एक पहाड़ के लिए भिड़ गए अमेरिका और चीन, छुपा है 62 अरब डॉलर का खजाना, कहलाता है पवित्र स्थल
केन्या का मृमा हिल सिर्फ एक पहाड़ नहीं है. यह अफ्रीका के संसाधनों पर बढ़ती वैश्विक दावेदारी की कहानी है. अमेरिका और चीन Rare Earth की होड़ में यहां उतर चुके हैं. लेकिन असली सवाल यही है कि फायदा किसका होगा? विदेशी ताकतों का या स्थानीय लोगों और प्रकृति का? आने वाले समय में यह संघर्ष अफ्रीका के भविष्य और वैश्विक भू-राजनीति दोनों को प्रभावित कर सकता है.
Rare Earth: ऊर्जा सुरक्षा और टेक्नोलॉजी की होड़ अब सिर्फ लैब्स या कारोबारी सौदों तक सीमित नहीं रही. यह जंग अब जमीन पर उतर चुकी है. ऐसी ही एक रणनीतिक लड़ाई छिड़ी है केन्या के तटीय इलाके में मौजूद मृमा हिल पर, जहां अमेरिका और चीन दोनों दुर्लभ खनिजों यानी रेयर अर्थ (Rare Earths) की खोज और कब्जे की होड़ में आमने-सामने खड़े हैं. यह कहानी किसी हॉलीवुड फिल्म अवतार जैसी लग सकती है, जहां प्रकृति, संस्कृति और संसाधनों की लड़ाई संघर्ष का केंद्र बन जाती है. अमेरिका और चीन रेयर अर्थ की इस होड़ में यहां उतर चुके हैं, ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या आने वाले टाइम में केन्या के इस क्षेत्र के भविष्य और भू राजनिति को चीन और अमेरिका प्रभावित कर सकते हैं. चलिए समझते हैं.
क्यों इतना अहम है मृमा हिल?
केन्या के हिंद महासागर तट के पास करीब 390 एकड़ के इस पहाड़ी जंगल में दुर्लभ खनिजों (Rare Earth Elements) का विशाल भंडार है. साल 2013 में ब्रिटेन और कनाडा स्थित पैसिफिक वाइल्डकैट रिसोर्सेज की सहायक कंपनी कॉर्टेक माइनिंग केन्या ने अनुमान लगाया था कि यहां की खदानों की कीमत 62.4 बिलियन डॉलर हो सकती है. इनमें नायोबियम (Niobium) जैसे खनिज शामिल हैं, जिसका इस्तेमाल मुख्य रूप से स्टील को मजबूत करने, रॉकेट इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स तक में किया जाता है. यही वजह है कि हाई-टेक और ग्रीन एनर्जी सेक्टर के लिए यह खनिज दुनिया भर में स्ट्रैटेजिक माने जाते हैं.
क्यों बढ़ी US और China की दिलचस्पी?
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाली अमेरिकी सरकार ने अफ्रीका में अपनी कूटनीति में महत्वपूर्ण खनिजों की सुरक्षा को केंद्रीय स्थान दिया है, जिसमें इस साल संसाधन-समृद्ध कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में शांति समझौता भी शामिल है. इसी साल US अधिकारी मार्क डिलार्ड ने मृमा हिल का दौरा किया था जब वे केन्या में अंतरिम राजदूत थे. वहीं चीन जो कि फिलहाल रेयर अर्थ सप्लाई का सबसे बड़ा सोर्स माना है, अब इन खनिजों के निर्यात पर कंट्रोलिंग बढ़ा रहा है. ऐसे में वह अफ्रीकी देशों में अपनी सप्लाई चेन मजबूत करना चाहता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि चीनी लोगों लोग अक्सर यहां पहुंचने की लगातार कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें रोका गया है. सिर्फ चीन और अमेरिका ही नहीं बल्कि कई ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों RareX और Iluka Resources ने भी इस इलाके में खनन की बोली लगाने की घोषणा की है यानि यह एक वैश्विक संसाधन युद्ध का नया मैदान बन चुका है.
स्थानीय लोग लगातार कर रहे हैं विरोध?
बता दें मृमा हिल सिर्फ संसाधनों की जगह नहीं है. बल्कि यह Digo जनजाति का पवित्र स्थल है. यहां उनके पारंपरिक तीर्थस्थान हैं, और जंगल उनकी दवा-औषधि, खेती और आजीविका का सोर्स है. स्थानिय जनजातियों का कहना है कि हम नहीं चाहते कि हमारी जमीन लूट ली जाए. उनका कहना है कि यहां लोग बड़ी-बड़ी कारों में आते हैं लेकिन हम उन्हें वापस भेज देते हैं. स्थानीय लोगों को डर है कि उन्हें भूमि से बेदखल किया जा सकता है. पैसा बाहर वालों की जेब में जाएगा, समुदाय को नहीं मिलेगा, पर्यावरण का विनाश होगा. इसके अलावा लुप्तप्राय औषधीय पौधे और विशाल वृक्ष प्रजातियां समाप्त हो जाएंगी
भ्रष्टाचार और लाइसेंस युद्ध
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बता दें साल 2013 में केन्या ने Cortec Mining Kenya का खनन लाइसेंस रद्द कर दिया. उसपर आरोप था कि लाइसेंस घोटाले और अनियमितताओं के जरिए लिया गया. जिसके बाद Cortec ने कोर्ट में दावा किया कि लाइसेंस इसलिए रद्द हुआ क्योंकि उसने पूर्व खनन मंत्री नजीब बलाला को रिश्वत देने से इनकार कियास, लेकिन कंपनी मुकदमा हार गई. वहीं साल 2019 में केन्या ने नए खनन लाइसेंस पर अस्थायी रोक लगा दी थी. अब केन्या कि सरकार इस सेक्टर को GDP का 10 फीसदी बनाने के बड़े लक्ष्य के साथ बोल्ड रिफॉर्म्स की बात कर रही है. जहां कुछ लोग विरोध कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसे गरीबी से बाहर निकलने का मौका मानते हैं.
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