अनिल अंबानी कॉमन मैन की तरह नहीं कर पाएंगे ये 4 काम, एक चूक बनी जी का जंजाल, जानें वो गलतियां
ED ने मनी लॉन्ड्रिंग केस में अनिल अंबानी की लगभग 9000 करोड़ रुपये की संपत्तियां अटैच कर दी हैं. इस कार्रवाई से उनकी वित्तीय स्थिति, लिक्विडिटी, कर्ज चुकाने की क्षमता और कारोबारी प्रतिष्ठा पर गंभीर असर पड़ा है. यात्रा प्रतिबंध और कंपनियों के शेयरों में गिरावट ने स्थिति और चुनौतीपूर्ण बना दी है.
ED ने अनिल अंबानी और उनकी कंपनियों से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में अब तक अनिल अंबानी की लगभग 9000 करोड़ रुपये की संपत्तियों को अटैच कर दिया है. इस अटैचमेंट ने उनके वित्तीय ढांचे को एक झटके में हिला दिया है. इसके अलावा ये फैसला उनके कारोबार, प्रतिष्ठा और विदेश यात्रा को हर दिशा से प्रभावित कर रहा है.
अपने ही प्रॉपर्टी की नहीं कर पाएंगे खरीद-फरोख्त
अटैचमेंट के बाद अनिल अंबानी इन संपत्तियों को न बेच सकते हैं, न किराये पर दे सकते हैं और न ही इनके बदले कोई बैंकिंग सुविधा ले सकते हैं. इससे उनकी निजी लिक्विडिटी लगभग खत्म हो जाती है. यह संकट इसलिए और बड़ा है क्योंकि अटैच की गई संपत्तियां बेहद वैल्यूएबल हैं और सामान्य परिस्थितियों में ये उनकी वित्तीय रणनीति का आधार होतीं.
अहम अटैच संपत्तियों में शामिल-
- पाली हिल बंगला (मुंबई): बाजार मूल्य ₹6,000 करोड़ से अधिक
- धीरुभाई अंबानी नॉलेज सिटी (नवी मुंबई): 132 एकड़, अनुमानित मूल्य ₹4,462 करोड़
- दिल्ली का रिलायंस सेंटर: तीन एकड़ में फैला प्रमुख परिसर
इन बड़ी परिसंपत्तियों पर किसी भी तरह की वित्तीय गतिविधि पर रोक लगने से उनकी नकदी जुटाने की क्षमता लगभग समाप्त हो गई है.
विदेश यात्रा नहीं कर सकते अनिल अंबानी
अनिल अंबानी के खिलाफ personal insolvency का मामला पहले ही NCLT में चल रहा है, और RCom को fraud घोषित किए जाने के बाद उनकी व्यक्तिगत देनदारियां और भी कठोर हो गई हैं. इन परिस्थितियों में सबसे महत्वपूर्ण प्रतिबंध वह है यात्रा प्रतिबंध, जो उन पर पहले ही लगाया जा चुका है. इस आदेश के तहत अनिल अंबानी को देश से बाहर जाने की अनुमति नहीं है, यानी वे किसी भी अंतरराष्ट्रीय यात्रा, मीटिंग या निवेशक संवाद में भाग नहीं ले सकते.
कारोबारी दुनिया में जहां ग्लोबल नेटवर्किंग और विदेशी निवेशकों से सीधे संपर्क बेहद अहम है, यह प्रतिबंध उनकी रणनीतिक स्वतंत्रता पर सीधा असर डालता है और कानूनी दबाव को और बढ़ा देता है.
SBI, BOI, BOM जैसे बैंकों से नहीं ले पाएंगे लोन
यह अटैचमेंट अनिल अंबानी की debt servicing कैपेसिटी को सबसे अधिक प्रभावित करती है. जिन बैंकों ने इन संपत्तियों को गिरवी रखकर कर्ज दिया था, अब वे किसी भी तरह की रिफाइनेंसिंग के लिए तैयार नहीं होंगे.
स्थिति को और जटिल बनाता है:
- SBI, बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ महाराष्ट्र पहले ही RCom को fraud घोषित कर चुके हैं.
