क्या है कावेरी प्रोजेक्ट, जो बरसों की इच्छा कर सकता है पूरी, आपरेशन सिंदूर के बाद रिवाइवल की मांग!
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर #FundKaveriEngine ट्रेंड कर रहा है. पिछले कुछ दिनों से इसे लेकर कई डिफेंस एक्सपर्ट्स और लोगों ने अपने विचार रखे हैं. आइए, जानते हैं कावेरी इंजन प्रोजेक्ट क्या है?

इन दिनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर #FundKaveriEngine ट्रेंड कर रहा है. 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर की शुरूआत और पाकिस्तान के साथ युद्धविराम समझौते पर सहमति बनने के बाद से ही लोग सरकार से कावेरी इंजन कार्यक्रम को फंड करने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या है कावेरी इंजन प्रोजेक्ट? इन दिनों चर्चा में क्यों है? इसकी शुरूआत कब हुई? इसे रोका क्यों गया? और इससे भारत को क्या फायदे होंगे?
भारत आज तक फाइटर जेट के लिए स्वेदेशी इंजन विकसित नहीं कर पाया है. जबकि किसी भी लड़ाकू विमान के लिए उसका इंजन हार्ट की तरह काम करता है. इस स्थिति में इंडिया को फाइटर जेट इंजन के लिए अमेरिका, रूस और फ्रांस पर निर्भर रहना पड़ता है. इसी कमी को दूर करने के लिए भारत सरकार ने कावेरी इंजन कार्यक्रम की शुरूआत की थी.
क्या है कावेरी इंजन?
कावेरी इंजन स्वदेशी रूप से विकसित लो बाईपास ट्विन स्पूल टर्बो इंजन है. इसे DRDO की गैस टर्बाइन रिसर्च इस्टैब्लिशमेंट द्वारा विकसित किया जा रहा है. इसका इस्तेमाल हल्के लड़ाकू विमानों में किया जाएगा. इसे इस तरह से डिजाइन और विकसित किया जा रहा है कि यह 80 किलोन्यूटन तक थ्रस्ट उत्पन्न कर सके.
इन दिनों चर्चा में क्यों है?
भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष के बाद कावेरी इंजन चर्चा में आया. युद्ध की स्थिति में भारत को लड़ाकू विमानों के इंजन के लिए अमेरिका, रूस और फांस जैसे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है. इसलिए विदेशी निर्भरता को कम करने के लिए सरकार से यह मांग की जा रही है कि कावेरी इंजन कार्यक्रम को फंड दिया जाए और स्वदेशी इंजन विकसित किया जाए. सोशल मीडिया यूजर अपने पोस्ट के जरिए सरकार से यह मांग कर रहे हैं.
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कब हुई थी इसकी शुरूआत?
कावेरी इंजन कार्यक्रम की शुरूआत 1980 के दशक में की गई थी. इसका उद्देश्य स्वेदेशी लाइट कॉम्बेट एयरक्राफ्ट ‘तेजस’ को इंजन मुहैया कराना था. लेकिन 2008 में इसे तेजस कार्यक्रम से अलग कर दिया गया.
इतने वर्षों की देरी क्यों?
भारत के पास एयरो थर्मल और मेटालर्जिकल तकनीक के क्षेत्र में काम करने का पूर्व अनुभव नहीं है. इंजन विकसित करने में इन तकनीकों का इस्तेमाल होता है. इसलिए भारत की निर्भरता अन्य देशों पर है. भारत ने फ्रांसीसी कंपनी Snecma के साथ एक करार किया था. 2013 में यह करार टूट गया. यह उम्मीद जताई जा रही थी कि इस एग्रीमेंट से भारत के पास जेट इंजन विकसित करने के लिए कोर टेक्नोलॉजी आ जाएगी.
भारत ने 1998 में सफल परमाणु परिक्षण किया. इसके बाद पश्चिमी देशों ने भारत पर कई सैंक्शन लगाए. इस प्रतिबंध के कारण इंजन विकसित करने में उपयोग होने वाले क्रिस्टल टरबाइन ब्लेड जैसे वस्तुओं की कमी हो गई. इन्हीं कारणों से इंजन बनने में देरी हो रही है.
कावेरी इंजन पर कितना हुआ खर्च?
पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने अगस्त 2016 में लोकसभा को बताया था कि 2016 तक डीआरडीओ ने कावेरी इंजन कार्यक्रम पर लगभग 3,000 करोड़ रुपये खर्च किए थे.
इससे भारत को क्या फायदे होंगे?
अभी अमेरिका, चीन, रूस, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस जैसे कुछ ही देश हैं जो फाइटर जेट इंजन बनाने में सक्षम हैं. अगर भारत कावेरी इंजन बनाने में सफल होता है तो भारत भी इस सूची में शामिल हो जाएगा. इसके साथ ही फ्रांस, अमेरिका और रूस पर भारत की निर्भरता खत्म हो जाएगी. और भारत अपने रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा के सेव करने में सफल होगा.
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