इस बिजनेसमैन के आइडिया से बनी HAL, राजा ने दिए थे 25 लाख और 700 एकड़ जमीन; आज 3 लाख करोड़ की हैसियत
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड आम सरकारी कंपनी नहीं है. ऐसे में यह जानना इसलिए अहम हो जाता है कि जिस कंपनी की स्थापना कभी अंग्रेजों के युद्ध हितों को साधने के लिए हुई थी, वही कंपनी समय के साथ भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता का सबसे मजबूत स्तंभ कैसे बन गई. आइए जानते हैं.
आज के वक्त में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड करीब 2,95,625 करोड़ रुपये की मार्केट कैप वाली कंपनी है. यह कोई आम सरकारी कंपनी नहीं है, बल्कि भारत की रक्षा ताकत की रीढ़ बन चुकी है. आज HAL देश के लिए तेजस, मारुत, ध्रुव और प्रचंड जैसे लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर बनाती है. इसके अलावा एवियोनिक्स, इंजन और एयरोस्पेस सिस्टम जैसे बेहद अहम हिस्सों पर भी HAL का बड़ा काम है. सीधे शब्दों में कहें तो भारतीय वायुसेना और रक्षा क्षेत्र में जो कुछ उड़ता है, उसके पीछे कहीं न कहीं HAL की मेहनत जुड़ी हुई है.
ऐसे में यह जानना इसलिए अहम हो जाता है कि जिस कंपनी की स्थापना कभी अंग्रेजों के युद्ध हितों को साधने के लिए हुई थी, वही कंपनी समय के साथ भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता का सबसे मजबूत स्तंभ कैसे बन गई. आइए जानते हैं.
संयोग से शुरू हुई कहानी
HAL की कहानी दरअसल भारत की ही कहानी है. यह गुलामी से आत्मनिर्भरता तक, विदेशी लाइसेंस से स्वदेशी डिजाइन तक और युद्धकालीन जरूरतों से ग्लोबल एयरोस्पेस खिलाड़ी बनने तक का सफर है. जिस नींव पर कभी ब्रिटिश साम्राज्य की जरूरतें टिकी थीं, वही नींव आज भारत के स्ट्रैटेजिक फ्यूचर को आकार दे रही है. साल था 1939. जब उद्योगपति सेठ वालचंद हिराचंद एक लंबी हवाई यात्रा पर थे. उसी विमान में उनकी मुलाकात विलियम डगलस पॉली से हुई, जो उस वक्त अमेरिकी कंपनी हार्लो एयरक्राफ्ट के डायरेक्टर थे. यही मुलाकात आगे चलकर भारत में एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री की नींव बनी.
युद्ध की जरूरत से जन्मी कंपनी
हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड की स्थापना मुख्य रूप से दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश हुकूमत को विमान आपूर्ति में मदद के लिए की गई थी. 23 दिसंबर 1940 को बेंगलुरु में कंपनी का गठन हुआ. इसका मकसद तत्कालीन युद्ध जरूरतें थीं, लेकिन यही पहल आगे चलकर भारत की सामरिक आत्मनिर्भरता की सबसे मजबूत कड़ी बन गई. 1939 में सेठ वालचंद हिराचंद और विलियम डगलस पॉली की मुलाकात से जो विचार जन्मा, वह दिसंबर 1940 में एक औपचारिक संस्थान का रूप ले चुका था. यह भारत की विमान निर्माण यात्रा की पहली ठोस शुरुआत थी.
मैसूर रियासत का निर्णायक योगदान
उस समय मैसूर के महाराजा जयचामाराजेंद्र वाडियार ने इस सपने को साकार करने में निर्णायक भूमिका निभाई. सिंहासन पर बैठने के कुछ ही महीनों बाद उन्होंने न सिर्फ 700 एकड़ कीमती जमीन दान की, बल्कि 25 लाख रुपये का निवेश भी किया. जब दूसरी रियासतें आगे नहीं आईं, तब मैसूर ने भारत के एयरोस्पेस फ्यूचर की नींव रखने का साहसिक फैसला लिया. उनके दीवान सर मिर्जा इस्माइल ने भी इस पहल को मजबूती दी. इन्हीं दूरदर्शी प्रयासों की बदौलत भारत 1940 के दशक में ही विमान निर्माण कंपनी स्थापित करने में सफल हुआ.
