70000% रिटर्न! 16 महीने में ₹22 से ₹11900 कैसे पहुंचा स्टॉक, ‘बिगबैंग’ रैली पर उठे सवाल, क्या करती है कंपनी?

पिछले एक साल में भारतीय शेयर बाजार के बेंचमार्क इंडेक्स निफ्टी और सेंसेक्स का प्रदर्शन सुस्त रहा है. लेकिन, ऐसे दौर में एक कंपनी है, जिसके स्टॉक में 16 महीने में ही 70 हजार फीसदी से ज्यादा की तेजी आ चुकी है. जबकि कंपनी के फंडामेंटल में भी दम नहीं दिखता है. आखिर क्यों ऐसी कंपनी में रिकॉर्ड तेजी आई और अब सेबी पर क्यों सवाल उठ रहे हैं?

मल्टीबैगर स्टॉक Image Credit: money9live/CanvaAI

RRP Semiconductor का शेयर 16 महीने में 22 रुपये से 11,900 रुपये पहुंच गया, करीब 70,000% की ‘बिगबैंग’ रैली ने पूरे बाजार को चौंका दिया. कमजोर फंडामेंटल के बाद भी आखिर कैसे और क्यों इस स्टॉक में यह तेजी आई. इसे लेकर बिजनेस वर्ल्ड की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि असल में सेमीकंडक्टर नाम का भ्रम और अफवाहों की आग के साथ ही रेग्युलेटर की सुस्ती ने यह कहानी गढ़ी है. इसके साथ ही भारतीय स्टॉक मार्केट की निगरानी व्यवस्था पर भी बड़े सवाल खड़े किए हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक RRP सेमीकंडक्टर के स्टॉक की प्राइस जुलाई 2024 में 22 रुपये थी, इसका भाव नवंबर 2025 में 11,900 रुपये तक पहुंच गया. इस तरह करीब 70,000% का रिटर्न देखने को मिला है. इस दौरान स्टॉक दिन-दहाड़े लगातार चढ़ता रहा, पर BSE और SEBI की नजरों से बचा रहा. सवाल यह है कि इतना असामान्य उछाल कैसे बिना किसी जांच के गुजर गया?

कैसे रॉकेट बना RRP Semiconductor का स्टॉक

जुलाई 2024 से नवंबर 2025 तक शेयर ने ऐसी रफ्तार पकड़ी कि चार्ट देखकर किसी भी विश्लेषक को शॉक लग जाए. हर कुछ दिनों में सर्किट, कुछ हफ्तों में दोगुना भाव, कुछ महीनों में मल्टीबैगर और फिर मल्टीबैगर को भी पीछे छोड़ते हुए ये रैली सीधे ‘मार्केट माइथोलॉजी’ का हिस्सा बन गई है. रैली इतनी अननेचुरल कि वॉल्यूम, वैल्यूएशन और डिलीवरी डाटा भी इसका कोई तर्क नहीं दे पा रहा था. स्टॉक उस स्पीड से भागा, जिसकी कोई आर्थिक वजह मौजूद ही नहीं है.

अफवाहों का जाल और कंपनी का ‘नो कनेक्शन’ बयान

रिपोर्ट के मुताबिक सोशल मीडिया पर इस स्टॉक ने एक अलग ही ब्रह्मांड बना लिया है. किसी ने 100-एकड़ जमीन का दावा किया, किसी ने PLI अप्रूवल की कहानी लिखी, तो कई पोस्ट्स में सचिन तेंदुलकर तक को शेयरहोल्डर बना दिया गया. कंपनी ने आखिर में सफाई देते हुए कहा कि न तेंदुलकर से कोई रिश्ता है, न जमीन का ऐसा कोई सौदा, न PLI का कोई आधार है. लेकिन तब तक रिटेल निवेशक इस रैली को ‘सपनों का स्टॉक’ मान चुके थे और फोरम्स पर अपने काल्पनिक करोड़ों की गणना कर रहे थे.

फंडामेंटल इतने कमजोर कि वैल्यूएशन शब्द भी शर्माए

कंपनी की बैलेंस शीट रैली के सामने चुटकुला लगती है. सेल्स, प्रॉफिट, मार्जिन, प्रोजेक्ट्स असल में कोई संख्या ऐसी नहीं है, जो 11,900 के भाव को जस्टिफाई करे. कंपनी खुद मानती है कि उसका बिजनेस मौजूदा स्टॉक वैल्यू के करीब भी नहीं है. यह साफ संकेत है कि यह रैली फंडामेंटल्स पर नहीं, बल्कि मार्केट मेकैनिक्स, अफवाहों के सहारे खड़ी हुई थी.

