बस करा लें ये एक छोटा सा काम, खेत की मिट्टी खुद बताएगी कैसे उगलेगी सोना
किसानों के खेतों की मिट्टी की जांच के आधार पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड (सॉइल हेल्थ कार्ड) बनाया जाता है. इस जांच से मिट्टी की बनावट की गहरी जानकारी मिलती है, जिससे यह तय करना आसान हो जाता है कि किसान को किस मौसम में कौनसी फसलें लगाने पर ज्यादा उत्पादन मिलेगा. जानेंं कैसे किसानों को मिल रहा है इसका लाभ.

अगर आपको खेतों से उम्मीद के मुताबिक उपज नहीं मिल रही है, तो एक बार अपने खेत की मिट्टी से बात करके देखें. खेत की मिट्टी खुद बता देगी कि कौनसी फसल, कैसे उगाने पर आपको सबसे अच्छी उपज मिलेगी. मिट्टी के मन की बात सुनने में केंद्र सरकार आपकी मदद करेगी. सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसए) के मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (एसएचएम) कार्यक्रम के तहत किसानों के खेतों की मिट्टी की जांच के आधार पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड (सॉइल हेल्थ कार्ड) बनाया जाता है. इस जांच से मिट्टी की बनावट की गहरी जानकारी मिलती है, जिससे यह तय करना आसान हो जाता है कि किसान को किस मौसम में कौनसी फसलें लगानी हैं, कितनी सिंचाई करनी है और कैसे व कितने उर्वरक का इस्तेमाल करना है. एसएचएम का उद्देश्य किसानों को रासायनिक उर्वरकों का समझदारी से उपयोग करते हुए पोषक तत्व प्रबंधन (आईएनएम) करना सिखाना है. इसके साथ ही जैविक खाद और जैव-उर्वरकों की मदद से मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों को बढ़ाकर उत्पादकता में सुधार करना है.
क्या है सॉइल हेल्थ कार्ड योजना
कृषि मंत्रालय के तहत कृषि एवं सहकारिता विभाग की यह योजना प्रत्येक किसान को उसके खेत की मिट्टी की रासायनिक बनावट की स्थिति बताती है. इस बनावट के आधार किसानों को उर्वरकों की खुराक और मिट्टी में किसी खास फसल की बेहतर उपज के लिए जरूरी बदलावों के बारे में भी सलाह दी जाती है. किसान इसका उपयोग मिट्टी के मुताबिक फसल चुनने या फसल के मुताबिक मिट्टी में बदलावों की सलाह लेने के लिए कर सकते हैं.
कार्ड बनने पर कितने दिन बाद कराएं जांच
किसान को सॉइल हेल्थ कार्ड 3 साल के लिए उपलब्ध कराया जाता है. इससे किसान के खेत की मिट्टी के स्वास्थ्य का एक रिकॉर्ड तैयार होगा, जिससे लंबी अवधि में मिट्टी की पोषकता को बनाए रखने के लिए जरूरी बदलावों की सलाह दी जा सकती है.
जब सैंपलिंग हो, तो इन बातों का रखें ध्यान
जीपीएस उपकरणों और राजस्व मानचित्रों की मदद से राज्य सरकार की तरफ से सिंचित क्षेत्र में प्रत्येक 2.5 हेक्टेयर और वर्षा आधारित क्षेत्र में प्रत्येक 10 हेक्टेयर के ग्रिड में मिट्टी के नमूने लिए जाते हैं. मिट्टी का नमूना कौन राज्य सरकार के कृषि विभाग के कर्मचारी या आउटसोर्स एजेंसी के कर्मचारी लेते हैं. राज्य सरकारें इसमें स्थानीय कृषि व विज्ञान महाविद्यालयों के छात्रों को भी शामिल कर सकती हैं। मिट्टी के नमूने लेने का आदर्श समय रबी और खरीफ की फसल की कटाई के बाद होता है, जब खेत में कोई खड़ी फसल न हो.
खेत से मिट्टी के सैंपल की प्रक्रिया
खेत की मिट्टी की सही जानकारी हासिल करने के लिए इस बात का ध्यान रखें कि कोई प्रशिक्षित व्यक्ति ही मिट्टी का सैंपल ले. खासतौर पर मिट्टी को वी आकार में काटकर 15 से 20 सेमी की गहराई से सैंपल लिया जाता है. मिट्टी के सैंपल खेत के चारों कोनों और बीच से लिए जाते हैं. इसके बाद इन्हें अच्छी तरह मिलाया जाएगा और इसका एक हिस्सा नमूने के तौर पर प्रयोगशाला में भेजा जाता है.
इन 12 मानकों पर होती है मिट्टी की जांच
मिट्टी के नमूने का परीक्षण 12 मापदंडों के आधार पर किया जाता है. इनमें भौतिक मापदंडों में पीएच, विद्युत चालकता और ऑर्गेनिक कार्बन शामिल होते हैं. मैक्रोन्यूट्रिएंट्स में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम और सल्फर शामिल हैं. इसके अलावा माइक्रोन्यूट्रिएंट्स में जिंक, बोरॉन, आयरन, मैंगनीज और कॉपर शामिल हैं.
कहां करें आवेदन और कौनसे दस्तावेज जरूरी
अपने खेत की मिट्टी का सॉइल हेल्थ कार्ड बनवाने के लिए आधिकारिक बेवसाइट soilhealth.dac.gov.in पंजीकरण करें. इसके बाद आधार कार्ड, आय प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण, मोबाइल नंबर जैसी जानकारी दर्ज करें. जमीन की पहचान संबंधी दस्तावेज अपलोड करें. पंजीकरण और मांगे गए दस्तावेज अपलोड करने के बाद एक यूआईडी दिया जाएगा, जिसके आधार पर किसान को स्थानीय लैब से मिट्टी की जांच के बाद सॉइल हेल्थ कार्ड जारी किया जाएगा.
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