हमेशा सुरक्षित नहीं होते डेट फंड्स, इनमें भी होते हैं खतरे; निवेश से पहले जानें पूरी डिटेल
निवेशकों को अक्सर लगता है कि डेट म्यूचुअल फंड्स सुरक्षित विकल्प हैं, लेकिन हकीकत इससे अलग है. इन फंड्स में भी ऐसे छिपे खतरे हैं, जो आपकी पूरी कमाई पर पानी फेर सकते हैं. निवेश करने से पहले कुछ खास पहलुओं को समझना बेहद जरूरी है, वरना नुकसान तय है.

लोग सोचते हैं कि इक्विटी फंड्स में निवेश करना बहुत जटिल है लेकिन मुझे लगता है कि डेट म्यूचुअल फंड्स में निवेश करना भी उतना ही नहीं बल्कि कई बार उससे ज्यादा जटिल है. डेट फंड्स में निवेश अपने आप में अलग तरह के जोखिम लेकर आता है. इस लेख में मैं डेट फंड्स में निवेश से जुड़े विभिन्न प्रकार के जोखिमों पर चर्चा करूंगा और निवेश करते समय किन सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए, इस पर भी प्रकाश डालूंगा.
डेट म्यूचुअल फंड्स से जुड़े प्राथमिक जोखिम
किसी भी निवेश में कुछ न कुछ जोखिम अवश्य होता है. कोई भी निवेश पूरी तरह सुरक्षित नहीं है. उदाहरण के लिए, अगर आप पैसा निवेश ही नहीं करना चाहते और जोखिम से बचने के लिए घर पर रखते हैं, तो महंगाई के कारण उस पैसे का मूल्य घटता जाएगा. इसी तरह अगर आप बहुत ही सुरक्षित प्रोडक्ट में निवेश करते हैं, तो वहां भी “महंगाई और टैक्स” दोनों आपके रिटर्न को खत्म करने का जोखिम लेकर आते हैं. जब डेट म्यूचुअल फंड स्कीम में निवेश की बात आती है, तो मुख्यतः तीन तरह के जोखिम होते हैं.
a) ब्याज दर का जोखिम (Interest rate risk): ब्याज दरें अपने अलग चक्र का पालन करती हैं. जब ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो पहले से किए गए निवेशों की यील्ड घट जाती है. इससे उन सिक्योरिटीज की कीमतें कम हो जाती हैं जिनमें डेट फंड ने निवेश किया है और इसके चलते स्कीम का नेट एसेट वैल्यू (NAV) भी गिरता है. इसके उलट, जब ब्याज दरें घटती हैं, तो सिक्योरिटीज की कीमत और NAV दोनों बढ़ते हैं. इस बदलाव की सीमा इस बात पर निर्भर करती है कि निवेशित साधनों की एवरेज मैच्योरिटी कितनी है. जितनी लंबी एवरेज मैच्योरिटी होगी, उतना ही ज्यादा असर बाजार मूल्य और NAV पर पड़ेगा. उदाहरण के लिए, अगर आपकी निवेश अवधि एक वर्ष की है और आप ऐसे इनकम फंड्स में निवेश करते हैं जिनकी एवरेज मैच्योरिटी अवधि लंबी है, तो ब्याज दर में मामूली बढ़ोतरी भी आपके रिटर्न पर नकारात्मक असर डाल सकती है और कभी-कभी रिटर्न नकारात्मक भी हो सकते हैं. चूंकि ब्याज दरों की भविष्य की दिशा का सही अनुमान लगाना आम निवेशक के लिए कठिन है और इसके लिए विशेष कौशल की आवश्यकता होती है, इसलिए सामान्य निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे कम एवरेज मैच्योरिटी वाले फंड्स चुनें, जब तक कि उनकी निवेश अवधि लंबी न हो और स्कीम की एवरेज मैच्योरिटी से मेल न खाता हो.
b) क्रेडिट रिस्क / डिफॉल्ट रिस्क (Credit Risk / Default Risk): हाल तक एक सामान्य निवेशक डेट फंड्स में निवेश से जुड़े किसी बड़े जोखिम को ब्याज दर चक्र से इतर मान ही नहीं सकता था. लेकिन हाल की घटनाओं ने इस सोच को पूरी तरह बदल दिया है. यह जोखिम तब सामने आया जब कई कॉरपोरेट्स ने अपनी परिपक्वता देनदारियों को चुकाने में डिफॉल्ट किया. ब्याज और मूलधन समय पर चुकाने में असफलता को क्रेडिट/डिफॉल्ट रिस्क कहते हैं. ब्याज दर जोखिम की तुलना में यह जोखिम कहीं ज्यादा गंभीर और अपूरणीय है. यह आपके निवेश का एक बड़ा हिस्सा मिटा सकता है. यह जोखिम गिल्ट फंड्स में नहीं होता, लिक्विड फंड्स में लगभग नगण्य है लेकिन क्रेडिट अपॉर्च्युनिटी फंड्स, डायनामिक बॉन्ड फंड्स और इनकम फंड्स जैसी स्कीमों में यह जोखिम बहुत अधिक होता है.
