Trump Tariff की किस पर ज्यादा मार, Indian Exporter या आम अमेरिकी, ये जान माथा पीट लेंगे ट्रंप समर्थक

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी एक्स्ट्रा टैरिफ लगाने का एलान किया है. ट्रंप का कहना है कि टैरिफ के जरिये वे अमेरिका को फिर से महान बना रहे हैं और आम अमेरिकी लोग इससे अमीर हो जाएंगे. बहरहाल, जमीनी हकीकत ट्रंप के इन दावों के विपरीत है. यहां जानते हैं कि ट्रंप के टैरिफ हमलों से असल में किस पर ज्यादा मार पड़ने वाली है?

डोनाल्ड ट्रंप Image Credit: Money9

Trump Tariff On India: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब दूसरी बार सत्ता में आए और 20 जनवरी को व्हाइट हाउस पहुंचे, तो उन्होंने जो सबसे पहला भाषण दिया, उसमें दर्जनों बार टैरिफ बोला. वहीं, इससे पहले ट्रंप ने अपने पूरा चुनावी अभियान के दौरान हजारों बार टैरिफ शब्द का इस्तेमाल किया. ट्रंप ने अपने समर्थकों को यकीन दिला दिया कि टैरिफ ही अमेरिका की सभी मुश्किलों का हल है. जीवनभर एक रियल एस्टेट कंपनी चलाने वाले ट्रंप का यह भी मानना है, वे बहुत शानदार और काबिल सौदेबाज हैं. लेकिन, टैरिफ को लेकर ट्रंप भारत को अब तक झुकाने और अपने हिसाब से समझौता करने में नाकाम रहे हैं. ट्रंप के बयानों में उनकी हताशा दिखती है. बहरहाल, यहां समझते हैं कि वर्ल्ड ट्रेड में टैरिफ का कंसेप्ट क्यों अस्तित्व में है और कैसे ट्रंप भारतीय निर्यातकों से ज्यादा आम अमेरिकी लोगों को इससे पीड़ा पहुंचा रहे हैं?

क्यों और कब लगाया जाता है टैरिफ?

WTO के मुताबिक टैरिफ किसी भी देश की तरफ से उस देश में होने वाले आयात पर लगाई जाने वाली कस्टम ड्यूटी या टैक्स है. इसे दुनिया में तकरीबन हर देश की तरफ से इस्तेमाल किया जाता है. मोटे तौर पर इसका इस्तेमाल दो वजहों से किया जाता है. पहली वजह किसी देश की तरफ से अपने स्थानीय उद्योग, कारोबार और किसानों जैसे समूहों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा से महफूज रखने के लिए. दूसरी वजह, देश के अमीरों की तरफ से दुनिया के दूसरे देशों से महंगी और विलास की वस्तुओं के आयात से सरकारी खजाने को भरने के लिए.

किसे चुकाना होता है टैरिफ?

Tariff या Custom Duty का भुगतान हमेशा आयातक को करना पड़ता है. मिसाल के तौर पर अगर भारत से कोई निर्यातक अमेरिका को कोई मशीन निर्यात कर रहा है, तो इस मशीन के आयात पर लगने वाले टैरिफ सहित सभी तरह के टैक्स आयात करने वाले को चुकाने होंगे. हालांकि, बात यहां खत्म नहीं होती है. क्योंकि, कोई भी बिजनेस या इंडस्ट्री किसी टैक्स को अपने प्रॉफिट या मार्जिन से नहीं चुकाती है. बल्कि, इसे अंतिम उपभोक्ता को पास कर दिया जाता है. यानी, आखिर में टैरिफ का भार उस अमेरिकी नागरिक को उठाना होगा, जो उस मशीन का यूजर होगा.

टैरिफ को लेकर क्या है ट्रंप की समझ?

ट्रंप का कहना है, टैरिफ एक अद्भुत शब्द है. इससे अमेरिका को फिर से महान और हर अमेरिकी को अमीर बनाया जा सकता है. Harvard Kennedy School में International Trade के एक्सपर्ट रॉबर्ट लॉरेंस का कहना है, “ट्रंप को टैरिफ शब्द बहुत पसंद है. उन्हें यह एक जादुई चिराग या स्विस मिलिट्री नाइफ जैसा मल्टीपर्पज टूल नजर आता है, जिससे ट्रंप तमाम मकसदों को पूरा कर सकत हैं.”

