सरकार बोली 1 साल में ग्रेच्युटी, कंपनियों ने लगाया ब्रेक… जानें आखिर कहां फंसा नए लेबर कोड का पेंच

नए लेबर कोड के तहत केंद्र सरकार ने कहा कि फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों को 1 साल की सेवा के बाद ग्रेच्युटी का हक मिलेगा. पहले यह सुविधा सिर्फ उन कर्मचारियों को मिलती थी, जिन्होंने लगातार 5 साल काम किया हो. इस बदलाव का मकसद कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों को राहत देना था, क्योंकि ज्यादातर लोग 5 साल पूरे ही नहीं कर पाते.

ग्रेच्युटी के नियम. Image Credit: Money9live

Gratuity after 1 year Rule: सरकार ने जब नए लेबर कोड लागू करने की घोषणा की, तो लाखों प्राइवेट सेक्टर कर्मचारियों को लगा कि अब वाकई कामकाजी जिंदगी में बड़ा बदलाव आने वाला है. खासतौर पर कॉन्ट्रैक्ट और फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों के लिए एक खबर ने उम्मीदें बढ़ा दीं. अब ग्रेच्युटी पाने के लिए 5 साल का इंतजार नहीं करना होगा, सिर्फ 1 साल काम करने पर भी ग्रेच्युटी मिलेगी. लेकिन कुछ हफ्ते बीतते ही यह खुशी भ्रम में बदल गई.

कर्मचारियों को समझ नहीं आ रहा कि नियम बदल गया है, फिर भी कंपनियां ग्रेच्युटी क्यों नहीं दे रहीं. HR विभाग चुप हैं, कंपनियां पुराने नियमों पर चल रही हैं और कर्मचारी सवाल पूछ रहे हैं. असल में यह मामला सिर्फ एक नियम का नहीं, बल्कि भारत की पूरी लेबर कानून व्यवस्था और केंद्र राज्य तालमेल का है. कागज पर सुधार हो चुका है, लेकिन जमीन पर तस्वीर अब भी पुरानी है. आइए इस पूरे मामले को विस्तार से समझते है.

साल में ग्रेच्युटी का वादा, लेकिन हकीकत कुछ और

नए लेबर कोड के तहत केंद्र सरकार ने कहा कि फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों को 1 साल की सेवा के बाद ग्रेच्युटी का हक मिलेगा. पहले यह सुविधा सिर्फ उन कर्मचारियों को मिलती थी, जिन्होंने लगातार 5 साल काम किया हो. इस बदलाव का मकसद कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों को राहत देना था, क्योंकि ज्यादातर लोग 5 साल पूरे ही नहीं कर पाते.

फिर ग्रेच्युटी क्यों नहीं मिल रही?

FE की रिपोर्ट्स के मुताबिक समस्या यह है कि केंद्र सरकार ने भले ही नए लेबर कोड नोटिफाई कर दिए हों, लेकिन राज्य सरकारों ने अभी अपने नियम लागू नहीं किए हैं. भारत में श्रम कानून “कनकरेंट सब्जेक्ट” है, यानी केंद्र और राज्य दोनों की जिम्मेदारी होती है. जब तक राज्य अपने-अपने नियम नहीं बनाएंगे, तब तक कंपनियों पर नए नियम लागू करना जरूरी नहीं है.

कंपनियां क्यों इंतजार कर रही हैं

ज्यादातर प्राइवेट कंपनियां फिलहाल “वेट एंड वॉच” मोड में हैं. अगर वे अभी 1 साल वाली ग्रेच्युटी लागू करती हैं और बाद में राज्य का नियम अलग निकलता है, तो कानूनी झंझट, ऑडिट और विवाद बढ़ सकते हैं. इसलिए कंपनियां पुराने 5 साल वाले नियम पर ही चल रही हैं.

सिर्फ ग्रेच्युटी ही नहीं, कई सुधार अटके

ग्रेच्युटी के अलावा भी कई बड़े बदलाव फिलहाल कागजों तक सीमित हैं:

  • सैलरी स्ट्रक्चर और PF नियम
  • गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स की सोशल सिक्योरिटी
  • काम के घंटे और 4-डे वर्क वीक
  • हायर-फायर नियमों में बदलाव
  • इन सबके लिए भी राज्य सरकारों की मंजूरी जरूरी है.

राज्य सरकारें देरी क्यों कर रही हैं

लेबर सुधार राजनीतिक रूप से संवेदनशील होते हैं. राज्य सरकारें यह देख रही हैं कि इन नियमों से स्थानीय उद्योग, MSME और रोजगार पर क्या असर पड़ेगा. कई राज्यों ने ड्राफ्ट नियम जारी किए हैं, लेकिन फाइनल नोटिफिकेशन अभी बाकी है. अगर आप फिक्स्ड-टर्म या कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी हैं, तो अभी 1 साल में ग्रेच्युटी का कानूनी हक नहीं बना है. जब तक राज्य नियम लागू नहीं करते, तब तक कंपनियां ग्रेच्युटी देने के लिए बाध्य नहीं हैं. मतलब साफ है फिलहाल पुराना 5 साल वाला नियम ही लागू रहेगा.

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