c) कंसंट्रेशन रिस्क (Concentration Risk): किसी भी कंपनी की कितनी भी अच्छी प्रतिष्ठा क्यों न हो, लेकिन अगर फंड हाउस ने कुछ चुनिंदा कंपनियों पर ही अधिक दांव लगाया है और उनमें से कोई भी कंपनी डिफॉल्ट करती है, तो आपके निवेश का बड़ा हिस्सा अपूरणीय रूप से मिट सकता है. इसलिए आपको हमेशा उन फंड्स से बचना चाहिए जिनमें कुछ कंपनियों या समूहों के साधनों में अधिक निवेश केंद्रित हो.
डेट स्कीम्स चुनते समय ध्यान देने योग्य बातें
डेट म्यूचुअल फंड्स में निवेश करते समय आपको निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए.
a) अपनी वित्तीय आवश्यकताओं और जोखिम प्रोफाइल के अनुसार स्कीम का चयन करें: जैसा कि ऊपर बताया गया, आपके निवेश अवधि को स्कीम की एवरेज मैच्योरिटी से मेल खाना चाहिए, वरना आप ब्याज दर चक्र से जुड़ा जोखिम उठा लेंगे. इसलिए यह देखें कि आपका लक्ष्य कितनी दूर है और उसके अनुसार डेट फंड चुनें. यदि आपका लक्ष्य केवल छह महीने बाद का है, तो इनकम फंड या लंबी अवधि वाले किसी फंड में निवेश करना अनुचित है. इसी तरह आपको अपने निवेश उद्देश्य, जोखिम प्रोफाइल और लक्ष्य की लचीलेपन/महत्व के आधार पर डेट स्कीम की श्रेणी चुननी चाहिए.
b) स्कीम के पोर्टफोलियो की निरंतर जांच करें ताकि कंसंट्रेशन रिस्क से बचा जा सके: जैसा कि ऊपर बताया गया, निवेश करने से पहले और निवेश के बाद भी स्कीम के पोर्टफोलियो की संरचना पर नजर रखें. इससे आप कंसंट्रेशन रिस्क से बच सकेंगे.
c) निवेश साधनों की रेटिंग देखें: आपको स्कीम में शामिल साधनों की रेटिंग पर भी ध्यान देना चाहिए. ऐसी स्कीम्स चुनें जिनमें अधिकतर निवेश उच्च रेटिंग वाली सिक्योरिटीज (जैसे “AAA” या “AA”) में हो. हालांकि यदि आपने यह सुनिश्चित कर लिया है कि किसी एक संस्था या समूह में अधिक निवेश केंद्रित नहीं है, तो किसी उच्च रेटिंग वाली सिक्योरिटी के डिफॉल्ट होने की स्थिति में भी नुकसान न्यूनतम रहेगा.
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d) ऊंचे रिटर्न के पीछे न भागें: पिछले कुछ वर्षों की उथल-पुथल ने यह साफ कर दिया कि जो निवेशक केवल ऊंचे रिटर्न की चाह में जोखिम को नजरअंदाज करते हैं, वे नुकसान उठाते हैं. डेट स्कीम्स में निवेश करते समय यथार्थवादी रिटर्न की उम्मीद रखें.
e) केवल पिछले प्रदर्शन के आधार पर निवेश का निर्णय न लें: पिछला प्रदर्शन भविष्य के रिटर्न का संकेत नहीं होता. अतीत में जो रिटर्न मिले, वे किसी विशेष ब्याज दर चक्र के कारण हो सकते हैं, जो अब बदल चुका हो. इसलिए यह समझने की कोशिश करें कि बेहतर रिटर्न क्यों मिले थे, क्या वही कारण आज भी मौजूद हैं और क्या आगे भी बने रहेंगे, तभी निवेश का निर्णय करें.
लेखक एक टैक्स और इंवेस्टमेंट एक्सपर्ट हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं. आप उन्हें jainbalwant@gmail.com पर या ट्विटर हैंडल @jainbalwant पर संपर्क कर सकते हैं.
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