’70 घंटे काम’ पर संसद में उठा सवाल, सरकार ने दिया ये जवाब

भारत सरकार ने संसद में स्पष्ट किया है कि सप्ताह में 70 या 90 घंटे काम करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है, जिसका मतलब है कि सरकार की कोई प्लानिंग नहीं है कि लोगों को सप्ताह में 70 घंटे काम करना होगा. यह बयान तब आया जब कुछ कॉरपोरेट लीडर्स ने सुझाव दिया था कि लोगों को 70 से 90 घंटे प्रति हफ्ते काम करना चाहिए.

70 घंटे काम की सलाह पर सरकार ने दिया जवाब Image Credit: money9live.com

हफ्ते में 70 घंटे काम करना हो या 90 घंटे, इसकी सलाह देने वाले दिग्गजों की बातें लंबे समय तक चर्चा का विषय बनी रही, लेकिन भारत की ग्रोथ को लेकर ऐसे सुझावों पर खुद सरकार क्या सोचती है, ये आज पता चला गया. सरकार ने संसद में इस चर्चा पर अपनी राय भी रख दी है, और सरकार इस बात से सहमत नहीं है.

सरकार ने सोमवार, 3 फरवरी को संसद में स्पष्ट किया कि सप्ताह में 70 या 90 घंटे काम करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है. इसका मतलब 70 घंटे काम को लेकर सरकार की कोई प्लानिंग नहीं है. हाल ही में कुछ कॉरपोरेट लीडर्स ने यह सुझाव दिया था कि अधिकतम कार्य घंटों को बढ़ाकर 70 से 90 घंटे प्रति सप्ताह किया जाना चाहिए.

संसद में क्या हुआ?

दरअसल संसद में इसी को लेकर सवाल पूछ दिया गया जिसपर श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में कहा कि, “ऐसा कोई प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन नहीं है.”

उन्होंने बताया कि श्रम या लेबर को लेकर केवल केंद्र ही नहीं राज्य सरकारें भी फैसला लेती हैं क्योंकि यह कॉनकरेंट लिस्ट में शामिल है. केंद्रीय क्षेत्र में श्रम कानूनों का पालन सुनिश्चित करने के लिए सेंट्रल इंडस्ट्रियल रिलेशन मशीनरी (CIRM) के निरीक्षण अधिकारी जिम्मेदार होते हैं, जबकि राज्यों में राज्य सरकार की श्रम प्रवर्तन एजेंसियां इस काम को अंजाम देती हैं.

मौजूदा श्रम कानून क्या कहते हैं?

भारत में वर्तमान लेबर को लेकर कानूनों कहते हैं कि काम की शर्तें, काम के घंटे और ओवरटाइम का फैसला फैक्ट्रीज एक्ट 1948 और कई राज्य सरकारों के शॉप्स एंड इस्टेबलिशमेंट एक्ट के तहत किया जाता है.

ज्यादातर कॉरपोरेट सेक्टर और निजी कंपनियां इसी एक्ट के अंतर्गत आती हैं, इसलिए उनके लिए इन्हीं नियमों का पालन करना जरूरी है.

क्या ज्यादा काम करने से स्वास्थ्य पर असर पड़ता है?

हाल ही में आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 ने इस मुद्दे पर कई अध्ययनों का हवाला दिया. सर्वेक्षण में बताया गया कि हफ्ते में 60 घंटे से अधिक काम करना स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, “लंबे समय तक डेस्क पर बैठकर काम करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. जो लोग रोज 12 घंटे या उससे अधिक काम करते हैं, उनकी मानसिक स्थिति संघर्षपूर्ण हो जाती है.”

सर्वेक्षण ने WHO यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन और ILO यानी अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के एक संयुक्त अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि हफ्ते में 55-60 घंटे से ज्यादा काम करने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.

एक अन्य अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में हर साल 12 अरब वर्किंग डे सिर्फ अवसाद और चिंता के कारण बर्बाद हो जाते हैं, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 1 लाख करोड़ डॉलर (करीब 83 लाख करोड़ रुपये) का नुकसान होता है.

अगर इसे भारतीय संदर्भ में देखें, तो रोजाना लगभग 7,000 रुपये का नुकसान होता है.