मार्केट वोलैटिलिटी से बचने को Bonds में करें इन्वेस्ट, समझ लें 5 सबसे बड़े रिस्क और बचने की स्ट्रैटेजी
अगर आप मार्केट वोलैटिलिटी से बचने के लिए Bonds में इन्वेस्ट करने की सोच रहे हैं, तो निवेश से पहले बॉन्ड मार्केट से जुड़े पांच सबसे बड़े रिस्क के बारे में जान लें. इसके साथ ही इन जोखिमों से बचने के लिए क्या रणनीति अपनाएं यह भी जानना जरूरी है.

बॉन्ड को अक्सर शेयरों की तुलना में सुरक्षित निवेश विकल्प माना जाता है. जब शेयर बाजार में वोलैटिलिटी बढ़ती है, तो निवेशक सुरक्षित और स्थिर लाभ के लिए बॉन्ड्स में निवेश का विकल्प चुनते हैं. भले ही बॉन्ड्स में निवेश को सेफ माना जाता है. लेकिन, इसमें भी कई तरह के जोखिम रहते हैं. अगर इन जोखिमों को समझे बिना आप जिस उम्मीद के साथ निवेश करते हैं, तो रिटर्न भी प्रभावित हो सकता है. देश का बॉन्ड मार्केट तेजी से विस्तार कर रहा है और रिटेल निवेशकों की भागीदारी बढ़ रही है, वैसे-वैसे जरूरी है कि निवेशक इन खतरों को पहचानें और सही रणनीति अपनाएं.
बॉन्ड निवेशकों के लिए ये रिस्क अलग-अलग परिस्थितियों और बॉन्ड टाइप के आधार पर बदल सकते हैं. इसलिए निवेश से पहले अपने वित्तीय लक्ष्य और रिस्क प्रोफाइल को ध्यान में रखते हुए ही फैसला लें. विशेषज्ञों का सुझाव लेना भी हमेशा समझदारी भरा कदम है. भारत का बॉन्ड मार्केट तेजी से विकसित हो रहा है. टेक्नोलॉजी और रेगुलेटरी सुधारों ने इसे आम निवेशकों के लिए और भी आसान बना दिया है. ऐसे में सही रणनीति अपनाकर बॉन्ड निवेशक न केवल रिस्क को कम कर सकते हैं, बल्कि अपने पोर्टफोलियो को संतुलित और मजबूत भी बना सकते हैं.
ब्याज दर का जोखिम
बॉन्ड की कीमतें और ब्याज दरें हमेशा विपरीत दिशा में चलती हैं. मसलन, जब ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो पुराने बॉन्ड की कीमतें गिर जाती हैं, क्योंकि नए बॉन्ड ज्यादा रिटर्न ऑफर करने लगते हैं. लंबी अवधि वाले बॉन्ड पर यह रिस्क ज्यादा होता है.
कैसे बचें: पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करें और कम अवधि वाले बॉन्ड पर ज्यादा फोकस करें, क्योंकि ये ब्याज दर में बदलाव के प्रति कम सेंसिटिव होते हैं.
डिफॉल्ट की आशंका
अगर किसी कंपनी के बॉन्ड्स में निवेश करते हैं, तो क्रेडिट रिस्क बना रहता है. खासतौर पर जब बॉन्ड जारी करने वाली कंपनी समय पर ब्याज या मूलधन नहीं चुका पाए. हालांकि, सरकारी बॉन्ड में यह जोखिम बहुत कम होता है. जबकि, लो-रेटेड कॉरपोरेट बॉन्ड में डिफॉल्ट की संभावना अधिक रहती है.
कैसे बचें: निवेश से पहले इश्यूअर की क्रेडिट रेटिंग और वित्तीय स्थिति की अच्छी तरह जांच करें. इसके साथ ही, अलग-अलग कंपनियों और सेक्टरों में निवेश करके जोखिम कम करें.
महंगाई का खतरा
अगर महंगाई की दर बॉन्ड के कूपन रेट (ब्याज दर) से ज्यादा हो जाए, तो निवेशक की वास्तविक कमाई घट जाती है. इससे उसकी परचेजिंग पावर पर असर पड़ता है. खासकर फिक्स्ड कूपन वाले बॉन्ड इस रिस्क से ज्यादा प्रभावित होते हैं.
कैसे बचें: महंगाई से बचाव वाले बॉन्ड (Inflation-Indexed Bonds) या शॉर्ट-टर्म बॉन्ड में निवेश करें ताकि निवेश पर मिलने वाला लाभी महंगाई से सुरक्षित रहे.
लिक्विडिटी रिस्क
देश में कॉरपोरेट बॉन्ड का सेकेंडरी मार्केट फिलहाल पूरी तरह विकसित नहीं है. ऐसे में रिटेल निवेशकों के लिए जरूरत पड़ने पर बॉन्ड को बेचना मुश्किल हो जाता है. इसकी वजह से कई बार उन्हें उन्हें दाम में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है.
कैसे बचें: ऐसे बॉन्ड चुनें जिनकी लिक्विडिटी ज्यादा हो या जिनमें मार्केट मेकर सक्रिय हों. इसके साथ ही वित्तीय सलाहकार की राय लेकर निवेश करना बेहतर रहेगा.
रीइन्वेस्टमेंट रिस्क
यह तब होता है, जब बॉन्ड से मिली रकम को दोबारा कम ब्याज दर पर लगाना पड़ता है. खासकर कॉलएबल बॉन्ड में यह रिस्क ज्यादा होता है, जिन्हें इश्यूअर समय से पहले रिडीम कर सकता है.
कैसे बचें: पोर्टफोलियो में अलग-अलग टर्म वाले बॉन्ड शामिल करें. इसे Bond Laddering Strategy कहा जाता है. इससे फायदा यह होगा कि जब रीइन्वेस्टमेंट का दबाव एक साथ नहीं पड़ेगा.
डिस्क्लेमर: मनी9लाइव किसी स्टॉक, म्यूचुअल फंड, आईपीओ या बॉन्ड्स में निवेश की सलाह नहीं देता है. यहां पर केवल जानकारी दी गई है. निवेश से पहले अपने वित्तीय सलाहकार की राय जरूर लें.
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