SGB vs Jewellery vs ETF: 1 लाख के इन्वेस्टमेंट पर किसने दिया सबसे अधिक रिटर्न? निवेश से पहले देखें पूरी कैलकुलेशन
दिवाली का त्योहार आते ही सोने की चमक फिर से बाजार में बिखर गई. पिछले साल इस मौके पर भारत ने 35000 किलो सोना खरीदा था. लेकिन क्या ये चमकदार निवेश असल में फायदेमंद है? बंगार के आंकड़े चौंका देने वाले हैं. कॉइन्स से 184031 रुपये मिले (वार्षिक रिटर्न 5.19 फीसदी) दिए. ज्वेलरी ने सिर्फ 185963 रुपये दिए (3.66 फीसदी रिटर्न) दिए.

SGB vs Jewellery vs ETF: दिवाली का त्योहार आते ही सोने की चमक फिर से बाजार में बिखर गई. पिछले साल इस मौके पर भारत ने 35000 किलो सोना खरीदा था. लेकिन क्या ये चमकदार निवेश असल में फायदेमंद है? टैक्सबडी.कॉम के संस्थापक सुजीत बंगार ने एक लिंक्डइन पोस्ट में इसका खुलासा किया है. उनकी रिपोर्ट कहती है कि ट्रेडिशनल सोना तो अच्छा लगता है, लेकिन छिपे खर्चों ने कई खरीदारों को नुकसान पहुंचाया है. उन्होंने चार मुख्य तरीकों की तुलना की. इसमें सिक्के, गहने, ईटीएफ और एसजीबी शामिल है. आइए पूरे कंपेरिजन को विस्तार से जानते है.
एक लाख रुपये के निवेश की कहानी
बंगार की स्टोरी एक लाख रुपये के निवेश से शुरू होती है. कल्पना कीजिए, आप धनतेरस पर सोना खरीदते हैं. फिजिकल कॉइन्स में 3 फीसदी GST, 5 फीसदी बनाने का चार्ज और लॉकर का किराया जोड़ें तो कुल खर्च 129150 रुपये हो जाता है. ज्वेलरी का हाल और बुरा, कुल 1,44,600 रुपये. क्यों? क्योंकि गहनों में डिजाइन और पत्थरों के लिए 3 से 30 फीसदी तक एक्स्ट्रा चार्ज लगता है. लेकिन गोल्ड ETF और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड्स (SGB) में कोई अतिरिक्त खर्च नहीं. इसमें पूरा 1 लाख ही लगता है.
पांच साल बाद क्या हुआ?
बंगार के आंकड़े चौंका देने वाले हैं. कॉइन्स से 184031 रुपये मिले (वार्षिक रिटर्न 5.19 फीसदी) दिए. ज्वेलरी ने सिर्फ 185963 रुपये दिए (3.66 फीसदी रिटर्न) दिए. कमाई कम, खर्च ज्यादा. वहीं ETF ने बेहतर किया. इसने 179950 रुपये (8.76 फीसदी) का रिटर्न दिया. लेकिन विनर रहा SGB. इसने निवेशकों को 202274 रुपये (10.59 फीसदी रिटर्न) दिया. सोने में निवेश का फर्क सिर्फ चमक में नहीं, बल्कि स्मार्ट चॉइस में है.

टैक्स का पूरा गणित
SGB की खासियत यह है कि इसमें कोई GST नहीं, कोई बनाने का झंझट नहीं, लॉकर का बोझ नहीं. हर साल 2.5 फीसदी ब्याज मिलता है और मैच्योरिटी पर कैपिटल गेन टैक्स बिल्कुल फ्री! सिर्फ ब्याज पर ही टैक्स लगता है. टैक्स का जाल भी बड़ा है. फिजिकल सोना या कॉइन्स 24 महीने बाद बेचें तो 12.5 फीसदी लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स. ETF पर 12 महीने बाद वही. जल्दी बेचा तो इनकम स्लैब रेट से टैक्स. वहीं SGB पर ये सब बच जाता है.
किससे पैसे निकालना आसान
पैसे निकालने में भी आसानी का फर्क है. ETF दिन भर स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड होते हैं, कीमत ट्रांसपेरेंट, लेकिन ट्रैकिंग एरर और स्प्रेड से थोड़ा नुकसान हो सकता है. फिजिकल सोना आसानी से बिकता है, मगर मार्केट रेट से कम. SGB सेकेंडरी मार्केट में बेच सकते हैं, लेकिन खरीदार कम मिलते हैं और प्रीमियम लग सकता है.
बंगार का कहना है कि, “ज्वेलरी सबसे महंगी साबित होती है. लोग चमक देखकर खरीदते हैं, लेकिन बनाने के चार्ज कभी वापस नहीं आते. ये एक तरह का छिपा नुकसान है.” एक्सपर्ट का कहना है कि धनतेरस जैसे मौकों पर भावुक खरीदारी ज्यादा होती है, लेकिन डेटा दिखाता है स्मार्ट निवेश जैसे SGB ही लंबे समय में अमीर बनाते हैं.
क्या होता है ETF और SGBETF और SGB क्या है?
ETF और SGB दोनों ही सोने में निवेश करने के डिजिटल तरीके हैं. इन दोनों में मेन डिफरेंस उनके फीचर्स में है. ETF (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड) एक ऐसा फंड है जो स्टॉक एक्सचेंज पर शेयरों की तरह खरीदा-बेचा जाता है और यह सिर्फ सोने की कीमतों को ट्रैक करता है, जबकि SGB (सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड) सरकार द्वारा जारी किए गए बॉन्ड हैं जो सोने की कीमतों के साथ-साथ 2.5% की निश्चित वार्षिक ब्याज दर भी देते हैं.
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डिस्क्लेमर: Money9live किसी स्टॉक, म्यूचुअल फंड, आईपीओ में निवेश की सलाह नहीं देता है. यहां पर केवल स्टॉक्स की जानकारी दी गई है. निवेश से पहले अपने वित्तीय सलाहकार की राय जरूर लें.
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