Tata Sons की लिस्टिंग में अड़ंगा! आखिर किस बात की आशंका? खुलेंगे कई राज… नोएल और मिस्त्री आमने-सामने

Tata Sons Listing: मेहली मिस्त्री का खेमा टाटा संस की लिस्टिंग और ट्रस्ट में ट्रांसपेरेंसी की मांग कर रहा है. दूसरी तरफ नोएल टाटा का खेमा टाटा संस की लिस्टिंग के पक्ष में नहीं है. आखिर ऐसा क्या है कि टाटा संस की लिस्टिंग के लिए नोएल टाटा का खेमा तैयार नहीं है?

क्या है टाटा संस की लिस्टिंग का विवाद. Image Credit: AI

Tata Sons Listing: भारत के सबसे दिग्गज औद्योगिक समूह टाटा में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. सबसे पुराने परोपकारी संस्थानों में से एक, टाटा ट्रस्ट्स में 11 सितंबर को हुई बोर्ड बैठक के दौरान मतभेद खुलकर सामने आ गए. मतभेदों के बाद टाटा ट्रस्ट में दो खेमे उभरकर सामने आए हैं. पहला खेमा टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह का है. दूसरे खेमे में हैं मेहली मिस्त्री, प्रमित झावेरी, जहांगीर एस जहांगीर और डेरियस खंबाटा. रतन टाटा के निधन को अभी एक साल ही बीते हैं और बोर्ड रूम के मतभेद सड़कों पर आ गए हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, मेहली मिस्त्री का खेमा टाटा संस की लिस्टिंग और ट्रस्ट में ट्रांसपेरेंसी की मांग कर रहा है. दूसरी तरफ नोएल टाटा का खेमा टाटा संस की लिस्टिंग के पक्ष में नहीं है. जबकि शापूरजी पालोनजी समूह ने (SP Group) टाटा संस की लिस्टिंग के लिए दोबारा सेबी का दरवाजा खटखटाया है. आखिर ऐसा क्या है कि टाटा संस की लिस्टिंग के लिए नोएल टाटा का खेमा तैयार नहीं है. इसे समझने की कोशिश करते हैं.

टाटा ट्रस्ट जिस टाटा संस को संभालाता है, उसमें 29 कंपनियां हैं और कारोबार 38,000 करोड़ रुपये का है. टाटा संस में ट्रस्ट की हिस्सेदारी 66 फीसदी है.

लिस्टिंग के प्रभाव

अगर टाटा संस के शेयर मार्केट में लिस्ट होते हैं, तो देश के कॉरपोरेट गवर्नेंस की दिशा में एक बड़ा कदम होगा. टाटा संस का आईपीओ सिर्फ, पब्लिक ऑफर भर नहीं होगा, बल्कि एक भीमकाय समूह के आने से मार्केट की वैल्यूएशन में भारी बढ़ोतरी होगी. कॉरपोरेट ट्रांसपेरेंसी की तरफ भी एक अहम रास्ता खुलेगा. हालांकि, सवाल सिर्फ वैल्यूएशन या फिर शेयरों की कीमत भर का नहीं है. सवाल भरोसे के मूल्यांकन भी है. दरअसल, टाटा संस कुल 29 कंपनियों की होल्डिंग कंपनी है. इनमें टाटा मोटर्स, टाटा पावर, टाइटन और टीसीएस जैसी दिग्गज कंपनियां शामिल हैं. इसलिए टाटा संस की कुल वैल्यू 180 अरब डॉलर है.

नोएल टाटा क्यों नहीं चाहते हैं लिस्टिंग?

अगर भविष्य में टाटा संस बाजार में लिस्ट होती है, तो पहली बार टाटा समूह की इंटरनल बैलेंस शीट और कंपनियों को चलाने के तरीके सभी के सामने आएंगे. निवेशकों को पता चलेगा कि कंपनियों को किस तरह से ऑपरेट किया जाता रहा है और ग्रोथ से लेकर विस्तार तक के लिए लिए गए फैसलों का क्या आधार रहा है. इसके अलावा लिस्टिंग से ट्रस्ट के भीतर भी ट्रांसपेरेंसी आएगी, जिसकी मांग मेहली मिस्त्री का खेमा कर रहा है. साथ ही शापूरजी पालोनजी समूह (SP Group) जैसी बाहरी हिस्सेदारियों की वास्तिवक वैल्यू का पता चलेगा और शेयरहोल्डर्स के लिए रियल वैल्यू तो अनलॉक होगी ही.