- व्यक्तिगत गारंटी के मामलों में अंबानी की जिम्मेदारी और बढ़ जाएगी.
समूह के लिए क्रेडिट लाइनों का बंद होना लगभग तय है. यह ऐसा दौर है जब किसी भी बड़े कारोबारी समूह के लिए सर्वाइवल और refinancing दोनों कठिन हो जाते हैं.
आम इंसान के तरह नहीं कर सकते ट्रेडिंग
23 अगस्त 2024 को सेबी (SEBI) ने अनिल अंबानी और 24 अन्य इकाइयों पर पांच साल का प्रतिबंध लगाया था. साथ ही सेबी ने 25 करोड़ की पेनाल्टी लगाई थी. सेबी ने आरोप लगाया था कि इन सभी ने मिलकर रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड (RHFL) से फंड siphon off करने की एक धोखाधड़ी वाली योजना चलाई थी.
अनिल अंबानी ने इस फैसले को चुनौती देते हुए सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (SAT) में अपील दायर की थी. बाद में 18 अक्टूबर 2024 को SAT ने ₹25 करोड़ के दंड पर शर्तों के साथ रोक (conditional stay) दे दी, हालांकि शेयर बाजार में ट्रेडिंग का फैसला अभी जस का तस है.
कंपनी के स्टॉक से नाता तोड़ रहे निवेशक
रिलायंस पावर और रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर अभी संचालन में हैं, लेकिन ED की जांच इन कंपनियों की ओर भी बढ़ रही है, जिससे इनकी बाजार विश्वसनीयता पर असर पड़ रहा है.
- रिलायंस पावर: Q2 FY26 में ₹87 करोड़ का मुनाफा, पर कंपनी के CFO की गिरफ्तारी गंभीर संकेत देती है. जिससे निवेशकों का भरोसा डगमगा रहा है. पीछले तीन महीने में कंपनी के शेयरों में 16 फीसदी तक की गिरावट आई है.
- रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर: 16921 करोड़ रुपये की नेटवर्थ, debt-free बनने की दिशा में, लेकिन ED की अटैचमेंट लिस्ट में इसके कई एसेट शामिल हैं. कंपनी के शेयरों में भारी नुकसान देखने को मिला, बीते 3 महीने में शेयर 39 फीसदी टूट चुके हैं.
ये घटनाएं बताती हैं कि समूह की ऑपरेटिंग कंपनियां भी जोखिम के घेरे में आ चुकी हैं.
प्रतिष्ठा पर भारी आघात
70 के दशक में धीरुभाई अंबानी द्वारा खड़ी की गई विरासत से अलग होकर अनिल अंबानी ने अपना समूह बनाया था, और एक समय यह देश के शीर्ष उद्योगपतियों में शामिल था. आज ED की इतनी बड़ी कार्रवाई उनके व्यावसायिक भरोसे को गंभीर रूप से चोट पहुंचा रही है. जिसका असर ये होगा कि:
- उनके नई परियोजनाओं के लिए निवेशक तैयार नहीं होंगे
- वैश्विक फंड और बैंकों की सतर्कता बढ़ेगी
- साझेदारों के साथ गठजोड़ कमजोर होंगे
कॉरपोरेट दुनिया में प्रतिष्ठा ही पूंजी होती है, और यह वही पूंजी है, जिस पर आज सबसे बड़ा खतरा है.
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कहां हुई चूक?
सूत्रों के अनुसार, ED द्वारा जारी अटैचमेंट आदेश में यह आरोप लगाया गया है कि अंबानी समूह की कंपनियों ने बैंकों से प्राप्त कर्ज का उचित इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि इन धनराशियों को समूह की ही अन्य सहयोगी और कथित शेल कंपनियों की ओर मोड़ दिया गया. बताया गया कि कॉर्पोरेट लोन का एक बड़ा हिस्सा अंततः रिलायंस समूह से जुड़ी इकाइयों के खातों में पहुंच गया. यह पैटर्न इस ओर संकेत करता है कि फंड पहले बाहर भेजा गया और बाद में समूह की कंपनियों में वापस लाया गया, जिससे फंड राउंड-ट्रिपिंग और कथित मनी लॉन्ड्रिंग की आशंका मजबूत हो गई.
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