बिल्डर के वादों में मत फंसिए! जानें तैयार घर और अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी में कौन सा है बेहतर सौदा, सही फैसला बचाएगा टैक्स भी
घर खरीदते वक्त अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता है कि तैयार घर लें या अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी? दोनों विकल्पों के अपने फायदे और नुकसान हैं. तैयार घर जहां तुरंत रहने की सुविधा और मानसिक शांति देता है, वहीं अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी अक्सर सस्ती पड़ती है लेकिन उसमें देरी या डिफॉल्ट का खतरा बना रहता है. ऐसे में अपने बजट और जरूरतों को देखते हुए सोच-समझकर फैसला लेना ही समझदारी है.
अक्सर लोग तैयार घर (Ready to Move) और अंडर कंस्ट्रक्शन (यानी जो घर पूरी तरह से तैयार न हो) प्रॉपर्टी के बीच कीमत के बड़े अंतर को देखकर अंडर कंस्ट्रक्शन घर खरीदने की ओर आकर्षित हो जाते हैं, लेकिन वे अपने इस निर्णय के परिणामों को पूरी तरह समझ नहीं पाते. दोनों विकल्पों के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं. हालांकि, तैयार घर के फायदे उसके नुकसान से कहीं अधिक हैं. इसलिए इस लेख में हम समझेंगे कि अंडर कंस्ट्रक्शन घर की बजाय तैयार घर खरीदना क्यों बेहतर है.
यह लेख दो भागों में बंटा है. पहले भाग में हम किसी भी निर्णय के वित्तीय असर (financial implications) पर चर्चा करेंगे,
और दूसरे भाग में आयकर (income tax) से जुड़े प्रभावों को समझेंगे.
वित्तीय असर
समझदार लोग अक्सर एक कहावत करते हैं- ‘दोनों हाथ खाली होने से बेहतर हैं, एक भरा हो.’ यह कहावत इस विषय पर पूरी तरह लागू होती है.
अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी खरीदने के साथ कई तरह के जोखिम जुड़े होते हैं. जैसे बिल्डर द्वारा तय समय पर कब्जा (possession) न देना या प्रोजेक्ट अधूरा छोड़ देना. आपने अक्सर अखबारों या खबरों में देखा होगा कि बिल्डर द्वारा कब्जा देने में देरी आम बात है, समय पर डिलीवरी मिलना तो अपवाद जैसा है. यह देरी कुछ महीनों से लेकर दो-तीन साल तक भी खिंच सकती है.
भले ही RERA कानून लागू होने के बाद स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन देरी का जोखिम अब भी बना हुआ है.
तैयार घर खरीदने पर यह जोखिम खत्म हो जाता है. खरीदार को अपने पैसे का तुरंत प्रतिफल (immediate gratification) मिलता है. आजकल री-डेवलपमेंट के नाम पर कई छोटे बिल्डर बाजार में आ गए हैं जिनके पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं हैं. यही कारण है कि परियोजनाएं अधूरी रह जाती हैं या लंबी खिंचती हैं. कई बार निर्माण में देरी कानूनी विवादों के कारण भी होती है, जिससे खरीदार की परेशानी और खर्च दोनों बढ़ जाते हैं.
अधिकतर लोग बुकिंग के समय अपनी पूरी कमाई लगा देते हैं, जिसमें अक्सर अवैध या अनियमित धन का हिस्सा होता है. साथ ही भविष्य की बचत भी EMI के रूप में लगाई जाती हैं. ऐसे में अंडर कंस्ट्रक्शन घर खरीदना मतलब अपनी पूरी पिछली और आने वाली बचत को जोखिम में डालना है.
अगर आप फिलहाल किराए के मकान में रहते हैं, तो निर्माण में देरी की स्थिति में आपको किराया और EMI दोनों देना पड़ता है. यह दोहरी मार (double burden) है, जो कई लोगों की आर्थिक स्थिति डगमगा देती है. ऐसे में कुछ लोग मजबूर होकर अपना अंडर कंस्ट्रक्शन घर बेच देते हैं, और घर का सपना अधूरा रह जाता है.
इसके उलट, तैयार घर खरीदने पर किराया देना बंद हो जाता है. आप तुरंत घर में शिफ्ट होकर EMI आसानी से चुका सकते हैं. अगर खुद न रहना चाहें, तो घर किराए पर देकर EMI का कुछ हिस्सा निकाल सकते हैं.
