शांति बिल से न्यूक्लियर एनर्जी पावर बनने का सपना! क्या ₹3000 करोड़ की देनदारी पर्याप्त, सबक सिखाते हैं भोपाल से लेकर फुकुशिमा के हादसे
परमाणु ऊर्जा में निजी कंपनियों की एंट्री को लेकर सरकार का SHANTI Bill एक नई शुरुआत की बात करता है, लेकिन Rs 3000 करोड़ की देनदारी सीमा कई सवाल भी छोड़ती है. भोपाल गैस त्रासदी से लेकर फुकुशिमा तक, इतिहास बताता है कि बड़े हादसों की कीमत क्या होती है.
Shanti Bill 2025: भारत में परमाणु ऊर्जा को लेकर बहस हमेशा दो ध्रुवों के बीच घूमती रही है, एक तरफ ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु लक्ष्यों की मजबूरी, दूसरी तरफ सुरक्षा, जवाबदेही और भरोसे का सवाल. सरकार द्वारा प्रस्तावित Atomic Energy Bill, 2025, जिसे SHANTI Bill (Sustainable Harnessing of Advancement of Nuclear Energy for Transforming India) कहा जा रहा है, इसी संतुलन को साधने की कोशिश करता है. यह बिल देश के परमाणु सेक्टर में निजी क्षेत्र की भागीदारी का रास्ता खोलता है, लेकिन साथ ही कुछ ऐसे प्रावधान भी सामने लाता है, जो भविष्य में किसी अप्रिय घटना की स्थिति में जवाबदेही और मुआवजे को लेकर सवाल खड़े करते हैं.
सबसे ज्यादा चर्चा में है बिल का वह प्रावधान, जिसके तहत किसी भी परमाणु दुर्घटना की स्थिति में निजी ऑपरेटर की अधिकतम देनदारी ₹3000 करोड़ तक सीमित कर दी गई है. अब सवाल यह है कि अगर भविष्य में कोई बड़ी दुर्घटना होती है, तो क्या यह सीमा पीड़ितों और पर्यावरण के लिए पर्याप्त होगी?
भारत की ऊर्जा जरूरतें और SHANTI Bill की पृष्ठभूमि
वर्तमान में भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी लगभग 3 प्रतिशत है. सरकार ने 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें स्वदेशी स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) भी शामिल हैं. यह लक्ष्य बिना बड़े पूंजी निवेश के संभव नहीं है.
इसी संदर्भ में SHANTI Bill सामने आता है. यह बिल सरकार को यह अधिकार देता है कि वह लाइसेंस के जरिये सरकारी कंपनियों, जॉइंट वेंचर्स और घरेलू निजी कंपनियों को परमाणु संयंत्रों के निर्माण और संचालन की अनुमति दे सके. सरकार का तर्क है कि इससे परियोजनाओं के निर्माण में तेजी आएगी, पूंजी जुटाना आसान होगा और भारत अपने दीर्घकालिक ऊर्जा लक्ष्यों की ओर बढ़ सकेगा.
यूरेनियम-थोरियम पर सरकार का एकाधिकार क्यों अहम?
यहां यह साफ करना जरूरी है कि SHANTI Bill परमाणु क्षेत्र को पूरी तरह निजी हाथों में नहीं सौंपता. बिल की सबसे अहम विशेषता यही है कि परमाणु ईंधन चक्र का रणनीतिक हिस्सा, यूरेनियम और थोरियम की खोज, खनन, स्वामित्व और प्रबंधन पूरी तरह केंद्र सरकार के नियंत्रण में ही रहेगा.
सरकारी अधिकारियों का मानना है कि यह व्यवस्था इसलिए जरूरी है क्योंकि परमाणु ईंधन dual-use होता है—यानी इसका इस्तेमाल बिजली उत्पादन के साथ-साथ सामरिक उद्देश्यों में भी हो सकता है. इस एकाधिकार को सरकार किसी भी अप्रिय घटना या सुरक्षा चूक की आशंका को न्यूनतम रखने के रूप में देखती है.
निवेश के लिए सहूलियत
मगर सरकार के इस विवेकपूर्ण फैसले के साथ ही एक ऐसा प्रावधान है जो विवादास्पद है. किसी भी परमाणु दुर्घटना के लिए निजी ऑपरेटर की अधिकतम देयता केवल ₹3000 करोड़ होगी. यानी हादसे की कुल हानि इससे ऊपर हो तो सरकार को ही मुआवज देना होगा.

यह ढांचा निवेशकों के नजरिये से जोखिम को “predictable” बनाता है. कंपनियां पहले से जानती होंगी कि उनकी अधिकतम कानूनी जिम्मेदारी कितनी है, जिससे बीमा और वित्तीय योजना बनाना आसान होगा.
लेकिन यहीं से सवाल भी शुरू होते हैं- किसी बड़े परमाणु हादसे में मात्र ₹3000 करोड़ की जवाबदेही पीड़ितों और पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई के लिए पर्याप्त होगी? ऐसे बड़े हादसों में कंपनियों की जवाबदेही के उदाहरण दुनिया में देखे जा सकते हैं.
भोपाल गैस त्रासदी: जब नियमों की कमी भारी पड़ी
भारत के अपने इतिहास में भोपाल गैस त्रासदी (1984) इसका सबसे कड़ा उदाहरण है. उस हादसे में मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव से लगभग 3,800 लोगों की तत्काल मौत हो गई वहीं, बाद में ये आंकड़ा 24,000 तक पहुंच गया, लेकिन कानून के कमजोर होने के कारण आगे की कार्रवाई सीमित रही.

