भूल जाईये मौजूदा GST, नए कलेवर में आएंगे रेट! होंगे स्टैंडर्ड और मेरिट स्लैब; ऐसे बदलेगी आपकी लाइफ
टैक्स व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव आने वाला है जो करोड़ों भारतीयों की जिंदगी को प्रभावित करेगा. सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया है जिसका इंतजार व्यापारी और आम जनता दोनों कर रहे थे. जानिए क्या है यह बदलाव और कब मिलेगी राहत.

GST Reform: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस के भाषण के कुछ ही घंटों बाद, वित्त मंत्रालय ने जीएसटी में आमूलचूल सुधार की घोषणा की है. सरकार ने स्पष्ट किया है कि मौजूदा 5%, 12%, 18% और 28% के चार टैक्स स्लैब को समाप्त कर केवल दो स्लैब – स्टैंडर्ड और मेरिट में बांटा जाएगा. यह घोषणा उस समय आई है जब लंबे समय से जनता और व्यापारी जीएसटी की जटिलताओं से परेशान थे.
वित्त मंत्रालय के तीन स्तंभ
वित्त मंत्रालय ने अपनी प्रेस रिलीज में स्पष्ट किया है कि नई जीएसटी सुधार योजना तीन मुख्य स्तंभों पर आधारित है:
- पहला स्तंभ: संरचनात्मक सुधार
इसमें इंवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर को ठीक करना शामिल है ताकि इनपुट और आउटपुट टैक्स रेट में तालमेल हो. साथ ही क्लासिफिकेशन की समस्याओं को सुलझाकर विवादों को कम करना भी शामिल है.
- दूसरा स्तंभ: रेट रेशनलाइजेशन
इसका मुख्य उद्देश्य आम आदमी की वस्तुओं और आकांक्षी सामान पर टैक्स दरों में कमी करना है. वित्त मंत्रालय का कहना है कि केवल चुनिंदा वस्तुओं पर ही विशेष दरें लागू होंगी.
- तीसरा स्तंभ: जीवन में आसानी
इसमें रजिस्ट्रेशन, रिटर्न फाइलिंग और रिफंड की प्रक्रिया को सरल बनाना शामिल है.
मौजूदा GST संरचना
वर्तमान में भारत में जीएसटी की संरचना चार मुख्य स्लैब में बांटी गई है:
- 5% स्लैब: खाद्य तेल, चीनी, चाय, कॉफी जैसी आवश्यक वस्तुएं
- 12% स्लैब: मक्खन, घी, कंप्यूटर और प्रोसेस्ड फूड आइटम्स
- 18% स्लैब: हेयर ऑयल, साबुन, टूथपेस्ट और अधिकांश सर्विसेज
- 28% स्लैब: लग्जरी आइटम्स जैसे कार, अत्यधिक महंगे कपड़े-जुते, एयर कंडीशनर और टोबैको उत्पाद
विश्व बैंक की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का जीएसटी दुनिया में सबसे जटिल है और इसकी टैक्स दर दूसरी सबसे ऊंची है. केवल 5 देशों में चार या अधिक स्लैब हैं, जबकि 49 देशों में सिंगल स्लैब और 28 देशों में दो स्लैब हैं.
जनता की मांग और सरकारी आलोचना
पिछले कई वर्षों से लगातार यह मांग उठती रही है कि सरकार जीएसटी को रिस्ट्रक्चर करे और इसमें आवश्यक बदलाव लाए. क्लासिफिकेशन संबंधी विवाद जीएसटी की सबसे बड़ी समस्या रही है. एक प्रोडक्ट को किस स्लैब में रखा जाए, इसको लेकर लगातार टैक्स अथॉरिटी और व्यापारियों के बीच विवाद होते रहे हैं.
सरकार के पिछले जीएसटी घोषणाओं से जनता संतुष्ट नहीं दिखी. प्रोडक्ट्स को एक स्लैब से दूसरे में शिफ्ट करने के बदलाव से व्यापारिक समुदाय और आम जनता नाराज थी. लगातार टैक्स रेट में बदलाव और रिटर्न फाइलिंग की जटिलता के कारण सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा.
सरकार ने अपनाया अब स्ट्रैडर्ड मॉडल
दुनिया के अधिकांश देशों में सिंपल जीएसटी स्ट्रक्चर अपनाया जाता है. न्यूजीलैंड में 15 फीसदी की एक समान दर, ऑस्ट्रेलिया में 10 फीसदी की सिंगल रेट, और कनाडा में फेडरल और प्रोविंशियल के दो स्लैब हैं.
यूके का VAT सिस्टम भी केंद्रीकृत है और मिनिमम एक्जेम्प्शन के साथ चलता है. सिंगापुर में 7% की एक समान दर है. इन सभी देशों में कम्प्लायंस कॉस्ट कम है और टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन ज्यादा बेहतर है.
नई व्यवस्था से क्या होगा फायदा
नई दो-स्लैब व्यवस्था से निम्नलिखित लाभ होने की उम्मीद है:
व्यापारियों के लिए फायदे
- कम स्लैब से प्रोडक्ट कैटेगराइजेशन आसान होगी
- सरल संरचना से रिटर्न फाइलिंग आसान होगी और कम्प्लायंस कॉस्ट में कमी देखने को मिलेगी
- टैक्स रेट में स्थिरता से व्यापारिक योजना बनाना आसान होगा
आम जनता के लिए राहत
- दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर टैक्स बोझ कम होगा
- सरल संरचना से कीमतों का निर्धारण आसान होगा
- विशेष रूप से मध्यम आय वर्गीय परिवारों को फायदा होगा
जीएसटी काउंसिल की भूमिका
यह महत्वपूर्ण बदलाव तभी लागू होगा जब जीएसटी काउंसिल इसे अप्रूव करे. हालांकि सरकार ने अभी स्लैब के रेट की जानकारी नहीं दी है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता वाली जीएसटी काउंसिल का सितंबर में बैठक होने की उम्मीद है.
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ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (GoM) को सरकार का प्रस्ताव भेजा गया है, जो इस पर विस्तार से चर्चा करेगा. प्रधानमंत्री मोदी ने वादा किया है कि जीएसटी में बदलाव की जानकारी वो दीवाली में देंगे. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि यह रिफॉर्म अगर अप्रूव हो गए तो दीवाली तक लागू हो जाएगे, जो आम आदमी के लिए “दिवाली गिफ्ट” होगी.
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