कभी BSE को टक्कर देता था कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज, 117 साल बाद मनाएगा आखिरी दिवाली; 1749 कंपनियां थीं लिस्टेड
कभी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) को टक्कर देने वाला कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज (CSE) 117 साल बाद बंद होने जा रहा है. 1908 में शुरू हुआ यह एक्सचेंज कोलकाता की आर्थिक ताकत का प्रतीक था. SEBI के नियम उल्लंघन और केतन पारेख घोटाले के बाद CSE की हालत बिगड़ती गई. CSE की कंपनी अब भी NSE और BSE पर ब्रोकरेज कार्य जारी रखेगी.
Calcutta Stock Exchange: एक समय था जब शेयर बाजार की बात होती थी तो बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के साथ-साथ कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज (CSE) का नाम भी गूंजता था. यह एक्सचेंज कोलकाता की आर्थिक ताकत और देश की वित्तीय रीढ़ का प्रतीक हुआ करता था. लेकिन इस साल, यह 117 साल पुराना एक्सचेंज अपने इतिहास में आखिरी बार दिवाली और काली पूजा मनाने जा रहा है. बंद होने से पहले यह उसकी अंतिम दिवाली होगी.
क्या हुआ अचानक
दरअसल, कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज अब अपना कारोबार बंद करने का फैसला कर चुका है. वर्ष 2013 में SEBI ने कुछ नियमों के अनुपालन में कमी के कारण यहां कारोबार पर रोक लगा दी थी. इसके बाद एक्सचेंज ने दोबारा संचालन शुरू करने की कोशिश की और अदालतों के दरवाजे भी खटखटाए, लेकिन आखिरकार हार मानते हुए उसने अपना लाइसेंस वापस सौंपने का निर्णय लिया है.
अब आगे क्या होगा
कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज के चेयरमैन दीपांकर बोस के मुताबिक, SEBI से अंतिम मंजूरी मिलने के बाद कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज एक स्टॉक एक्सचेंज के तौर पर अपना संचालन पूरी तरह बंद कर देगा. हालांकि, इसकी एक कंपनी, CSE Capital Markets Private Limited अभी भी NSE और BSE पर ब्रोकरेज का काम जारी रखेगी. साथ ही, एक्सचेंज की कोलकाता स्थित तीन एकड़ जमीन भी 253 करोड़ रुपये में बेची जा रही है.
क्यों डूबा एक्सचेंज
CSE की शुरुआत 1908 में हुई थी और यह देश के सबसे पुराने स्टॉक एक्सचेंजों में से एक है. लेकिन केतन पारेख घोटाला (120 करोड़ रुपये) इसके लिए घातक साबित हुआ. इस घोटाले ने एक्सचेंज पर से निवेशकों का भरोसा हिला दिया और धीरे-धीरे यहां कारोबार लगभग ठप हो गया.
भावुक हो रहे लोग
वरिष्ठ शेयर ब्रोकर सिद्धार्थ थिरानी पुराने दिनों को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं. उन्होंने PTI को बताया कि 1990 के दशक तक CSE के लायंस रेंज परिसर में हर सुबह कारोबार शुरू होने से पहले देवी लक्ष्मी की प्रार्थना की जाती थी. यह परंपरा अप्रैल 2013 तक जारी रही, जब रेगुलेटर ने यहां कारोबार बंद कर दिया. थिरानी कहते हैं, “यह दिवाली उस समृद्ध विरासत को अंतिम विदाई देने जैसी लग रही है.”
इस बंद होने की प्रक्रिया पिछले साल दिसंबर से तेज हुई, जब CSE के बोर्ड ने निर्णय लिया कि अब वह सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में चल रहे सभी मुकदमे वापस लेगा और स्वेच्छा से अपना लाइसेंस छोड़ देगा. इस प्रस्ताव को 25 अप्रैल को शेयरधारकों की मंजूरी मिल गई.
1,749 कंपनियां थीं लिस्टेड
बंद होने की तैयारी के तहत एक्सचेंज ने अपने सभी कर्मचारियों के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (VRS) शुरू की. इसके अंतर्गत कर्मचारियों को 20.95 करोड़ रुपये का एकमुश्त भुगतान किया जाएगा. इस कदम से कंपनी का लगभग 10 करोड़ रुपये का वार्षिक खर्च बच जाएगा. अधिकांश कर्मचारियों ने इस योजना को स्वीकार कर लिया है, जबकि कुछ कर्मचारियों को कानूनी कार्यों को निपटाने के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर रखा गया है.
CSE के चेयरमैन दीपांकर बोस ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा कि इस एक्सचेंज ने देश के कैपिटल मार्केट में अहम भूमिका निभाई थी. इसके साथ 1,749 कंपनियां लिस्टेड थीं और लगभग 650 ब्रोकर जुड़े हुए थे. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि अध्यक्ष बोस को पिछले वर्ष निदेशक के रूप में बैठकों में शामिल होने के लिए 5.9 लाख रुपये की फीस दी गई थी.
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