IPO में क्या है शेयर अलॉटमेंट का असली खेल? दूर करें लॉटरी का भ्रम; जानें ओवर-सब्सक्रिप्शन का सीक्रेट फॉर्मूला

IPO में निवेशकों की जबरदस्त भागीदारी के चलते ओवरसब्सक्रिप्शन आम हो गया है. अक्सर लोग मानते हैं कि अलॉटमेंट केवल लॉटरी से होता है, लेकिन हकीकत में इसके पीछे SEBI के तय नियम और गणित काम करते हैं. बुक बिल्डिंग से लेकर आईपीओ में आवंटन के उदाहरण से समझें कि क्या पूरा गणित.

क्या है आईपीओ अलॉटमेंट का पूरा खेल? Image Credit: @AI/Money9live

IPO Allotment Process: प्राइमरी मार्केट इन दिनों बहुत सक्रिय है. IPO में निवेशकों की बड़ी संख्या में भागीदारी देखने को मिल रही है. NSDL और Anthem Biosciences जैसे बड़े IPOs 40 से 60 गुना तक सब्सक्राइब हो चुके हैं. मौजूदा समय में भी कई कंपनियों के इश्यू सब्सक्रिप्शन के लिए या तो खुले हुए हैं या खुलने वाले हैं. इनमें मेनबोर्ड और एसएमई, दोनों सेगमेंट के आईपीओ शामिल हैं. इनमें से कई इश्यू को निवेशकों की ओर से ओवरसब्सक्राइब किया जा चुका है. यानी IPOs में ओवरसब्सक्रिप्शन अब आम बात हो गई है.

अक्सर लोग मानते हैं कि जब ओवरसब्सक्रिप्शन होता है तो शेयरों का अलॉटमेंट केवल लॉटरी से तय होता है. लेकिन असल में इसके पीछे पूरा नियम और गणित है. आइए आईपीओ में शेयरों के अलॉटमेंट की पूरी प्रक्रिकया को आसानी से समझने की कोशिश करते हैं.

बुक बिल्डिंग क्या है?

IPO अलॉटमेंट समझने से पहले बुक बिल्डिंग को समझना जरूरी है. ज्यादातर IPOs बुक बिल्ट ऑफर होते हैं. इसमें कंपनी शेयर का फिक्स प्राइस तय नहीं करती, बल्कि एक प्राइस बैंड तय करती है. यह बैंड कंपनी और उसके इन्वेस्टमेंट बैंक (लीड मैनेजर्स) की सलाह से तय होता है. SEBI के नियमों के मुताबिक, यह बैंड फ्लोर प्राइस से कम से कम 5 फीसदी और अधिकतम 20 फीसदी तक ऊंचा हो सकता है.

उदाहरण के लिए, अगर फ्लोर प्राइस 100 रुपये है, तो कैप प्राइस 105 रुपये से 120 रुपये तक हो सकता है. निवेशक इस प्राइस बैंड के भीतर अपनी बोली लगाते हैं. बोली खत्म होने के बाद कंपनी और लीड मैनेजर्स कट-ऑफ प्राइस तय करते हैं. यही वह प्राइस होता है जिस पर पूरे शेयर सब्सक्राइब हो सकते हैं.

खास बात यह है कि केवल रिटेल निवेशक (2 लाख रुपये तक निवेश करने वाले) ही सीधे कट-ऑफ प्राइस पर बोली लगा सकते हैं. दूसरे कैटेगरी के निवेशकों को या तो कैप प्राइस पर बोली लगानी पड़ती है या अंदाजा लगाना होता है. ज्यादातर मामलों में कट-ऑफ प्राइस कैप प्राइस ही होता है क्योंकि डिमांड ज्यादा रहती है.

क्या है अलॉटमेंट के नियम?

SEBI (ICDR) के नियम बताते हैं कि IPO में ओवरसब्सक्रिप्शन होने पर शेयरों का अलॉटमेंट कैसे होगा. यह प्रक्रिया अलग-अलग कैटेगरी (रिटेल, HNI, QIB) और IPO के प्रकार (मेनबोर्ड/SME) पर निर्भर करती है. यहां हम मेनबोर्ड IPO में रिटेल निवेशकों के लिए अलॉटमेंट को समझेंगे.

केस A: जब आवेदक ≤ उपलब्ध लॉट्स

  • मान लीजिए, किसी IPO में कुल शेयर = 1 करोड़
  • रिटेल निवेशकों के लिए रिजर्व = 35 फीसदी यानी 35 लाख शेयर
  • एक लॉट = 20 शेयर
  • रिटेल कैटेगरी में उपलब्ध लॉट्स = 1.75 लाख
  • रिटेल आवेदक = 1 लाख

इस स्थिति में आवेदकों की संख्या उपलब्ध लॉट्स से कम है. ऐसे में:

  • पहले चरण में सभी आवेदकों को कम से कम 1 लॉट (20 शेयर) मिल जाएगा.
  • अब तक 20 लाख शेयर अलॉट हो चुके होंगे.
  • बचे हुए 15 लाख शेयर रेशियो के आधार पर बांटे जाएंगे.

उदाहरण: अगर रोहित ने 3 लॉट (60 शेयर) के लिए आवेदन किया, तो पहले चरण में उन्हें 1 लॉट यानी 20 शेयर मिलेंगे. फिर रेशियो के आधार पर उन्हें 5 और शेयर मिल सकते हैं. इस तरह कुल 25 शेयर अलॉट होंगे.

केस B: जब आवेदक > उपलब्ध लॉट्स

यह स्थिति ज्यादा आम है. मान लीजिए:

  • रिटेल आवेदक = 2 लाख
  • रिटेल कैटेगरी में उपलब्ध लॉट्स = 1.75 लाख

अब इतने निवेशक हैं कि सभी को 1 लॉट भी नहीं दिया जा सकता. ऐसे में प्रक्रिया कुछ इस तरह होगी:

  • सभी आवेदकों को उनकी एप्लिकेशन के हिसाब से बकेट्स में बांटा जाएगा.
  • बकेट 1: 1 लॉट वाले
  • बकेट 2: 2 लॉट वाले
  • इसी तरह आगे तक.

अब रेशियो निकाला जाएगा. उपलब्ध लॉट्स ÷ कुल आवेदक= 1,75, 000 ÷2,00,000= 0.875. इस रेशियो को हर बकेट पर लागू किया जाएगा. उदाहरण के लिए, अगर बकेट 1 में 10,000 लोग हैं तो केवल 8,750 लोगों को ही 1 लॉट मिलेगा. यह प्रक्रिया ड्रॉ ऑफ लॉट्स (लॉटरी) के जरिए पूरी होती है.

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