ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी से बदलेगा ग्लोबल ट्रेड, 10 फीसदी चार्ज अब न्यू नॉर्मल; जानें क्यों अधर में भारत-US ट्रेड डील

डोनाल्ड ट्रंप की नई व्यापार नीति में 10 से 20 फीसदी टैरिफ को नया सामान्य माना जा रहा है. वियतनाम, जापान, इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ डील हो चुकी है, जबकि भारत-अमेरिका समझौता एग्रीक्लचर और डेयरी को लेकर मतभेद के चलते अधर में है.

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Trade Deal India-US Deal: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई व्यापार नीति में अब 10 से 20 फीसदी बेस टैरिफ को न्यू नॉर्मल मान लिया गया है. अमेरिका ने वियतनाम, इंडोनेशिया, फिलीपींस और जापान के साथ टैरिफ पर ऐसे ही ट्रेड डील पर समझौते किए हैं. वहीं भारत और अमेरिका के बीच एग्रीक्लचर और डेयरी सेक्टर को लेकर मतभेद जारी हैं, जिस कारण अब तक कोई ट्रेड डील नहीं हो पाया है.

10 फीसदी टैरिफ बना नया जीरो

अब ग्लोबल ट्रेड निगोशिएशन में 10 फीसदी बेस टैरिफ को न्यूनतम मान लिया गया है. अमेरिका द्वारा हाल ही में जिन देशों के साथ डील की गई है, उनमें टैरिफ रेंज 15 से 20 फीसदी के बीच रही है. भारत के लिए भी उम्मीद की जा रही है कि जब भी समझौता होगा, वह इसी रेंज में रहेगा.

अधर में भारत-अमेरिका डील

भारत और अमेरिका के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन एग्रीकल्चर और डेयरी प्रोडक्ट पर सहमति नहीं बन पाई है. अमेरिका चाहता है कि भारत अपने एग्रीक्लचर और डेयरी बाजार को खोले, जबकि भारत अपने किसानों और कल्चरल मान्यताओं की रक्षा करना चाहता है. अमेरिकी पशुपालन तरीकों को लेकर भी देश में विरोध है. अमेरिका में मवेशियों को मांसाहारी चारा खिलाया जाता है, जिसके कारण उनके दूध को मांसाहारी दूध कहा जाता है.

एशियाई देशों को राहत

जापान, फिलीपींस, इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ अमेरिका ने उम्मीदों से सस्ती टैरिफ रेट पर समझौते किए हैं. इन डील्स ने एशियाई व्यापार क्षेत्र में स्पष्टता जरूर लाई है, लेकिन भारत और ताइवान जैसे देश अब भी अमेरिकी टैरिफ नीति के बाहर हैं. अमेरिका का अगला लक्ष्य चीन के साथ टैरिफ डेडलाइन को आगे बढ़ाकर लॉन्ग टर्म डील करना हो सकता है.

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एशियाई अर्थव्यवस्था पर होगा असर

टैरिफ बढ़ने से एशियाई देशों की GDP पर असर पड़ सकता है. कई कंपनियां चीन से हटकर अन्य एशियाई देशों में उत्पादन बढ़ा रही हैं, लेकिन नई टैरिफ नीति से वे भी प्रभावित होंगी. अमेरिका के कंज्यूमर पर अब तक असर कम रहा है, लेकिन नई टैरिफ दरें महंगाई और धीमी आर्थिक वृद्धि का कारण बन सकती हैं.