Jane Street vs SEBI: SAT तक पहुंची कानूनी जंग, विदेशी निवेशकों के लिए नजीर बन सकता है केस
अमेरिकी ट्रेडिंग फर्म Jane Street ने भारतीय शेयर बाजार के नियामक SEBI के खिलाफ SAT में केस दर्ज कराया है. रॉयटर्स सहित कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि इस मामले में SAT की तरफ से 8 सितंबर को सुनवाई की जाएगी.

Jane Street vs SEBI का मामला अब सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (SAT) तक पहुंच गया है. अमेरिकी हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग (HFT) फर्म जेन स्ट्रीट ने भारतीय बाजार नियामक सेबी के खिलाफ SAT में केस दायर किया है. कंपनी पर आरोप है कि उसने भारतीय बेंचमार्क इंडेक्स में हेरफेर किया है. जेन स्ट्रीट ने SAT में सेबी के उस अंतरिम आदेश को चुनौती दी है, जिसके तहत SEBI ने 4 जुलाई को Jane Street और तीन और फर्म को अस्थायी रूप से मार्केट से बैन कर दिया है. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक SAT इस मामले की सुनवाई 8 सितंबर को करेगा.
चारों फर्म पहुंचीं कोर्ट
SEBI के आदेश में नामित सभी चार एंटिटीज ने SAT का दरवाजा खटखटाया है. नियामक का आरोप है कि इन संस्थाओं ने कोर्डिनेटेड ट्रेडिंग स्ट्रैटेजीज का इस्तेमाल कर इंडेक्स लेवल्स को मनमाने तरीके से प्रभावित किया है. SEBI का यह कदम हाल के वर्षों में किसी विदेशी ट्रेडिंग फर्म पर की गई सबसे कड़ी कार्रवाई है.
क्या है जेन स्ट्रीट की दलील?
Jane Street ने अपनी फाइलिंग में कहा है कि SEBI उन दस्तावेजों और डाटा को साझा नहीं कर रहा है, जो आरोपों का खंडन करने के लिए जरूरी हैं. कंपनी के मुताबिक ये दस्तावेज उसकी बेगुनाही को साबित करने के लिए जरूरी हैं. SAT में दाखिल अपील का मुख्य मकसद यही है कि ट्रिब्यूनल SEBI को यह सामग्री उपलब्ध कराने का आदेश दे. क्योंकि, कंपनी बिना सबूतों के अपना डिफेंस तैयार नहीं कर सकती.
SEBI का आदेश और डेडलाइन
SEBI ने 4 जुलाई को जारी आदेश में जेन स्ट्रीट समेत चार एंटिटीज पर मार्केट मैनिपुलेशन का आरोप लगाते हुए मार्केट से बाहर कर दिया था. इसके साथ ही कंपनियों को 21 दिन के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया गया था. लेकिन यह डेडलाइन बीते कई हफ्ते निकल चुके हैं. अब SAT की सुनवाई इस पूरे विवाद का रुख तय कर सकती है.
SAT की भूमिका और सीमाएं
SAT भारतीय सिक्योरिटी मार्केट रेगुलेशन से जुड़े विवादों के लिए पहला अपीलेट फोरम है. यह सेबी के आदेशों की वैधता की जांच करता है और जरूरत पड़ने पर नियामक को नए निर्देश जारी कर सकता है. हालांकि, SAT केवल कानूनी और प्रक्रियात्मक पहलुओं पर ध्यान देता है, जबकि सेबी के पास जांच और एविडेंस जुटाने की शक्ति है.
हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग पर निगरानी कड़ी
भारत में हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग या एल्गो ट्रेडिंग बीते दशक में तेजी से बढ़ी है. SEBI ने समय-समय पर इसके खिलाफ सख्त गाइडलाइन लागू की हैं, ताकि फ्लैश क्रैश, फेक लिक्विडिटी और इंडेक्स मैनिपुलेशन जैसे जोखिमों को रोका जा सके. लेकिन इस केस ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि विदेशी फर्में कितनी पारदर्शिता के साथ भारतीय बाजार में काम कर रही हैं और क्या मौजूदा निगरानी ढांचा पर्याप्त है.
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