भारत के मामले में दिखी ट्रंप की नासमझी

Trump की दलील है कि भारत रूस से कच्चा तेल आयात करता है. रूस और यूक्रेन में युद्ध चल रहा है. भारत के आयात से रूस को पैसा मिल रहा है, जिससे यह युद्ध जारी है. अब ट्रंप का कहना है वे अमेरिका में भारत से होने वाले आयात पर टैरिफ लगा रहे हैं, ताकि भारत रूस से सस्ता क्रूड आयात करना बंद कर दे और यूक्रेन में युद्ध रुक जाए. जाहिर, तौर पर यह बेतुकी बात है. भारत की तरफ से विदेश मंत्रालय ने भी इस मसले पर अपनी आधिकारिक प्रतिक्रिया में यही कहा, “रूसी तेल आयात पर अमेरिका की तरफ से भारत को निशाना बनाना गलत है और भारत की आलोचना बेतुकी है.”

अमेरिका उपभोक्ताओं पर क्या असर होगा?

टैरिफ की वजह से भले ही भारत और अमेरिका के बीच होने वाले व्यापार घाटे में कमी आ जाए. लेकिन, इसकी आखिरी कीमत अमेरिकी लोगों को ही चुकानी पड़ेगी. क्योंकि, भारत से जो निर्यात हो रहा है, उस पर टैरिफ भारत के निर्यातकों को नहीं, बल्कि आयातकों और आखिर में अमेरिकी लोगों को चुकाना है. ऐसे में इसका सीधा असर अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा.

भारत के निर्यातकों को क्या नुकसान?

जाहिर तौर पर जब भारत से आयातित वस्तुओं पर ज्यादा टैक्स लगेगा, तो भारतीय उत्पाद महंगे हो जाएंगे, जिससे उनकी डिमांड कम हो जाएगी. डिमांड कम होगी, तो भारतीय निर्यातकों का व्यापार कम हो जाएगा. यहां, ध्यान देने वाली यह भी है कि भारत की तरफ से अमेरिका को निर्यात किए जाने वाली शीर्ष वस्तुओं में स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर, जेनरिक दवाएं, रत्न-आभूषण, ऑटो पार्ट्स और पेट्रोलियम प्रोडक्ट हैं.

प्रोडक्ट कैटेगरीनिर्यात अरब डॉलरवस्तुएं
इलेक्ट्रॉनिक्स & इलेक्ट्रॉनिक उपकरण~$12.3 Bस्मार्टफोन, PCBs, डाटा सेंटर हार्डवेयर; iPhone समेत प्रमुख ब्रांड शामिल हैं
जेम्स & जूलरी~$10.2 Bकटे हुए हीरे, सोना, पत्थरों से बनी ज्वेलरी
फार्मास्युटिकल्स एवं मेडिसिन~$8.7–8.1 Bजेनेरिक दवाएं, APIs, vaccines; भारत अमेरिका का प्रमुख सप्लायर
इंजीनियरिंग माल एवं मशीनरी~$6.5–7.1 Bमोटर्स, टर्बाइन, ऑटो पार्ट्स, मशीन टूल्स; तकनीकी उत्पादों की वृद्धि
पेट्रोलियम उत्पाद~$4–4.4 Bरिफाइंड तेल, ल्यूब्रिकेंट्स
डाटा: निर्यात पोर्टल, 2024-25

किसे पड़ेगी असली मार?

ट्रंप के टैरिफ की असली मार आखिर में अमेरिकी लोगों पर ही पड़ने वाली है. क्योंकि, भारत के निर्यातकों पर इसका गहरा असर तब होता, जब अमेरिकी उपभोक्ताओं के पास भारतीय उत्पादों के किफायती विकल्प होते. भारत जेनरिक दवाओं का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरर है. भारत को दुनिया की फार्मेसी कहा जाता है. ऐसे में दवाओं के लिए अमेरिकी लोगों के पास कोई खास विकल्प नहीं बचता है. क्योंकि, टैरिफ के बाद भी भारत की जेनरिक दवाएं अमेरिकी ब्रांडेड दवाओं की तुलना में अमेरिकी लोगों के लिए सस्ती मिलेंगी. इसके अलावा, स्मार्टफोन, ऑटो पार्ट्स व तमाम दूसरे हार्डवेयर के लिए भी अमेरिकी आयातकों के पास भारत का कोई विकल्प नहीं है. क्योंकि, इन तामम चीजों पर दूसरे देशों पर भी टैरिफ लगाया गया है. यही वजह है कि अमेरिकी रिटेलर एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि टैरिफ असल में महंगाई बढ़ाएगा और आखिर में उपभोक्ता ही बढ़ी हुई कीमतें चुकाएंगे.