भारत-UK व्यापार समझौते में नहीं शामिल होंगे पेटेंट एक्सटेंशन और डेटा एक्सक्लूसिविटी, मंत्रालय ने की पुष्टि
भारत और UK के बीच हुई नई ट्रेड डील में एक ऐसा फैसला हुआ है, जो भारत की फार्मा इंडस्ट्री और आम लोगों, दोनों के लिए राहत की खबर है. विदेशी दवा कंपनियों की एक अहम मांग को भारत ने मानने से इनकार कर दिया है. पूरी कहानी पढ़िए इस रिपोर्ट में.

भारत और यूनाइटेड किंगडम (UK) के बीच 24 जुलाई को हुए फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) ने एक बड़ी बहस पर विराम लगा दिया है. यह डील साफ करती है कि भारत ने समझौते में न तो पेटेंट की मियाद बढ़ाने की शर्त मानी है और न ही डेटा एक्सक्लूसिविटी को मंजूरी दी है. यह फैसला देश की 25 अरब डॉलर की जेनरिक दवा उद्योग के लिए एक बड़ी राहत माना जा रहा है, जो विश्व भर में भारत की पहचान का आधार है.
क्या थी विदेशी दवा कंपनियों की मांग?
UK की कुछ दवा कंपनियां जैसे AstraZeneca और GSK, लंबे समय से भारत पर दबाव बना रही थीं कि वह पेटेंट की अवधि बढ़ाने और ‘डेटा एक्सक्लूसिविटी’ जैसे प्रावधानों को अपने कानून में जोड़े. इसी तरह की मांग स्विट्जरलैंड की Novartis और Roche जैसी कंपनियों ने भी की थी. ये कंपनियां चाहती थीं कि भारत उन डाटा को कॉपी करने से रोके जो नई दवाओं के लिए क्लीनिकल ट्रायल्स से जुटाए जाते हैं.
भारत का मानना है कि “डेटा एक्सक्लूसिविटी” और “पेटेंट टर्म एक्सटेंशन” जैसी शर्तें सिर्फ बड़ी दवा कंपनियों को लंबे समय तक एकाधिकार बनाए रखने का जरिया बनती हैं. इसे एवरग्रीनिंग कहा जाता है- जब कंपनियां छोटी-छोटी फेरबदल करके पुराने पेटेंट को फिर से नए के तौर पर दर्ज कराती हैं. इससे जेनरिक दवाओं की एंट्री टल जाती है, जिससे मरीजों को सस्ती दवाएं नहीं मिल पातीं.
भारत का पेटेंट कानून रहेगा बरकरार
वाणिज्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि इस FTA से भारत के पेटेंट कानून की Section 3(d) और Section 3(b) को कोई नुकसान नहीं होगा. ये प्रावधान पहले से ही ऐसी दवाओं के पेटेंट को खारिज करते हैं जो केवल नाम के बदलाव से पेश की जाती हैं लेकिन उनके असर में कोई फर्क नहीं होता.
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क्या मिलेगा भारत को?
इस समझौते में ऐसा कोई प्रावधान नहीं जो भारत को पेटेंट लिंकिंग, ऑटोमैटिक इंजंक्शन या बार-बार फाइलिंग से रोकने की बाध्यता दे. यानी भारत अपने कानून और नीति के अनुसार ही तय करेगा कि किसे पेटेंट देना है और किसे नहीं. FTA के लागू होने में अभी करीब एक साल लगेगा, लेकिन यह तय है कि भारत ने इसमें अपनी स्वास्थ्य नीति और जेनरिक उद्योग के हितों से कोई समझौता नहीं किया है.
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