मार्केट में चल रही चर्चाओं के अनुसार टाटा संस वैल्यू 11 से 13 लाख करोड़ रुपये के बीच होने का अनुमान है. अगर भविष्य में टाटा संस का आईपीओ आता है, तो यह भारत का सबसे बड़ा पब्लिक ऑफर हो सकता है.

कम हो जाएगा कंट्रोल

रिपोर्ट के अनुसार, नोएल टाटा का खेमा इसलिए लिस्टिंग नहीं चाहता, क्योंकि अगर लिस्टिंग होती है तो टाटा ट्रस्ट का टाटा संस पर 66 फीसदी का कंट्रोल कम हो जाएगा. लिस्टिंग से शेयरहोल्डर्स को ताकत मिलेगी और बोर्ड रूम के फैसले सार्वजनिक होंगे. कुल मिलाकर पारिवारिक विरासत एक कॉरपोरेट वोटिंग में बदल जाएगी. इसलिए नोएल टाटा लिस्टिंग नहीं चाहते हैं. जबकि मेहली मिस्त्री का खेमा टाटा संस को दलाल स्ट्रीट पर पहुंचाने की कोशिश में जुटा है.

SP Group शेयरों को कैश कराना चाहता है

शापूरजी पालोनजी समूह (SP Group) को इस साल दिसंबर करीब 1.2 अरब डॉलर (लगभग 10,000 करोड़ रुपये) का कर्ज चुकाना है. इसलिए वो लिस्टिंग के पक्ष में है, जिससे होने वाली कमाई से वो अपना कर्ज चुका सके. शापूरजी पालोनजी समूह की 18.37 फीसदी हिस्सेदारी है.

कहां से शुरू हुआ विवाद?

10 अक्टूबर की बैठक शांति से निपट तो गई, लेकिन कहा जा रहा है कि सुलग चुके विवाद की आंच अभी बुझी नहीं है. विवाद की शुरुआत टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टी और वाइस-चेयरमैन विजय सिंह की टाटा संस बोर्ड में पुनर्नियुक्ति से तब हुई, जब ट्रस्टी मेहली मिस्त्री के नेतृत्व वाले एक गुट ने सिंह की दोबारा नियुक्ति के खिलाफ खड़े हो गए.

9 अक्टूबर 2024 को रतन टाटा के निधन को अभी एक साल बीते हैं और टाटा ट्रस्ट्स की अचूक दिखने वाली इमारत में अब कुछ दरारें नजर आने लगी हैं. टाटा-साइरस मिस्त्री मामले के विपरीत, जिसमें मिस्त्री हार गए थे, टाटा ट्रस्ट्स के ताजा मतभदों में साइरस के चचेरे भाई मेहली मिस्त्री का दबदबा बना हुआ है. कम से कम उनकी असहमति ने ट्रस्टियों के बीच कुछ प्रमुख मतभेदों को उजागर कर दिया है.

सरकार का हस्तक्षेप

हालांकि, अभी तक यह लड़ाई बोर्डरूम में ही लड़ी जा रही है और अदालतों तक नहीं पहुंची है, लेकिन केंद्र सरकार की नजरों में यह मामला आ गया है. 7 अक्टूबर को टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा, दो ट्रस्टियों और टाटा संस के अध्यक्ष एन. चंद्रशेखरन के साथ, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से नई दिल्ली में मिले थे. सरकार ने भारत के सबसे पुराने और सबसे बड़े कॉरपोरेट घरानों में से एक में लगी आग को बुझाने की कोशिश के रूप में हस्तक्षेप किया, तब जाकर 10 अक्टूबर की मीटिंग शांति से पूरी हुई.

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