सहारा-अडानी डील में फंसा पेंच, ₹12000 करोड़ का प्लान अटका; जानें रुकी सैलरी पर क्या हुआ फैसला
सहारा समूह और अडानी प्रॉपर्टीज के बीच होने वाला 12,000 करोड़ रुपये का एसेट सेल डील फिलहाल रुक गई है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय मांगा, जिससे न सिर्फ डील की प्रक्रिया थमी बल्कि सहारा कर्मचारियों की अटकी सैलरी का फैसला भी टल गया.
Sahara-Adani Asset Deal and SC SEBI: सहारा ग्रुप की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ गई हैं. अडानी प्रॉपर्टीज के साथ होने वाला 12,000 करोड़ रुपये का बड़ी एसेट सेल डील फिलहाल अटक गई है, क्योंकि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करने के लिए और समय मांग लिया है. इसके चलते न सिर्फ डील की डेवलपमेंट थम गई, बल्कि सहारा कर्मचारियों की लंबे समय से अटकी सैलरी का फैसला भी टल गया है. सोमवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कहा कि सरकार को मामले की जटिलता और इससे जुड़े निवेशकों-सहकारी समितियों पर प्रभाव को देखते हुए विस्तृत जवाब तैयार करने में अतिरिक्त समय चाहिए.
अदालत ने उनकी मांग मानते हुए अगली सुनवाई 6 हफ्तों बाद तय कर दी. इसका सीधा मतलब है कि सहारा के कर्मचारियों को अभी अपनी बकाया तनख्वाह के लिए इंतजार कुछ और समय के लिए जारी रखना होगा.
क्या है सहारा–अडानी का 12,000 करोड़ वाला सौदा?
भयानक आर्थिक संकट से घिरे Sahara India Commercial Corporation Ltd (SICCL) ने सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मांगी है कि वह अपनी 88 संपत्तियां- जिनमें Aamby Valley, Hotel Sahara Star, Sahara Shaher, Sahara Ganj और कई बड़े लैंड पार्सल शामिल हैं, अडानी प्रॉपर्टीज को बेच सके. दोनों पक्षों के बीच एक टर्म शीट भी साइन हो चुकी है, जिसके मुताबिक अडानी ग्रुप इन सभी असेट्स को एक ही बार में खरीदने को तैयार है, चाहे कुछ संपत्तियों पर कानूनी विवाद ही क्यों न हो. सहारा का कहना है कि इतनी बड़ी रकम मिलने पर वह अपने बकाया कर्जों को चुकाकर वित्तीय दबाव घटा सकेगा और निवेशकों का पैसा भी लौटाया जा सकेगा.
लेकिन डील अटकी क्यों?
- डील पर कई तकनीकी और कानूनी पेच फंस गए हैं. इसमें सबसे पहला केंद्र सरकार का अधूरा जवाब है. दरअसल सरकार ने कहा है कि इस डील का असर हजारों को-ऑपरेटिव सोसाइटीज यानी सहकारी समितियों और उनके निवेशकों पर पड़ सकता है, जिनका पैसा सहारा समूह से जुड़ा है. इसलिए वित्त मंत्रालय और सहकारिता मंत्रालय को भी केस में पक्षकार बनाने की जरूरत है.
- इससे इतर, दूसरा कारण सेबी की लंबित रिपोर्ट है. सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही सेबी को निर्देश दिया था कि वह सहारा की याचिका पर अपना स्टैंड साफ करे. लेकिन अभी तक सेबी की ओर से अंतिम प्रतिक्रिया दाखिल नहीं हुई है.
- तीसरा और आखिरी कारण संपत्तियों की असल स्थिति को लेकर है. दरअसल कोर्ट की ओर से नियुक्त अमिकस क्यूरी शेखर नफाडे ने बताया कि उन्हें लगातार ऐसे दावे मिल रहे हैं जिनमें कहा गया है कि सहारा ने कई संपत्तियां अपनी आधिकारिक सूची में दिखाई ही नहीं हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि कंपनी पूरी और सही संपत्ति सूची अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करे, लेकिन इस पर कोर्ट ने अभी कोई आदेश नहीं दिया.
कर्मचारियों की सैलरी पर क्या हुआ फैसला?
सहारा के कई कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन देकर अपनी बकाया वेतन रिलीज करने का अनुरोध किया था. लेकिन सोमवार की सुनवाई में मामला आगे नहीं बढ़ सका. अदालत ने कर्मचारियों की सैलरी वाले आवेदन भी अगली तारीख तक के लिए टाल दिए. यानि, सैलरी का भुगतान फिलहाल टल गया है, क्योंकि मामला अब सरकारी जवाब और दूसरे पक्षों की दलीलों पर निर्भर करेगा. ऐसे में कर्मचारियों को कम से कम अगली सुनवाई यानी 6 हफ्ते तक रुकना होगा.
क्यों अहम है यह मामला?
सहारा–सेबी विवाद दशक भर से चल रहा है. 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को OFCD योजनाओं के जरिए जुटाई गई 24,000 करोड़ रुपये की राशि निवेशकों को 15 फीसदी ब्याज के साथ लौटाने का आदेश दिया था. सहारा का दावा है कि वह लगभग 16,000 करोड़ रुपये जमा करा चुका है, जबकि सेबी का कहना है कि अभी भी 9,000 करोड़ रुपये से ज्यादा बकाया है. 2023 में संस्थापक सुब्रत रॉय के निधन के बाद समूह की संचालन क्षमता काफी कमजोर हुई है और कई संपत्तियां कोर्ट या सेबी के आदेशों के कारण अटकी हुई हैं. यही कारण है कि समूह कह रहा है कि बिना कोर्ट की अनुमति बड़े सौदे पूरे करना संभव नहीं है.
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