इन दिग्गजों ने बनाया चिनाब रेलवे ब्रिज, 40 टन विस्फोट भी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा, दुनिया का अजूबा
चिनाब ब्रिज से भारतीय सेना को पाकिस्तान और चीन दोनों सीमाओं पर एक साथ रणनीतिक बढ़त मिलेगी, क्योंकि यह पुल भारतीय सेना की पहुंच और ताकत को लगभग पांच गुना तक बढ़ा देगा. साथ ही इसे हिमालय की कठोर और दुर्गम पहाड़ियों में बना यह पुल दिल्ली के कुतुब मीनार से करीब पांच गुना और परिस के एफिल टॉवर से भी ऊंचा है.

Chenab Bridge: देश के इतिहास में आज एक नई इबारत जुड़ गई है. दरअसल कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर घाटी तक कनेक्टिविटी के मामले में देश अब एकजुट हो गया है और इसकी नींव है चिनाब ब्रिज. यह पुल न केवल तकनीकी दृष्टि से भारत का, बल्कि पूरी दुनिया का एक अनूठा चमत्कार माना जा रहा है. यह दुनिया का सबसे ऊँचा रेलवे आर्क ब्रिज है. चिनाब ब्रिज के निर्माण से भारतीय सेना को पाकिस्तान और चीन दोनों सीमाओं पर एक साथ रणनीतिक बढ़त मिलेगी, क्योंकि यह पुल भारतीय सेना की पहुंच और ताकत को लगभग पांच गुना तक बढ़ा देगा. हिमालय की कठोर और दुर्गम पहाड़ियों में बना यह पुल इतनी ऊँचाई पर स्थित है कि यह दिल्ली की कुतुब मीनार से लगभग पांच गुना और पेरिस के एफिल टॉवर से भी ऊँचा है.
इस पुल की मदद से अब कश्मीर घाटी की कनेक्टिविटी देश की मुख्य रेलवे लाइन से पूरी तरह जुड़ जाएगी. इससे न केवल यात्रियों का समय बचेगा, बल्कि इस क्षेत्र के विकास में भी बहुत बड़ा बदलाव आएगा. ऐसे में आइए जानते हैं Chenab Bridge की वे खास बातें, जो इसे दुनियाभर में मशहूर बना रही हैं.
Chenab Bridge क्या है?
Chenab Bridge एक रेलवे पुल है, जो Chenab नदी के ऊपर 359 मीटर की ऊँचाई पर बना है. इसे रेलवे इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है क्योंकि इसकी ऊँचाई किसी भी दूसरे रेलवे आर्च ब्रिज से अधिक है. इसका मतलब यह है कि यह पुल नदी की सतह से इतना ऊँचा है कि एफिल टॉवर भी इससे छोटा पड़ता है. क्योंकि एफिल टॉवर की ऊंचाई करीब 324 मीटर है.

किन दिग्गजों ने बनाया चिनाब ब्रिज ?
चिनाब ब्रिज जैसे प्रोजेक्ट को बनाने में कई भारतीय कंपनियों और संस्थानों ने मिलकर काम किया है. देश के दुर्गम और एकांत इलाकों में बना यह ब्रिज सिर्फ एक तकनीकी काम नहीं, बल्कि टीमवर्क का बेहतरीन उदाहरण है. इस पुल के डिजाइन और निर्माण की जिम्मेदारी VSL इंडिया और अफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर को दी गई, जो शापूरजी पल्लोनजी ग्रुप की प्रमुख कंपनी है. इसके साथ ही एक दक्षिण कोरियाई कंपनी Ultra Construction & Engineering ने भी इसमें सहयोग किया है. आईआईएससी बैंगलोर ने इसकी नींव की सुरक्षा का डिजाइन तैयार किया, जबकि आईआईटी दिल्ली ने इसके ढलान की मजबूती का विश्लेषण किया. वहीं, डीआरडीओ (Defence Research and Development Organisation) ने इसे ब्लास्ट-प्रूफ यानी विस्फोट रोधी बनाने में मदद की.

