फंड को हाथ लगाए बिना मिलेगा लोन! जानें LAMF का तरीका और कैसे करता है काम

Loan Against Mutual Funds एक ऐसा ऑप्शन है जो निवेश बेचे बिना कैश देने और महंगे पर्सनल लोन से बचाने के बीच का रास्ता देता है. सही वजह से, कम समय के लिए और साफ प्लानिंग के साथ लिया जाए तो यह काफी उपयोगी साबित हो सकता है. ऐसे में आइए जानते हैं क्या है इस ऑप्शन का सही तरीका.

म्यूचुअल फंड्स निवेश Image Credit: Getty image

अगर अचानक पैसों की जरूरत पड़ जाए, तो ज्यादातर लोग सोचते हैं कि क्या अपने म्यूचुअल फंड्स को बेच दिया जाए. लेकिन अब एक ऐसा ऑप्शन है जिसमें आपको अपने निवेश को बेचना भी नहीं पड़ता और जरूरत का पैसा भी मिल जाता है. इसका नाम Loan Against Mutual Funds (LAMF) है. इसमें आपके फंड आपके ही नाम पर रहते हैं और उनका मार्केट ग्रोथ का फायदा मिलता रहता है, लेकिन बैंक या NBFC उन्हें प्लेज यानी गिरवी मार्क कर लेता है. जिसका मतलब है जब तक आपका लोन चलता है, आप उन यूनिट्स को बेच नहीं सकते.

कैसे मिलता है ये लोन?

आजकल यह पूरा प्रोसेस ऑनलाइन हो चुका है. इसके तहत आप बैंक/NBFC के प्लेटफॉर्म पर जाकर loan against securities या loan against mutual funds चुनते हैं और उन्हें अपने डिमैट या MF होल्डिंग देखने की अनुमति देते हैं.
डिमैट में हों तो NSDL/CDSL के जरिए प्लेज बनता है. OTP या नेट बैंकिंग से प्लेज कन्फर्म करते ही आपको लोन लिमिट मिल जाती है. पैसा या तो टर्म लोन के रूप में मिलता है (जिसमें EMI तय होती है) या फिर ओवरड्राफ्ट की तरह, जिसमें जितना पैसा इस्तेमाल करेंगे, सिर्फ उसी पर ब्याज लगेगा. पूरी रकम चुकाने के बाद प्लेज हट जाता है और यूनिट्स फिर फ्री हो जाते हैं.

कितना लोन मिलता है?

इस प्रक्रिया के तहत, लोन आपके फंड्स की वर्तमान मार्केट वैल्यू पर मिलता है. Equity Funds पर LTV कम होता है, क्योंकि इनमें उतार-चढ़ाव ज्यादा होता है. Debt और Liquid Funds पर LTV ज्यादा होता है, क्योंकि उनकी कीमत ज्यादा स्थिर रहती है.

इन बातों का भी रखें ध्यान

हालांकि यह सुविधा जितनी आसान लगती है, उतने ही ध्यान देने वाले जोखिम भी साथ में आते हैं. जैसे,

  • मार्केट गिरा तो मार्जिन कॉल: अगर मार्केट नीचे जाता है, तो आपके यूनिट्स की वैल्यू भी गिरती है. इससे लोन-टू-वैल्यू बिगड़ सकता है. लेंडर आपको मार्जिन कॉल भेज सकता है—या तो लोन का कुछ हिस्सा चुकाइए या और यूनिट्स प्लेज कीजिए. न मानने पर लेंडर आपकी कुछ यूनिट्स बेच भी सकता है.
  • ब्याज दर पर्सनल लोन से कम, लेकिन सस्ता नहीं: अगर आप इस लोन को महीनों की बजाय सालों तक खींचते हैं, तो ब्याज काफी बढ़ जाता है. कई बार यह खर्च सीधे पर्सनल लोन लेने से भी ज्यादा हो सकता है.
  • छोटे-छोटे चार्जेस जुड़कर बड़ा खर्च बना सकते हैं: प्रोसेसिंग फीस, प्लेज/डी-प्लेज चार्जेस, स्टेटमेंट चार्ज, लेट पेमेंट पर पेनल्टी—सब मिलकर जेब पर बोझ डाल सकते हैं.

कब नहीं लेना चाहिए ऐसा लोन?

Loan Against Mutual Funds गलत ऑप्शन है अगर— कारण सिर्फ छुट्टियों, नया फोन या ट्रेडिंग में पैसा लगाने जैसा हो.
आपकी इनकम अनियमित है और पहले से कई EMI चल रही हों. अगले 1से 2 साल में आपके लक्ष्य पूरे होने वाले हों और उन्हीं फंड्स को आपने निवेश कर रखा हो. ऐसी स्थिति में फंड को प्लानिंग के साथ बेचना ज्यादा सुरक्षित होता है, बजाय इसके कि लोन लेकर जोखिम बढ़ाया जाए.

कैसे करें इस्तेमाल?

अगर आप यह लोन लेने का फैसला करते हैं, तो कुछ नियम खुद के लिए तय करना जरूरी है जैसे- केवल उतना ही लोन लें, जिसे 6–18 महीनों में आराम से चुका सकें. ओवरड्राफ्ट वाला ऑप्शन बेहतर है, क्योंकि ऑन-यूज ब्याज लगता है. थोड़ा-थोड़ा करके प्रीपे करते रहें, ताकि कुल ब्याज कम हो. मार्केट और अपने प्लेज्ड यूनिट्स के वैल्यू पर नजर बनाए रखें.

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