चांदी में आ गया गिरावट का समय! 100 साल से हर उछाल के बाद आई मंदी, यकीन ना हो तो देख लें आंकड़े
इस साल चांदी की कीमतों में 80 फीसदी से अधिक की तेजी आई है. रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच चुकी इस रैली ने निवेशकों का ध्यान खींचा है. बढ़ती औद्योगिक मांग और कम होती सप्लाई इसकी बड़ी वजह हैं. लेकिन अगर इतिहास पर नजर डालें तो जब भी चांदी में इतनी तेज बढ़त हुई है, उसके बाद भारी गिरावट भी आई है.

Silver Returns History: इस साल चांदी की कीमतों में 80 फीसदी से अधिक की तेजी आई है. रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच चुकी इस रैली ने निवेशकों का ध्यान खींचा है. बढ़ती औद्योगिक मांग और कम होती सप्लाई इसकी बड़ी वजह हैं. लेकिन अगर इतिहास पर नजर डालें तो जब भी चांदी में इतनी तेज बढ़त हुई है, उसके बाद भारी गिरावट भी आई है. पिछले कई सालों के आंकड़े बताते हैं कि जब भी चांदी ने एक साल में 50 फीसदी से ज्यादा रिटर्न दिया है, उसके बाद मंदी का दौर देखने को मिला है. ऐसे में आइए चांदी के रिटर्न के पुराने इतिहास को जानें और समझें कि क्या चांदी फिर से पुराना इतिहास दोहरा सकती है, यानी कि क्या 2026 में सिल्वर में निवेशकों को बेहतर रिटर्न की जगह नुकसान होगा.
क्या है चांदी की तेजी की वजह?
चांदी की मौजूदा रैली सोने से बिल्कुल अलग है. जहां सोना निवेशकों की भावना और केंद्रीय बैंकों की खरीद पर निर्भर रहता है, वहीं चांदी की मांग अब उद्योगों से आ रही है. सोलर पैनल, इलेक्ट्रिक गाड़ियां, सेमीकंडक्टर और 5G नेटवर्क जैसे सेक्टर में यह जरूरी मेटल बन चुका है. क्लीन एनर्जी की ओर बढ़ते कदमों ने इसे और भी अहम बना दिया है. लेकिन इस साल की 80 फीसदी की बढ़त सिर्फ इंडस्ट्रियल डिमांड की वजह से नहीं है. दुनिया भर में माइनिंग प्रोडक्शन डिमांड के मुताबिक नहीं बढ़ पा रहा है. इस कमी के साथ-साथ सट्टेबाजों की दिलचस्पी और बढ़ती लीज रेट्स ने बाजार में सिल्वर स्क्वीज की स्थिति बना दी है.
इतिहास के पन्नों में चांदी की कहानियां
मैक्रोट्रेंड्स के आंकड़ों के मुताबिक, जब हम चांदी की कीमतों के आंकड़ों को पिछली सदी तक देखेंगे, तो बड़ा ही दिलचस्प रिजल्ट देखने को मिलेगा. चांदी और उत्साह का रिश्ता हमेशा थोड़ा मजेदार और पैटर्न वाला रहा है.

1946 युद्ध के बाद की पहली उछाल: द्वितीय विश्व युद्ध के ठीक बाद, 1946 में चांदी की कीमतें 53.9 फीसदी बढ़ीं. लेकिन यह तेजी ज्यादा दिन तक नहीं चली. अगले साल कीमतें 10 फीसदी गिरीं, और अगले चार सालों में चांदी मामूली बढ़त और मामूली गिरावट के बीच झूलती रही. एक साल 2.8 फीसदी बढ़ी, तो अगले साल 2.7 फीसदी गिरी. 1951 तक चांदी ने दो अंकों में फिर से बढ़त दर्ज की.
1967 में बड़ा उछाल और जल्दी ठंडा पड़ना:1967 में चांदी में 72.6 फीसदी की शानदार बढ़त आई, जो 20वीं सदी के सबसे बड़े सालाना उछाल में से एक थी. लेकिन अगले साल 1968 में 13.5 फीसदी की गिरावट, फिर 1969 में 8.2 फीसदी और 1970 में 8.9 फीसदी की गिरावट ने इस तेजी को ठंडा कर दिया.
1973 में दो साल तक चलने वाला आश्चर्य: 1973 में तेल संकट और मुद्रास्फीति की चिंता के बीच, चांदी फिर बाजार की पसंदीदा बन गई. इसकी कीमत 60 फीसदी से ज्यादा बढ़ी और 1974 में 37 फीसदी की और तेजी आई. लेकिन 1975 में 7 फीसदी की गिरावट ने निवेशकों के विश्वास को झटका दिया.
1979 का उन्माद: 1979 में चांदी की कीमतें 435 फीसदी तक पहुंच गईं, जब हंट भाइयों ने वैश्विक बाजार पर कब्जा करने की कोशिश की. कीमतें लगभग 50 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गईं. लेकिन नियामकों के हस्तक्षेप और ट्रेडिंग लिमिट्स के चलते यह बुलबुला फूट गया. 1980 में चांदी 51.9 फीसदी गिरी और अगले 13 सालों में 11 साल घाटे में रही.
आधुनिक समय की बड़ी तेजी
वैश्विक वित्तीय संकट के बाद 2009 में चांदी में 57.5 फीसदी की बढ़त आई. 2010 में और 80 फीसदी की तेजी ने इसे और ऊंचा किया. लेकिन फिर 2013–2018 के बीच लगातार गिरावट आई. साल 2013 में 35 फीसदी, 2014 में 18 फीसदी और 2016 में 13.6 फीसदी.
तेजी और मंदी का साइकल
पिछली सदी में चांदी की हर बड़ी तेजी के बाद मंदी आई. निवेशक अक्सर गिरावट से उबरने में लंबा समय लगाते हैं. उदाहरण के लिए, जनवरी 1980 में चांदी 10,000 रुपये प्रति किलोग्राम पार करने के बाद, इसे फिर से उस स्तर पर पहुंचने में 24 साल लगे. 2011 में हाई पर पहुंचने के बाद, चांदी को लगभग आठ साल तक उस ऊंचाई को दोबारा पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा.
क्या याद रखना चाहिए
आज की तेजी वास्तविक औद्योगिक मांग पर आधारित है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि चांदी स्थिर रहेगी. अक्षय ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़े लॉन्ग टर्म रुझान हाई डिमांड का समर्थन करते हैं, लेकिन इतिहास बताता है कि अस्थिरता आ सकती है. चांदी में निवेश से पोर्टफोलियो में विविधता आ सकती है, लेकिन अधिक उत्साह के साथ निवेश करना जोखिम भरा हो सकता है. सोने के विपरीत, चांदी में इंस्टिट्यूशनल खरीदारी कम होती है, इसलिए सट्टेबाजी घटते ही कीमतें तेजी से गिर सकती हैं.
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