सेबी ने बदले IPO एंकर बुक नियम, इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स का रिजर्व कोटा 40 फीसदी तक बढ़ाया
बाजार नियामक सेबी ने IPO एंकर बुक के नियमों को बदलने का ऐलान किया है. अब किसी भी आईपीओ में इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स की भागीदारी 40 फीसदी तक हो पाएगी. अब तक यह सीमा 33 फीसदी तक थी. इस बदलाव से बाजार में लिस्ट होने वाली कंपनियों में म्यूचुअल फंड, पेंशन फंड जैसे बड़े निवेशकों की भागीदारी बढ़ेगी.
भारतीय शेयर बाजार के नियामक सेबी ने IPO में एंकर इन्वेस्टर्स का हिस्सा 33% से बढ़ाकर 40% कर दिया है. इसमें 33% म्यूचुअल फंड्स और 7% बीमा व पेंशन फंड्स को मिलेगा. अब 250 करोड़ रुपये तक के IPO में 5 से 15 निवेशकों की अनुमति होगी. नई गाइडलाइंस 30 नवंबर, 2025 से लागू होंगी, जिससे लॉन्ग टर्म इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा मिलेगा.
इस संबंध में सेबी की तरफ से जारी एक अधिसूचना में कहा गया है कि अब 250 रुपये के तक IPO में इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स के लिए रिजर्व कोटा 40% तक होगा. इसमें 33% हिस्सा म्यूचुअल फंड्स के लिए और 7% हिस्सा बीमा व पेंशन फंड्स के लिए रहेगा. यदि 7% का यह हिस्सा नोटिफाइड निवेशकों की तरफ से नहीं भरा जाता है, तो यह म्यूचुअल फंड्स को अलॉट कर दिया जाएगा.
एंकर इन्वेस्टर्स की संख्या भी बढ़ेगी
सेबी ने एंकर इन्वेस्टर्स की अधिकतम सीमा भी बढ़ाने का ऐलान किया है. अब 250 करोड़ से अधिक के एंकर बुक वाले IPOs के लिए निवेशकों की सीमा को 10 से बढ़ाकर 15 प्रति 250 करोड़ कर दिया गया है. 250 करोड़ रुपये तक के आवंटन के लिए कम से कम 5 और अधिकतम 15 एंकर निवेशक होंगे. इसके बाद हर अतिरिक्त 250 करोड़ रुपये पर 15 अतिरिक्त निवेशकों को अनुमति दी जाएगी, बशर्ते प्रत्येक निवेशक को कम से कम 5 करोड़ रुपये का आवंटन मिले.
कैटेगरी होंगी मर्ज
पहले एंकर अलॉटमेंट में दो कैटेगरी थीं. कैटेगरी I में 10 करोड़ रुपये तक के निवेशक शामिल होते हैं. वहीं, कैटेगरी II में 10 करोड़ से 250 करोड़ रुपये तक के निवेशक शामिल होते हैं. अब सेबी ने इन दोनों को एक कैटेगरी में मिला दिया है. यानी 250 करोड़ रुपये तक के अलॉटमेंट के लिए न्यूनतम 5 और अधिकतम 15 निवेशक होंगे. इसके अलावा इनमें से प्रत्येक को न्यूनतम 5 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाएगा.
30 नवंबर से लागू
सेबी ने नोटिफिकेशन में बताया है कि इश्यू ऑफ कैपिटल एंड डिस्क्लोजर रिक्वायरमेंट्स (ICDR) नियमों में किए गए बदलाव 30 नवंबर, 2025 से प्रभावी होंगे. यह बदलाव IPO मार्केट में लॉन्गटर्म के लिए इंस्टीट्यूशनल कैपिटल को आकर्षित करने में मदद करेगा, जिससे प्राइस डिस्कवरी ज्यादा पारदर्शी बनेगी और खुदरा निवेशकों को भी बेहतर भरोसा मिलेगा.