भ्रम की असली वजह

कहानी का असली मोड़ नाम में आता है. RRP Semiconductor नाम की एक और कंपनी मौजूद है. असल में उस कंपनी जिसने PLI के लिए आवेदन किया था. लेकिन, उसे भी रिजेक्ट कर दिया गया था. यह कंपनी उस व्यक्ति से जुड़ी मानी जाती है, जिसकी हिस्सेदारी लिस्टेड एंटीटी में सबसे ज्यादा है, लेकिन जो खुद को प्रमोटर घोषित करने से बचता रहा. दो समान नाम वाली कंपनियां, दो अलग कार्यक्षेत्र, एक जैसी ब्रांडिंग के जरिये बाजार में एक ऐसा भ्रम पैदा किया गया, जिसने निवेशकों को उत्साहित भी किया और बेखबर भी रखा गया.

ट्रेडिंग कंपनी से अचानक ‘सेमीकंडक्टर’ ब्रांड

RRP Semiconductor की जड़ें असल में 1980 में बनी GD Trading & Agencies Ltd तक जाती हैं. दशकों तक सुस्त पड़ी यह कंपनी 2023-24 में अचानक सेमीकंडक्टर का चोला पहनकर बाजार में उतरती है. इसी दौरान भारी प्रिफरेंशियल अलॉटमेंट के जरिये पुराने प्रमोटर की हिस्सेदारी सिर्फ 1% के आसपास रह गई, जबकि कंपनी का असल कंट्रोल उसी शख्स के हाथों में जाता दिखा, जिसे प्रमोटर के तौर पर दिखाया ही नहीं गया. यह स्ट्रक्चर ही कई सवाल खड़े करता है कि आखिर किसने, कब और क्यों कंपनी पर नियंत्रण स्थापित किया.

BSE ने बहुत दे से की कार्रवाई

पूरे 16 महीनों में कोई निगरानी नहीं, कोई चेतावनी नहीं, कोई अलर्ट नहीं. रैली चलती रही और एक्सचेंज की तरफ से इसे लेकर कोई सर्कुलर जारी नहीं किया गया. जब मामला सोशल मीडिया से उठकर राजनीतिक गलियारों और ऑनलाइन फोरम्स तक पहुंच गया, तब 7 नवंबर, 2025 को BSE ने कंपनी से क्लैरिफिकेशन मांगा और अब 25 नवंबर से कंपनी पर वीकली ट्रेडिंग और 1% प्राइस बैंड जैसी कठोर पाबंदियां लगाने का ऐलान किया गया है. यह कदम ऐसा लगा जैसे, मैच खत्म होने के बाद अंपायर नो-बॉल देने आए हों.

जड़ हो गया शेयर

BSE की पाबंदियों के बाद शेयर एक तरह के ‘फ्रोजन जोन’ में पहुंच गया है. ₹11,000 के आसपास भाव अटका हुआ है, ट्रेडिंग लगभग ठप, बायर्स-सेलर्स गायब और बाजार इसे छूने से भी हिचक रहा है. यह स्थिति बताती है कि रैली फंडामेंटल्स की नहीं थी, बल्कि एक ऐसे सायकल की थी, जो अब अपने ही वजन से स्थिर हो चुकी है.

निवेशकों को क्या संदेश देता है ये चमत्कार?

यह मामला भारतीय मार्केट की निगरानी व्यवस्था की बड़ी खामियों को उजागर करता है. अगर 70,000% की रैली भी सिस्टम को जगा नहीं पाती है, तो छोटे-मोटे हेरफेर पर कैसे रोक लगेगी? यह केस बताता है कि ऑपरेटर्स, अफवाहें और कमजोर रेग्युलेटरी टाइमिंग मिलकर कैसे एक स्टॉक को ‘मार्केट मिथ’ में बदल सकते हैं. RRP Semiconductor आज सिर्फ एक स्टॉक नहीं, बल्कि मार्केट स्ट्रक्चर, रेग्युलेशन और निवेशक व्यवहार की सबसे बड़ी केस स्टडी बन चुका है.

डिस्क्लेमर: Money9live किसी स्टॉक, म्यूचुअल फंड, आईपीओ में निवेश की सलाह नहीं देता है. यहां पर केवल स्टॉक्स की जानकारी दी गई है. निवेश से पहले अपने वित्तीय सलाहकार की राय जरूर लें.