सोर्स-HT via Getty Images
यूनियन कार्बाइड जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी ने अंततः 1989 में भारत सरकार के साथ लगभग 470 मिलियन डॉलर का समझौता किया, जो पीड़ितों की वास्तविक परेशानियों और पर्यावरणीय क्षति के सामने नगण्य साबित हुआ है.उस समय कंपनी के अमेरिकी चेयरमैन वॉरेन एंडरसन को भोपाल आने पर गिरफ्तार तो किया गया, लेकिन उसे ₹25,000 के मामूली बॉन्ड पर जमानत देकर छोड़ दिया गया और वह तुरंत देश छोड़ के भाग गया.
उसे बाद में अदालत में विरोधी तरीके से ‘फुगिटिव’ (भागोड़ा) घोषित किया गया और यूनियन कार्बाइड या एंडरसन के खिलाफ पर्यावरणीय पुनर्स्थापन या प्रदूषण सम्बंधी जवाबदेही पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई. यह भी रहा कि भारत सरकार द्वारा किए गए extradition (वापसी के लिए अनुरोध) प्रयास कभी पूरी तरह सफल नहीं हुए, जिससे यह खामी सामने आई कि उस समय की कानूनी व्यवस्थाएं इतनी मजबूत नहीं थीं कि ऐसे बड़े औद्योगिक हादसे की स्पष्ट जवाबदेही और पूरी तरह से निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित कर सकें.
फुकुशिमा: असीमित देनदारी का मॉडल
2011 में जापान के फुकुशिमा परमाणु हादसे ने दुनिया को एक अलग मॉडल दिखाया. इस न्यूक्लियर घटना से अकेले कोई जान-माल का खतरा नहीं हुआ लेकिन Japanease Fire and Disaster Management Agency के मुताबिक, 11 फरवरी तक 71,124 लोगों को शहर पलायन करना पड़ा. फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के पीछे TEPCO नामक निजी कंपनी थी.

सोर्स-DigitalGlobe via Getty Images
जापानी कानून के तहत TEPCO की देयता असीमित थी. Oecd-nea.org की रिपोर्ट के मुताबिक, उसे अपने परमाणु संयंत्र पर ¥120 अरब (US$1.1 अरब) तक का बीमा खरीदना था और सरकार ने बड़े पैमाने पर क्षतिपूर्ति के लिए अतिरिक्त कवरेज दी . इसके बाद जापान सरकार ने एक विशेष कोष बनाया जिसमें औद्योगिक कंपनियों के योगदान और सरकारी लोन से कुल लगभग ¥5 ट्रिलियन (US$50 अरब) जुटाए गए. Worldnuclear.org की रिपोर्ट के मुताबिक, इस राशि का इस्तेमाल प्रभावितों को मुआवजा देने में हुआ. 2021 तक फुकुशिमा विस्थापितों को व्यक्तिगत और संपत्ति मुआवजे के रूप में ¥9.7 ट्रिलियन (करीब US$70 अरब) दिए जा चुके थे.इनमें TEPCO के अलावा सरकारी संसाधन भी शामिल थे.
अमेरिका में तो Price-Anderson Act है, जिसके तहत हर परमाणु दुर्घटना के लिए लगभग $13.6 अरब तक (लगभग ₹1.1 लाख करोड़) का सुरक्षा कवच उपलब्ध है.
यह भी पढ़ें: कॉपर के बाजार में खतरा या मौका? Goldman Sachs ने सामने रख दिया पूरा कैलकुलेशन, निवेश से पहले पढ़ें ये रिपोर्ट
संतुलन की कोशिश
ये उदाहरण बताते हैं कि बड़े परमाणु हादसों में लागत अनुमान से कहीं ज्यादा होती है. शांति बिल ने निजी क्षेत्र के निवेश का रास्ता तो खोल दिया है, साथ ही रणनीतिक ईंधन चक्र को अपने नियंत्रण में रखकर सुरक्षा को प्राथमिकता दी है और कानूनी अस्पष्टता घटाने की कोशिश की है, लेकिन देनदारी के इस कैप ने बहस बढ़ा दी है.
Latest Stories
ICICI बैंक को 238 करोड़ रुपये का GST डिमांड नोटिस मिला, अब बैंक उठाएगा यह कदम
भारत-ओमान के बीच FTA, 98% प्रोडक्ट पर लगेगी जीरो फीसदी ड्यूटी; टेक्सटाइल लेदर से लेकर इन सेक्टर को होगा फायदा
रिलायंस की बड़ी डील, तमिलनाडु की उदयम्स में खरीदी मेजॉरिटी हिस्सेदारी; जानें क्या है मेगा प्लान
