरीबी में जीने वाले लोगों की संख्या 3 मिलियन यानी 30 लाख तक बढ़ सकती है. यह वो लोग होंगे जो प्रतिदिन महज 2.15 डॉलर या उससे कम पर जीवन यापन करेंगे. देश पर वर्तमान में 100 अरब डॉलर से अधिक का बाहरी कर्ज है और विदेशी देनदारियों को चुकाने के लिए उसे 3 अरब डॉलर और बाढ़ पुनर्वास के लिए 30 करोड़ डॉलर के मदद की जरूरत है. ऐसे में मौजूदा वक्त में देश का डेब्ट रेशियो करीब 23 फीसदी है.

इन संकटों के बीच ऐसे में बांग्लादेश ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 762 मिलियन डॉलर की अतिरिक्त सहायता मांगी है. अगर यह राशि मंजूर होती है, तो IMF से अब तक कुल 4.1 अरब डॉलर की मदद उसे मिल चुकी होगी. लेकिन इसके लिए उसे टैक्स सुधार और मुद्रा विनिमय प्रणाली में पारदर्शिता जैसे कई कड़े आर्थिक सुधार लागू करने होंगे.

भारत-बांग्लादेश व्यापारिक तनाव और उसका असर

इस आर्थिक दबाव के बीच बांग्लादेश ने बीते कुछ महीनों में भारत के कई उत्पादों पर सीमाएं लगाईं- जैसे चावल, यार्न और अन्य जरूरी वस्तुएं. साथ ही, भारत से होकर गुजरने वाले माल पर पहली बार ट्रांजिट शुल्क लगाया गया जिससे व्यापारिक रिश्तों में खटास आई.

इसके जवाब में भारत ने अप्रैल 2025 में बांग्लादेश से होने वाले करीब 770 मिलियन डॉलर के आयात पर बंदिशें लगा दीं. खासतौर पर रेडीमेड गारमेंट्स जैसे प्रमुख उत्पादों को अब केवल दो बंदरगाहों (नावा शेवा और कोलकाता) से ही लाया जा सकता है, सभी लैंड रूट बंद कर दिए गए हैं. इस फैसले का सीधा असर बांग्लादेश के सबसे बड़े एक्सपोर्ट सेक्टर पर पड़ा है.

2023-24 में भारत ने बांग्लादेश से 1.89 अरब डॉलर का आयात किया था, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा रेडीमेड गारमेंट्स का था. लेकिन अब इन पर नई बंदिशों से बांग्लादेश की फैक्ट्री यूनिट्स और श्रमिकों पर बड़ा असर पड़ सकता है. GTRI (Global Trade Research Initiative) के मुताबिक, यह प्रतिबंध बांग्लादेश के लिए बड़ा झटका है क्योंकि भारत उसका सातवां सबसे बड़ा आयातक देश है.

बदलते समीकरण, चीन के करीब जाता बांग्लादेश

ऐसे समय में जब बांग्लादेश को अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए वैश्विक मदद की दरकार है, वह भारत के बजाय चीन की ओर तेजी से झुकाव बढ़ा दिया है.

2023-24 में बांग्लादेश के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 25 फीसदी से ज्यादा रही, जो छह साल पहले 20 फीसदी से थोड़ी अधिक थी. हालांकि चीन को बांग्लादेश का निर्यात घटा है, लेकिन घरेलू बाजार में चीनी सामान का बोलबाला है. मार्च 2025 में बांग्लादेश के अंतरिम सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने बीजिंग का दौरा किया और चीन के साथ नौ बड़े समझौतों पर हस्ताक्षर किए. इनमें एक अहम सौदा था- तीस्ता नदी परियोजना में चीन की भागीदारी का. ये वही परियोजना है जिसे पहले भारत के सहयोग से आगे बढ़ाया जाना था.

इसके अलावा, चीन ने मोंगला बंदरगाह के विस्तार के लिए 400 मिलियन डॉलर, चटगांव के आर्थिक जोन के लिए 350 मिलियन और तकनीकी सहायता के तौर पर 150 मिलियन डॉलर देने का ऐलान किया.

कड़वाहट की शुरुआत कहां से हुई?

भारत और बांग्लादेश के बीच हालिया कड़वाहट की असली शुरुआत उस बयान से मानी जा रही है, जो यूनुस ने मार्च में चीनी अधिकारियों के साथ एक बैठक में दिया था. 28 मार्च को चीन के साथ एक अधिकारिक बैठक में उन्होंने कहा, “भारत का पूर्वोत्तर हिस्सा यानी सेवन सिस्टर्स एक लैंडलॉक्ड इलाका है और उसे समुद्र तक पहुंच सिर्फ बांग्लादेश से मिल सकती है. हम ही इस क्षेत्र के समुद्र के रक्षक हैं ”

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यूनुस ने आगे कहा, “बांग्लादेश चीन की अर्थव्यवस्था का विस्तार बन सकता है. वहां निर्माण हो, उत्पादन हो और फिर दुनिया को निर्यात हो.” ये बयान भारत के रणनीतिक प्रभाव को चुनौती देने वाला था और BIMSTEC जैसे मंचों पर उसकी केंद्रीय भूमिका को दरकिनार करने की कोशिश भी.

यही नहीं, उनकी चीन यात्रा के दौरान दोनों देशों ने नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें इंफ्रास्ट्रक्चर, तकनीकी सहयोग, स्वास्थ्य और संस्कृति शामिल हैं.

संकट में डूबा बांग्लादेश कूटनीतिक संतुलन खो रहा है?

बांग्लादेश इस समय आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक तीनों मोर्चों पर दबाव में है. देश में महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी बढ़ रही है, विदेशी कर्ज का बोझ भारी है और राजनीतिक अस्थिरता भी बनी हुई है. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे वक्त में भारत जैसे पुराने साझेदार से संबंधों में तनाव पैदा करना और चीन पर अत्यधिक निर्भरता खतरनाक दांव साबित हो सकता है. चीन पर निर्भरता इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि जब पड़ोसी देश श्रीलंका पर संकट के बादल छाए तो चीन ने अपना हाथ छुड़ा लिया वहीं भारत ने आगे बढ़कर श्रीलंका को हर तरीके से मदद दी.