सेल में सस्ता iPhone ले रहे हो? रुको जरा, पहले ये पढ़ते जाओ, फायदा हो न हो नुकसान से बच जाओगे…!
ई-कॉमर्स से लेकर बाजार तक सेल लगी हैं. भारी-भरकम डिस्काउंट के इश्तेहार आपको ललचा रहे होंगे कि कुछ न कुछ तो ले ही लिया जाए. बहरहाल, कुछ लेना न लेना आप तय करना. हम आपको बताते हैं कि iPhone भले ही सस्ते में मिल जाएगा, लेकिन इसकी हिडन कॉस्ट जरूर चुकानी पड़ेगी.
जब आप देखते हैं कि आपका दोस्त जिस एक-डेढ़ लाख रुपये के iPhone का भौकाल दिखा रहा था, अब वह 40-50 हजार में मिल रहा है, तो जज्बात काबू में नहीं रहते और आप खटाक से क्रेडिट कार्ड से ऑर्डर मार देते हैं. यहां तक यह मुनाफे का सौदा नजर आता है. मसलन, 1 लाख से 80 हजार की एमआरपी वाला फोन आपको 30-40% की छूट के साथ 40-50 हजार में मिले, तो इसमें बुरा क्या है. इसके ऊपर से कार्ड का डिस्काउंट, नो-कॉस्ट ईएमआई तो दोनों हाथों में लड्डू से कम नहीं.
आपकी यह खुशी जायज है. कार्ड ट्रांजेक्शन पर लगने वाली प्रोसेसिंग फी और इंट्रेस्ट की बातें कर इस मुबारक मौके पर हम आपकी खुशी कम नहीं करना चाहते, लिहाजा इस मुद्दे पर बात ही नहीं करते हैं. हम उन खर्चों की बात कर रहे हैं, जिन्हें iPhone खरीदने के साथ उठाना ही होगा. ये खर्चे कुछ ऐसे मानें कि कोई बढ़िया हाई परफॉर्मेंस बाइक खरीद रहे हैं, तो उसे तेल पिलाने और मेंटेन करना है. इस तरह के खर्चों को कारोबारी लहजे में हिडन चार्जेज कहा जाता है.
हिडन चार्जेज का मतलब ही यह है कि इनके बारे में आपको नहीं बताया जाएगा. हिडन चार्जेज का गणित आपको खुद बैठकर निकालना होता है. अब बात करते हैं कि iPhone तो महज एक फोन है, कौनसा इसे हाई ओक्टेन पेट्रोल पिलाना है. किसी भी दूसरे फोन की तरह ये चार्ज होगा, सिम डलेगी और जितना रिचार्ज अमाउंट एंड्रॉइट में इस्तेमाल करने पर लगेगा, उतना ही इसमें लगेगा. हुजूर बात अपनी जगह पूरी तरह दुरुस्त हैं. लेकिन, हमारी बात अभी खत्म नहीं हुई है.
ये हैं iPhone इस्तेमाल की हिडन कीमत
आप जब iPhone खरीदते हैं, तो आपको इसकी एक्सेसरीज पर अलग से खर्च करना होता है. खासतौर पर आपको इसका चार्जर खरीदना ही पड़ता है, क्योंकि यह फोन के साथ नहीं मिलता है. इसके अलावा जिनता लेटेस्ट आईफोन आप खरीदते हैं, आपको स्टोरेज पर उतना ही ज्यादा खर्च करना पड़ता है. असल में जैसे-जैसे एपल आईफोन के कैमरे की क्वालिटी को इंप्रूव कर रही है. आईफोन से खींचे गए फोटो का साइज बढ़ता जा रहा है. इस तरह आपको आई-क्लाउड खरीदना होता है. इसके अलावा तमाम रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले एप हैं, जो एंड्रॉइड पर फ्री में उपलब्ध होते हैं, लेकिन आईफोन पर इन्हें इस्तेमाल करने के लिए आपको इनकी अलग से कीमत चुकानी पड़ती है. इसके अलावा अगर आप नया फोन खरीदते समय कंपनी का केयर पैक नहीं लेते हैं, तो फोन की रिपेयर कॉस्ट बहुत ज्यादा होती है. बहुत ज्यादा का मतलब, कई बार चिप सेट में होने वाली गड़बड़ी ठीक कराने के लिए आपको करीब उतनी ही रकम खर्च करनी पड़ सकती है, जितना नए फोन को खरीदन में की है.
नतीजा क्या है
नतीजा यही है कि आप सस्ता आईफोन ले रहे हैं, तो इन हिडन कॉस्ट के बारे में जरूर जान लें. इसके अलावा यह भी कन्फर्म कर लें कि आपके इस्तेमाल के जो एप हैं एपल के एप स्टोर पर हैं या नहीं. उनके लिए अगल से कीमत तो नहीं चुकानी पड़ती है. अगर खरीदना पड़ता है, तो कितने में खरीदना पड़ता है. हमारा संदेश यही है. आईफोन लें या एंड्रॉइड ग्राहक के तौर पर अपने हितों के प्रति जागरूक रहें.