इसके अलावा ब्रिज के वायाडक्ट और फाउंडेशन का डिजाइन फिनलैंड की WSP ग्रुप ने किया, जबकि आर्क का डिजाइन जर्मनी की Leonhardt Andra कंपनी ने तैयार किया है. इस पूरी परियोजना की निगरानी कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन लिमिटेड ने की है. साथ ही इसके निर्माण में IITs, DRDO, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण जैसे संस्थानों ने भी अहम योगदान दिया है.
सेना को भी मिलेगा फायदा
यह ब्रिज 272 किलोमीटर लंबे ऊधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल प्रोजेक्ट का अहम हिस्सा है, जो पाकिस्तान के एलओसी और चीन के एलएसी तक भारतीय सेना के पहुंचने के समय को 5 गुना घटा देगा. बता दें कि फिलहाल ट्रेन से दोनों सीमाओं के बीच सैनिकों और सैन्य उपकरणों को पहुंचाने में लगभग 16 घंटे लगते हैं. चिनाब ब्रिज से यह समय घटकर 3 घंटे हो जाएगा. साथ ही इस ब्रिज को ब्लास्ट प्रूफ बनाया गया है. डीआरडीओ के तकनीकी सहयोग से बना यह पुल 40 टन के टीएनटी विस्फोट को झेल सकता है.

हर एक पुर्जा है स्वदेशी
इस ब्रिज की खास बात यह भी है कि इसके डिजाइन वेरिफिकेशन में भले ही विदेशी कंपनियों से मदद ली गई हो, लेकिन इसमें लगाया गया मैटीरियल पूरी तरह से स्वदेशी है. इसे बनाने में करीब 2 हजार श्रमिक और 300 से अधिक इंजीनियरों ने मिलकर काम किया है.
कितनी स्पीड में चलेगी ट्रेनें ?
चेनाब ब्रिज पर ट्रेनें अधिकतम 100 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चल सकती हैं. भारतीय रेलवे के इस पुल को 260 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाओं को झेलने के लिए डिजाइन किया गया है. इसकी अनुमानित आयु 120 वर्ष है.

पुल की लंबाई और डिजाइन
यह पुल करीब 1.3 किलोमीटर यानी 1,315 मीटर लंबा है. इसका मुख्य हिस्सा एक स्टील का बड़ा आर्च है, जो 467 मीटर लंबा है और इसे अपनी तरह का सबसे बड़ा आर्च माना जाता है. इस पुल के कुल 17 स्पैन हैं, जिनमें से हर एक को बहुत ही सावधानी से जोड़ा गया है ताकि पुल पूरी मजबूती के साथ खड़ा रहे. हर सेगमेंट का वजन लगभग 85 टन है, जो भारी मशीनरी और इंजीनियरिंग का शानदार नमूना है.

तकनीकी खासियत क्या है?
यह पुल हिमालय की जलवायु के अनुसार डिजाइन किया गया है. यह -10 डिग्री से लेकर 40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में टिकाऊ है. पुल की मजबूती और सटीक डिजाइन के लिए ‘Tekla’ नामक एडवांस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल हुआ है. खास बात यह है कि पुल भूकंप और ब्लास्ट-प्रूफ है, यानी इसे भूकंप और किसी भी प्रकार की बाहरी धमाके से बचाने के लिए विशेष तकनीक अपनाई गई है.
पुल को बनाने में कितनी लागत आई?
इस पुल के निर्माण में लगभग 1,486 करोड़ रुपए की लागत आई है. हिमालय की पहाड़ियों में भारी बारिश, भूस्खलन और ठंड के बीच इस पुल का निर्माण बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है. इसे बनाने के लिए न केवल एडवांस तकनीक का सहारा लिया गया, बल्कि भारतीय संस्थानों जैसे IIT, IISc और DRDO ने भी अपना योगदान दिया. सुरंग बनाना, पहाड़ी सड़कों का निर्माण करना और भारी स्टील इंफ्रास्ट्रक्चर को पहाड़ों से जोड़ना बहुत मुश्किल काम था, जिसे इंजीनियरों ने बखूबी पूरा किया.
पुल का भौगोलिक महत्व
Chenab Bridge जम्मू-कश्मीर के उन इलाकों में स्थित है, जहां पहुंचना बेहद मुश्किल है. यह पुल कूरी और बक्कल के बीच उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक (USBRL) रेलवे लाइन का हिस्सा है. इस इलाके की कठिन भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए पुल का डिजाइन और निर्माण हुआ है ताकि यह लंबे समय तक सुरक्षित और टिकाऊ रहे.

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