लोग यह नहीं समझते कि अंडर कंस्ट्रक्शन घर की बुकिंग करना दरअसल डेवलपर को ऊंचे ब्याज पर पैसा उधार देने जैसा है, जिसमें जोखिम भी शामिल है. रियल एस्टेट सेक्टर की मौजूदा कमजोर स्थिति को देखते हुए डेवलपर के डिफॉल्ट (default) का खतरा और भी बढ़ गया है.
टैक्स से जुड़े असर
वित्तीय पहलुओं के अलावा, अंडर कंस्ट्रक्शन घर खरीदने पर कई आयकर (income tax) संबंधी नुकसान भी हैं.
आज के समय में घर खरीदना बिना होम लोन के लगभग असंभव है. अंडर कंस्ट्रक्शन घर पर लिए गए होम लोन पर Pre-EMI interest का भुगतान निर्माण पूरा होने से पहले ही शुरू हो जाता है. कई बार कब्जा मिलने से पहले पूरी EMI भी शुरू हो जाती है.
मौजूदा टैक्स नियमों के अनुसार, होम लोन पर टैक्स छूट तभी मिलती है जब घर का निर्माण पूरा हो जाए और आप कब्जा ले लें. निर्माण अवधि के दौरान दिए गए ब्याज को आप केवल 5 बराबर किस्तों में तभी से क्लेम कर सकते हैं, जब घर का कब्जा मिल जाए.
स्व-आवास (Self-occupied house) के लिए सेक्शन 24(b) के तहत ब्याज पर अधिकतम छूट ₹2 लाख तक मिलती है (केवल पुराने टैक्स सिस्टम में). नए टैक्स सिस्टम में यह छूट नहीं है. अगर मौजूदा ब्याज ही ₹2 लाख के बराबर या उससे ज्यादा है, तो प्रि-ईएमआई ब्याज पर आपका दावा खत्म हो जाता है.
अगर आप कब्जा लेने से पहले ही अंडर कंस्ट्रक्शन घर बेच देते हैं, तो उस अवधि में दिए गए ब्याज पर कोई टैक्स छूट नहीं मिलेगी. इसी तरह, अगर आप घर को कब्जा लेने के 5 साल के भीतर बेचते हैं, तो प्रि-ईएमआई ब्याज की किस्तों पर भी आपका अधिकार खत्म हो जाता है.
अगर किसी कारण से निर्माण में 5 साल से ज्यादा की देरी होती है, तो ब्याज पर मिलने वाली छूट ₹2 लाख से घटकर केवल ₹30,000 रह जाती है.
हालांकि अगर घर किराए पर दिया गया हो, तो ब्याज की कटौती की कोई ऊपरी सीमा नहीं होती, लेकिन अन्य आय के साथ अधिकतम ₹2 लाख तक ही समायोजित किया जा सकता है.
पुराने टैक्स सिस्टम में होम लोन के मूलधन (principal) की अदायगी पर भी सेक्शन 80C के तहत ₹1.5 लाख तक की छूट मिलती है. लेकिन यह छूट भी तभी मिलती है जब घर का कब्जा मिल जाए. अगर निर्माण अवधि के दौरान आपने कुछ लोन चुका दिया, तो उसका टैक्स लाभ स्थायी रूप से खो देते हैं, क्योंकि कानून में ऐसी अमॉर्टाइजेशन (amortization) की व्यवस्था नहीं है.
सेक्शन 54 और 54F के तहत, अगर आपने कोई पूंजीगत संपत्ति (capital asset) बेची है, तो नया घर 2 साल के भीतर खरीदने या 3 साल में बनवाने पर कैपिटल गेन टैक्स से छूट मिलती है. अगर डेवलपर तय समय पर निर्माण पूरा नहीं करता, तो यह छूट भी चली जाती है.
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आखिर में, तैयार घर लेने से आपको मानसिक शांति मिलेगी, जबकि अंडर कंस्ट्रक्शन (Under Construction) घर लेने पर हमेशा बिल्डर की देरी या डिफॉल्ट का खतरा सिर पर लटका रहेगा. हालांकि, यह पूरी चर्चा उन लोगों पर लागू नहीं होती जिनके पास तैयार घर खरीदने के लिए पर्याप्त धन नहीं है और जिन्हें मजबूरी में अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी लेनी पड़ती है. इसलिए, हर व्यक्ति को अपनी मौजूदा आर्थिक स्थिति और संसाधनों को ध्यान में रखते हुए दोनों विकल्पों के फायदे और नुकसान का मूल्यांकन कर खुद निर्णय लेना चाहिए.
लेखक एक टैक्स और इंवेस्टमेंट एक्सपर्ट हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं. आप उन्हें jainbalwant@gmail.com पर या ट्विटर हैंडल @jainbalwant पर संपर्क कर सकते हैं.
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