सरकारी कंट्रोल और विस्तार की शुरुआत
मार्च 1941 में भारत सरकार कंपनी की शेयरहोल्डर बनी और 1942 में मैनेजमेंट अपने हाथ में ले लिया. अमेरिका की इंटर कॉन्टिनेंटल एयरक्राफ्ट कंपनी के सहयोग से हार्लो ट्रेनर, कर्टिस हॉक फाइटर और वल्टी बॉम्बर जैसे विमानों का निर्माण शुरू हुआ. जनवरी 1951 में कंपनी को रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में रखा गया. यहीं से HAL का सफर एक नेशनल स्ट्रैटेजिक इंस्टिट्यूशन के रूप में साफ होने लगा.
लाइसेंस से स्वदेशी उड़ान तक
शुरुआती सालों में HAL ने विदेशी डिजाइन पर आधारित विमानों और इंजनों का निर्माण किया, जैसे प्रेंटिस, वैम्पायर और ग्नैट. लेकिन अगस्त 1951 में HT-2 ट्रेनर विमान की पहली उड़ान के साथ स्वदेशी डिजाइन की दिशा में निर्णायक कदम रखा गया. इसके बाद पुष्पक, कृषक, HF-24 जेट फाइटर ‘मारुत’ और HJT-16 ‘किरण’ जैसे विमानों का विकास हुआ. यह वही दौर था, जब HAL सिर्फ लाइसेंस मैन्युफैक्चरर नहीं, बल्कि डिजाइन और डेवलपमेंट हाउस के रूप में उभर रही थी.
विलय जिसने HAL को नई पहचान दी
साल 1963 में सरकार ने मिग-21 के लाइसेंस निर्माण के लिए एरोनॉटिक्स इंडिया लिमिटेड की स्थापना की. नासिक और कोरापुट में फैक्ट्रियां बनीं. संसाधनों के बेहतर उपयोग और तकनीकी क्षमता के समन्वय के लिए 1 अक्टूबर 1964 को हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड और एरोनॉटिक्स इंडिया लिमिटेड का विलय कर दिया गया. इसी के साथ नई इकाई का नाम पड़ा हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड. HAL अब डिजाइन, विकास, निर्माण, मरम्मत और ओवरहॉल, सभी क्षेत्रों में एकीकृत शक्ति बन चुकी थी.
हेलीकॉप्टर, एवियोनिक्स और ग्लोबल पार्टनरशिप
1970 के दशक से HAL ने हेलीकॉप्टर निर्माण, एवियोनिक्स यानी एविएशन (विमानन) और इलेक्ट्रॉनिक्स और यह विमानों, अंतरिक्ष यानों व उपग्रहों में इस्तेमाल होने वाली सभी इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों और उपकरणों को कहते हैं, जो संचार, नेविगेशन और डिस्प्ले जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को संभालती हैं, जिससे हवाई जहाज सुरक्षित और कुशलता से उड़ सकें.
इसके अलावा HAL ने अंडरकारेज, ईजेक्शन सीट्स और इंजन सिस्टम जैसे क्षेत्रों में वैश्विक साझेदारियों के साथ विस्तार किया. फ्रांस, ब्रिटेन और सोवियत संघ के साथ लाइसेंस समझौतों ने तकनीकी आधार मजबूत किया. यही वह समय था जब कंपनी ने चेतक और चीता हेलीकॉप्टरों के जरिए भारतीय सेना की लॉजिस्टिक क्षमता को नई मजबूती दी.
अंतरिक्ष कार्यक्रम में HAL की भूमिका
HAL की भूमिका सिर्फ सैन्य विमानों तक सीमित नहीं रही. 1988 में एयरोस्पेस डिवीजन की स्थापना के बाद कंपनी ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भी अहम योगदान दिया. ISRO के लिए लॉन्च व्हीकल स्ट्रक्चर, GSLV Mk.III, मंगल मिशन और मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए मॉड्यूल HAL की औद्योगिक क्षमता का प्रमाण हैं.
BSE और NSE पर लिस्टिंग के बाद नया दौर
2018 में BSE और NSE पर लिस्टिंग के साथ HAL एक नई कॉरपोरेट पहचान के साथ सामने आई. LCA तेजस, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर, लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर, HTT-40 और IMRH जैसे प्रोजेक्ट आज भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता का चेहरा हैं.
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